रविवार, 16 अक्तूबर 2011

प्रसंगवश

शिकारियों की नहीं मिलती सजा
शेर के शिकारियों को सजा दिलाना आसान नहीं है । पुलिस या वन विभाग भले ही वन्यजीवों की खालों एवं अन्य सबूतों के साथ आरोपियों को गिरफ्तार करती हो लेकिन न्यायालयों में अपराधियों को सबूतों के अभाव में दोषमुक्त कर दिया जाता है । वन्यजीवों के शिकार के लगभग आधे मामलों में अदालत में दोषसिद्ध नहीं हो पाता, इनमें टाइगर, तेंदूए, चीतल, सांभर सहित सभी वन्यजीव शामिल हैं । शिकार की अगर यही स्थिति रही तो देश में टाइगर की संख्या कम होने पर पांबदी लगाना मुश्किल हो जाएगा ।
हर साल सैकड़ों वन्यजीवों की मौत शिकारियों के चुंगल में फंसकर हो जाती है । अंतत: ये मामले न्यायालय में जाते हैं, जहां पर अपराधियों को जमानत मिल जाती है और उनके खिलाफ सालों मामले चलते हैं । जिन मामलों में फैसला होता है, उसमें भी लगभग आधे आरोपियों को क्लीन चिट मिल जाती है । वहीं कई मामले तो सालों से विभागीय स्तर पर ही लंबित है ।
मध्यप्रदेश में टाइगर सेल ने चार सालों में शेर के शिकार के चार प्रकरण न्यायालय में दर्ज कराए है, इसमें से एक मामले में आरोपी दोषमुक्त हो गए, जबकि तीन मामले अभी न्यायालय में विचाराधीन है । वर्ष २००५ से २००९ के बीच वन्यजीव शिकार संबंधी ११९ प्रकरणों में न्यायालय द्वारा फैसला सुनाया गया । इसमें से ५५ मामलों में आरोपी दोषमुक्त हो गए एवं ६४ मामलों में अपराधियों के खिलाफ दोषसिद्ध हुआ । वहीं १०४८ मामले अभी भी न्यायालयों में लंबित है ।
प्रदेश सरकार के अफसरों का कहना है कि अदालत की कार्यवाही में समय जरूर लगता है, लेकिन ३५-३६ प्रतिशत मामलों में सजा मिल जाती है । टाइगर के मामलो में गंभीरता से काम होता है, इसमें ८० प्रतिशत से ज्यादा मामलों में सजा हो जाती है । अदालत में जाकर गवाह पलट जाते है, इसलिए आरोपियों को सजा नहीं मिल पाती । सरकारी अधिकारी कुछ भी कहे लेकिन वन्य जीवों के आधे शिकारी सबूतों के अभाव में छूट रहे है

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