सोमवार, 11 मार्च 2013

सामाजिक पर्यावरण
शराब बनाम यौन हिंसा
भारत डोगरा
    शराब को राजस्व का प्रमुख स्त्रोत बनाकर हमारी राजनीतिक व्यवस्था भी नशे में डूब गई प्रतीत होती है । शराब और अपराध खासकर महिलाआें के विरूद्ध एवं शराब और बढ़ती गरीबी और बीमारी के बीच सीधा रिश्ता है । यदि राजस्व की शराब पर निर्भरता को समाप्त् नहीं किया गया तो विकास की किसी भी योजना का लाभ गरीब व वंचित समुदाय को प्राप्त् नहीं मिल पाएगा ।
    हाल के समय में महिलाआें के विरूद्ध हिंसा के मुद्दे पर वैंसे तो व्यापक चर्चा हुई हैं, लेकिन इस गंभीर समस्या के एक महत्वपूर्ण कारण पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया है । यह शराब की दुकानों व ठेके के तेज प्रसार के कारण देश के दूर-दराज के क्षेत्रोंमें भी शराब की उपलब्धि के बहुत सरल हो जानेे और बहुत बढ़ जाने का मुद्दा है । अनेक महिला संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताआें ने इस बारे में कई बार चेतावनी दी है कि शराब के ठेकों व दुकानों के तेजी से फैलने के कारण महिलाआें की असुरक्षा बढ़ रही है और उनके विरूद्ध हिंसा की संभावना बढ़ रही है । 
     हाल के वर्षोमें अपनी आय बढ़ाने के लिए अधिकांश राज्य सरकारों ने शराब के ठेकों की संख्या को तेजी से बढ़ाया है और अब ये ठेके बहुत दूर-दूर के गांवों में भी पहुंच गए हैं । इसका एक कारण यह भी रहा है कि शराब के कुछ बड़े व्यावसायियों के नेताआेंऔर अधिकारियों से उच्च् स्तर पर बहुत नजदीकी संबंध बन गए और इन्होंने भी शराब को इन गांवों में पहुंचाने के लिए  विभिन्न सरकारों पर दबाव बनाया ।
    विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन बताते है कि अधिक शराब पीने वाले क्षेत्रों में महिलाआें के विरूद्ध हिंसा के मामले अधिक पाए गए । इतना ही नहीं इनमें से बड़ी संख्या में वे शराब से संबंधित थे । दूसरी और जहां शराब की उपलब्धि कम हुई, वहां महिलाआें के विरूद्ध हिंसा में भी कमी आई । वैश्विक तौर पर देखे तो जब शराब की दुकानों के खुले रहने के समय में कमी की गई तो इससे ब्राजील व ऑस्ट्रेलिया में हिंसा कम हुई ।
    महिला जब घर में पति को शराब पीने से मना करती है तो उसे पीटा जाता है, जबकि घर से बाहर शराबियों द्वारा यौन हिंसा की संभावना बढ़ती है । जो बेहद अनुचित कार्य होश-हवास में करने से पहले आदमी बीस बार सोचता है, उसे वह शराब के नशे के नशे में बेहिचक कर डालता है । शराब के बढ़ते चलन ने महिलाआें के जीवन को बेहद असुरक्षित बनाया है । यही स्थिति शहरों की मलिन बस्तियों में व शराब की दुकानों के आसपास के क्षेत्रों में भी देखी जा सकती है ।
    इस संदर्भ में हाल में दिल्ली की एक अदालत ने निर्णय को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है । अतिरिक्त सेशन जज सुश्री कामिनी ने २५ जनवरी के अपने निर्णय में शराब के नशे में बलात्मकार करने वाले एक व्यक्ति को सजा देते हुए स्पष्ट कहा है कि शराब की बढ़ती खपत और बढ़ते अपराधों विशेषकर बढ़ती यौन हिंसा के अपराधों में निश्चित तौर पर आपसी संबंध है । माननीय न्यायाधीश ने सरकार को शराब की उपलब्धि और बिक्री को नियंत्रित व कम करने व यथासंभव शराबबंदी लागू करने की संवैधानिक जिम्मेदारी की याद दिलाई है । साथ ही उन्होनें दिल्ली सरकार को अपनी जिम्मेदारी से दूर हटने के लिए लताड़ा भी है ।
    माननीय न्यायाधीश ने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि शराब की बुराई को कम करने या नियंत्रित करना राज्य की प्राथमिकता में है ही नहीं, जबकि शराब के स्वास्थ्य व सुरक्षा पर प्रतिकूल असर के बारे मेंबहुत चिंता व्यक्त की गई है ।
    न्यायाधीश महोदया ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि शहरी गरीब बस्तियों में शराब की खपत बहुत बढ़ गई है । उन्होनें कहा कि जब शराब में निकोटीन व कैफीनमिलाकर सेवन किया जाता है तो यह और भी खतरनाक हो जाता है व विभिन्न अपराधों व यौन अपराधों की संभावना इस स्थिति में और बढ़ती है । शराब के नशे की प्रवृत्ति व उपलब्धि को कम करने या दूर करने की अपनी जिम्मेदारी से सरकार को भागना नहीं चाहिए व पल्ला झाड़ने की प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए । सरकार को शराबबंदी की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए ।
    माननीय न्यायाधीश के इस निर्णय की भावना के अनुकूल महिलाआें के विरूद्ध हिंसा रोकने व कम करने का एक अनिवार्य बिन्दु यह भी होना चाहिए कि सरकार शराब की उपलब्धि को व्यापक और सरल बनाने के स्थान पर इसे समुचित ढंग से नियंत्रित भी करे तथा दूरदराज के गांवों में शराब के ठेके खोलने पर रोक लगनी चाहिए ।

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