रविवार, 16 अक्तूबर 2011

आवरण कथा

ओजोन परत क्षय: कारण और निवारण
डॉ. लक्ष्मीकांत दाधीच
ओजोन गैस, ऑक्सीजन गैस की समजात गैस होती है। ओजोन वायुमण्डल के सभी अक्षांशो में उपस्थित होती है परन्तु यह मुख्यत: समताप मण्डल में पायी जाती है। समुद्र तल से ३२ से लेकर ८० किलोेमीटर तक की ऊँचाई के वायुमण्डलीय भाग में अधिकांंश ओजोन पाई जाती है, इसलिए साधारणतया इसे ओजोन मण्डल, ओजोन परत, ओजोन छतरी या सुरक्षात्मक परत के नाम से भी जाना जाता है ।
ओजोन की सान्द्रता क्षोभमण्डल में ०.५ ििा ही होती है जबकि समताप मण्डल में यह लगभग १० ििा होती है। ओजोन परत की मोटाई ''डॉबसन`` इकाई (ऊलिीिि णळिीं = ऊ.ण.) में मापी जाती है । जहाँ एक डॉबसन का मान ०.०१ मिमी. (०० उ ताप तथा ७६० मिमी. दाब पर) होता है । वायुमण्डल में ओजोन की मात्रा केवल ०.०००००२ प्रतिशत ही है (अर्थात् यदि इसे पृथ्वी सतह पर फैलाया जाए तो मात्र ३ मिलीमीटर की परत बन पाएगी) इस लेशमात्र गैस की ९५ प्रतिशत मात्रा समताप मण्डल व क्षोभमण्डल में पाई जाती है ।
वातावरण में ओजोन के निर्माण व विघटन का पहला रासायनिक सिद्धांत १९३० में सिडनी में ''चैपमैन`` ने प्रस्तुत किया था । इस सिद्धांत के अनुसार वातावरण में ओजोन का निर्माण आण्विक ऑक्सीजन पर सूर्य के प्रकाश के प्रभाव से होता है । इससे ऑक्सीजन का अणु परमाणुओं में विभाजित हो जाता है और ये स्वतंत्र परमाणु ऑक्सीजन के अन्य अणुओं से क्रिया करके ओजोन बनाते हैं ।
O2 -------- O0 + (आक्सीजन परमाणु)
O0 + O2 ------ O3 (ओजोन)
इसके अतिरिक्त ऑक्सीजन युक्त यौगिक जैस SO2 NO2 सूर्य के प्रकाश के प्रभाव में परमाण्विक ऑक्सीजन को मुक्त करते हैं, यह स्वतंत्र परमाणु ऑक्सीजन के अन्य अणुओं से क्रिया करके ऑक्सीजन बनाते हैं।
O0 + O2 --------- O3
NO2 --------- NO2 --------- NO+
वायुमण्डल में बहुत ऊँचाई पर ताप अधिक होता है अत: वहाँ पर आयन विचरण करते हैं, तथा वे कम मात्रा में रहते हैं अत: उनके समीप आने की तथा क्रिया करके अणु बनाने की सम्भावना बहुत कम होती है । इसीलिए वातावरण में ८० किलोमीटर से ऊपर ओजोन नहीं पाई जाती है। दूसरी तरफ १६ किलोमीटर से नीचे परमाण्विक ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं होती है जिससे ओजोन का निर्माण नहीं हो पाता है। अत: १६ किलोमीटर के नीचे ओजोन न के बराबर पाई जाती है ।
अब तक ऐसी लगभग २०० प्रकाश-रासायनिक क्रियाएँज्ञात हैं जिसमें इस गैस का हास होता है। आजकल कुछ ऐसे मानव निर्मित यौगिकों का उत्सर्जन हो रहा है जो ओजोन मण्डल में पहुँचकर ओजोन के हृास में वृद्धि कर रहे हैं । परिणामस्वरूप सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुँचने लगी हैं जिसके कई दुष्प्रभाव देखने में आ रहे हैं ।
वायुमण्डल में ओजोन परत ३००० A तरंग दैर्ध्य वाली हानिकारक किरणों अर्थात पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी सतह पर पहुँचने से रोकती है। अत: ओजोन की कमी से जैवमण्डल पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकते हैं ।
ओजोन परत के क्षय के प्रमुख कारण :- ओजोन परत के क्षय का मौसमीय उपग्रह श्रंृखला के निमबस-७ उपग्रह से १९६४ में पता चला । ओजोन छिद्र के बारे में सर्वप्रथम जी.सेफ फर्मन के नेतृत्व में अंटार्कटिका
गए ब्रिटिश वैज्ञानीकों के दल ने १९८५ में बताया । ओजोन परत के विघटन से उसमें छिद्र होने लग गया है । इस विघटन के लिए क्लोरो-फ्लोरो कार्बन मुख्य रूप से उत्तरदायी है । कैलिफोर्निया विश्वविघालय के वैज्ञाानिकों शेयर वुड शेलेण्ड और मेरियो मोबिना ने अनुसंधान द्वारा क्लोरो-फ्लोरो कार्बन में विद्यमान क्लोरीन को ओजोन परत के विघटन के लिए उत्तरदायी बताया ।
(१) क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFC): वर्तमान अध्ययनों के आधार पर ओजोन क्षति का सारा दोष क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, ब्रोमीरन के यौगिकों एवं नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइडों पर लगाया जा रहा है। १९३० में अमरीकी वैज्ञाानिक डॉ. थॉमस मिजले ने अमरीकी कैमिकल सोसायटी के समक्ष C.F.C..का पहला संश्लेषण प्रस्तुत किया । उस समय इसकी उपयोगिता ने सारे विश्व में तहलका मचा दिया । यह रंगहीन, गंधहीन, विषहीन, अग्निरोधी, निष्कि य, लम्बे समय तक स्थाई रहने वाला एवं सस्ता प्रदार्थ शीतलीक रण उद्योग पर छा गया । तब से सी.एफ .सी. के उपयोगों क ी सूची बढ़ती रही है ।
लेकि न पर्यावरण विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित हुआ सन् १९७४ में जब दूसरे अमरीकी वैज्ञानिक एफ .शेरवुड रॉलैण्ड ने यह स्पष्ट कर दिया कि ध्रुवों पर ओजोन परत में छेद होने के लिए मुख्यतया सी.एफ.सी. जिम्मेदार है। सीएफ सी वास्तव में एक कि स्म के पदार्थों क ा सामान्य नाम है । ओजोन क्षति की दृष्टि से इसके अहम् पदार्थ हैं सी.एफ.सी.-११, सी.एफ.सी.-१२, सी.एफ.सी.-१३ और कार्बन टेट्राक्लोराइड ।
रॉलैण्ड-मोबिना के अनुसार सूर्य के प्रकाश के पराबैंगनी विकिरण के द्वारा सी.एफ.सी. का विघटन होकर परमाण्विक क्लोरीन बनती है। यह परमाण्विक क्लोरीन रासायनिक क्रियाआें की एक ऐसी श्रृंखला की शुरूआत करती है जिससे कि काफी क्षति होती है । सी.एफ.सी. से मुक्त हुआ क्लोरीन का एक परमाणु ओजोन के १०,००० अणुओं को तोड़ने की क्षमता रखता है। सी.एफ.सी. के अतिरिक्त कार्बन टेट्राक्लोराइड एवं क्लोरोफार्म जैसे क्लोरीनीकृत या अन्य हेलोजन (क्लोरीन, ब्रोमीन, फ्लोरीन) युक्त पदार्थ वायुमण्डल में हेलोजनों की मात्रा बढ़ाते हैं ।
अन्य कारण : १५-२० किलोमीटर क ी ऊँचाई पर तेज गति से उड़ने वाले जेट विमानों का धुँआ, एक अनुमान के अनुसार २०१० तक ओजोन परत को १० प्रतिशत और अधिक क्षतिग्रस्त क र देगा ।
इसके अलावा अन्तरिक्ष यानों का जला ईंधन भी नाइट्रोजन के ऑक्साइड उत्पन्न करता है, जो भी ओजोन परत के क्षय में योगदान करते हैं । नाइट्रोजन के ऑक्साइड जब ओजोन से क्रिया क रते हैं तो ओजोन क ा विघटन हो जाता है । अंटार्क टिका के ऊपर विशाल छिद्र क ी सीमा में आनें वाले विभिन्न देश जैसे न्यूजीलैण्ड, आस्ट्रेलिया, चिली, अर्जेन्टाइना में अब सूर्य के साथ पराबैंगनी किरणें बिना किसी विघ्न के प्रवेश करके प्रकृति के साथ किए गए खिलवाड़ का बदला ले रही है ।
(१) ओजोन विघटन की क्रियाविधि :- नाभिक ीय विस्फ ोट के कारण काफी अधिक मात्रा में नाइट्रोजन के ऑक्साइड उत्पन्न होते हैं । जो प्रत्यक्ष रूप से समताप मण्डल में पहुँच जाते हैं तथा क्रिया पर ओजोन क ी सान्द्रता में क मी क र देते हैं :
NO+O2NO2+O
NO+O3NO2+O2
NO2+ONO+O2
NO2+O3NO3+O2
ये अणु बहुत अधिक क्रियाशील होते हैं परन्तु ये काफी लम्बे समय तक वायुमण्डल में बने रह सकते हैं अर्थात् नाइट्रोजन के ऑक्साइडों के बढ़ने से ओजोन की सान्द्रता में कमी आती है। यह चक्र लगातार चलता रहता है तथा ओजोन का विघटन होता रहता है।
(२) क्लोरीन या हेलोजन की क्रियाविधि :- समताप मण्डल में C.F.C.s ओजोन परत के विध्वंस में उत्प्रेरक की भाँति काम करती है । C.F.C.s तथा हेलोजन क्षोभमण्डल में निष्क्रिय रहते हैं, यह समताप मण्डल में पहुँचने में १० से २० साल लेते हैं । लेकिन इनक ा मध्यवर्ती उत्पाद क्लोरीन परमाणु १०० सालों से अधिक के लिए सक्रि य हो जाता है।
(1) CFCsC1
(2) C1+O3C1o+O2
(3) CIo+O32O2+C1

यह क्लोरीन पुन: मुक्त हो जाता है तथा अन्य ओजोन अणु के विघटन में भाग लेता है।
ओजोन परत क्षय के दुष्प्रभाव :- यह सार्वजनिक रूप से माना जाता है कि समताप मण्डल में जो ओजोन परत है, वह सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों को अवशोषित कर पृथ्वी पर आने से रोक क र हमें बचाती है।
आधुनिक मानव की औद्योगिक क्रियाविधि के फ लस्वरूप ओजोन परत के विघटन से आंशिक गम्भीर समस्याएँ उत्पन्न हो चुक ी है। इन्हें Ozoner eater की संज्ञा दी गई है ।
१. मानव पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव :-
- इनके प्रभाव से मनुष्यों क ी त्वचा की ऊपरी सतह क ी क ोशिक ाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। क्षतिग्रस्त कोशिकाआें से हिस्टैमिन नामक रसायन क ा स्त्राव होने लगता है। हिस्टैमिन नामक रसायन के निक ल जाने से शरीर क ी रोग प्रतिरोधक क्षमता क म हो जाती है और ब्रॉकाइटिस, निमोनिया, अल्सर आदि रोग हो जाते है ।
- त्वचा के क्षतिग्रस्त होने से क ई प्रकार के चर्म कै न्सर भी हो जाते है । मिलिगैण्ड नामक चर्म कैं सर के रोगियों में से ४० प्रतिशत से अधिक क ी अत्यन्त क टप्रद मृत्यु हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण सुरक्षा अभिकरण का अनुमान है कि ओजोन की मात्र १ प्रतिशत की कमी से चर्म कैं सर के रोगियों में २० लाख की वार्षिक वृद्धि हो जाएगी ।
- पराबैंगनी कि रणों क ा प्रभाव आँखों के लिए घातक सिद्ध हुआ है । आँखों में सूजन और घाव होना तथा मोतियाबिन्द जैसी बीमारियों में वृद्धि का कारण भी इन किरणों का पृथ्वी पर आना ही माना जा रहा है। ऐसा अनुमान है कि ओजोन की मात्रा में १० प्रतिशत की कमी से आँख के रोगियों में २५ लाख की वार्षिक वृद्धि होगी ।
२. सूक्ष्म जीवों तथा वनस्पति जगत् पर भी पराबैंगनी कि रणों का बुरा असर पड़ता है । इनके पृथ्वी पर आने से सम्पूर्ण खाद्य श्रंृखला गडबड़ा सक ती हैं। पादपों की उत्पादन क्षमता कम हो जाएगी तथा वनस्पति कोशिकाएँ नष्ट हो जाएगी । सम्पूर्ण रूप से इसके द्वितीयक प्रभावों की कल्पना करना कठिन है ।
ओजोन परत क्षय के बचाव की रूपरेखा : ओजोन परत के संरक्षण को ध्यान मंे रखक र अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर १९८५ में विएना में बैठक बुलाई गई, परन्तु इस पर एक मत नहीं प्राप्त हुआ । इसके बाद १६ सितम्बर, १९८७ में मांट्रियल, कनाडा में पुन: बै ठक का आयोजन किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य ओजोन परत का संरक्षण तथा सी.एफ.सी. वर्ग के रसायनों पर नियन्त्रण करना था । इसलिए १६ सितम्बर को ओजोन दिवस या ओजोन बचाओ दिवस के रूप में मनाते हैं । इस बै ठक में ४३ देशों के प्रतिनिधियों तथा वैज्ञानिकों ने भाग लिया । यहाँ ''मांंट्रियल आचार संहिता`` के नाम से एक प्रारूप तैयार किया गया । इसमें कहा गया कि इस शताब्दी के अन्त तक सी.एफ.सी.
वर्ग के रसायनों के उत्पादन तथा उपयोग में निरन्तर कमी करके ३० प्रतिशत तक कमी की जाएगी ।
इस समझौते पर भारत, चीन, ब्राजील एवं अन्य विकासशील देशों ने हस्ताक्षर नहीं किए क्योंकि इनका आरोप था कि विकसित देश, विकासशील देशों के साथ सौतेला व्यवहार कर रहे हैं । दुर्भाग्यवश सी.एफ.सी. का ऐसा कोई भी विकल्प नहीं खोजा जा सका है जो ओजोन नाशक न हो । हाइड्रो-फ्लोरो कार्बन सी.एफ.सी. का विकल्प जरूर है, जो सी.एफ.सी. से १० गुना कम ओजोन नाशक है, परन्तु यह भी पूर्ण सुरक्षित नहीं है । साथ ही इसके बनाने का तरीका उतना आसान व सस्ता नही है जितना सी.एफ.सी. का है। सी.एफ.सी. के विकल्प के रूप में एच.सी.एफ.सी.- २२ के उत्पादन की तकनीक हमारे यहाँ उपलब्ध तो है किन्तु इसका उपयोग अत्यन्त महँगा है ।
हरित गृह गैसों की वृद्धि के दुष्प्रभाव :- हरित गृह प्रभाव के कारण पृथ्वी की जलवायु में निम्नलिखित परिवर्तन हो रहे है :
१. ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप महासागर गर्म हो रहे हैं तथा ध्रुवों पर जमी बर्फ पिघल रही है जिससे सागरों का तल ऊँचा हो रहा है तथा निचले क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है।
२. इसके कारण सर्दियाँ छोटी तथा कम ठण्डी होंगी तथा गर्मियाँ लम्बी व अत्यधिक गर्म होगी ।
३. अफ्रीका में रेगिस्तानी इलाकों का फैलाव, तटवर्ती इलाकों में भारी वर्षा होगी । बाढ़े आऐंगी तथा औसत वर्षा वाले क्षेत्रों मे सूखे की स्थिति बनेगी ।
४. कटिबंधीय तूफानों के कारण लम्बे तथा उष्णतम सूखों सहित कई प्रकार की उग्र मौसमी घटनाएँ होंगी।
५. ताप बढ़ने से होने वाली वर्षा काफी प्रभावित होगी । वर्षा के स्वरूप में परिवर्तन होगा तथा ७ प्रतिशत तक वर्षा अधिक होगी। इससे कुछ देशों में वर्षा अधिक व कुछ में कम हो जाएगी । भारत तथा सहारा रेगिस्तान के आस-पास के के क्षेत्रों मे अच्छी वर्षा होगी जबकि पाकिस्तान, बांग्लादेश में वर्षा कम हो जाएगी।
६. इसका प्रभाव खाद्यान्न पर भी पडेगा । रूस, चीन, अरब देशों इत्यादि के कुुछ क्षेत्रों में अन्न का उत्पादन बढ जाएगा जब कि भारत व अन्य विकासशील देशों में अनाज की पैदावार में कमी आ सकती है ।
७. तापमान बढ़ने के कारण जन्तुओं की क्रियाविधि प्रभावित होगी तथा कार्बन-डाई-ऑक्साइड की अधिकता के कारण श्वसन में भी कठिनाई बढ़ेगी ।

कोई टिप्पणी नहीं: