सोमवार, 11 मार्च 2013

प्रसंगवश
सहलाने पर अच्छा क्यों लगता है ?
    यदि आपने बिल्ली पाली है, तो आपको याद होगा कि उसे सहलाने पर वह कितना सुख महसूस करती है । वह इतनी खुश क्यों होतह है ? कैल्टेक के वैज्ञानिकोंका कहना है कि इस सवाल का जवाब एक विशेष किस्म की तंत्रिकाआें में है । ये तंत्रिकाएं चूहों में खोजी गई और मनुष्यों में भी पाई जाती हैं । इसके आधार पर यह भी समझ में आता है कि क्यों मनुष्यों को मालिश अच्छी लगती है और सहलाया जाना भी भाता है ।
    त्वचा को सहलाने पर मनुष्यों समेत कई स्तनधारी प्राणियों में सुख की अनुभूति पैदा होती है । मगर अब तक यह स्पष्द नहीं था कि इस संवेदना को कौन-सी तंत्रिकाएं मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं । वैसे भी सुखद अनुभूतियों पर शोध करना अपेक्षाकृत मुश्किल होता है । इसलिए अभी तक शोधकर्ता दर्दनाक अनुभूतियों पर ध्यान केन्द्रित करते आए हैं ।
    कैल्टेक के शोधकर्ताआें ने पाया है कि एक खास किस्म की तंत्रिकाएं हैं जो सहलाने की अनुभूति को पकड़ती हैं । इन तंत्रिकाआें को चंद आणविक चिन्हों की मदद से पहचाना जा सकता है । शोधकर्ताआें ने एक चूहे की पिछली टांगों के एक हिस्से की त्वचा को सहलाया । सहलाने की क्रिया का मानकीकरण किया गया था - एक खास किस्म का ब्रश, एक खास स्तर के दबाव से यह काम करता था । इस क्रिया से उत्पन्न उद्दीपन को ग्रहण करने वाली तंत्रिकाआें को पहचानने के लिए कुछ विशेष तकनीकों का इस्तेमाल किया गया था । जब ये तंत्रिकाएं उत्तेजित होती थ तो प्रकाश उत्पन्न होने की व्यवस्था की गई थी ।
    इन तंत्रिकाआें को उत्तेजित करने से चिंता को कम करने में भी मदद मिलती है । इससे समझ में आता है कि जानवरों को सहलाए जाने पर अच्छा क्यों लगता है । मनुष्यों में भी इस तरह की तंत्रिकाएं पाई जाती है । इससे लगता है कि सहलाने पर हमें जो इसी तरह की अनुभूति होती है, उसकी क्रियाविधि भी शायद यही हो ।
    अभी शोधकर्ता यह कहने से हिचक रहे है कि क्या इस खोज के कुछ चिकित्सकीय लाभ मिल सकते हैं मगर इतना तो कहा ही जा सकता है कि किसी व्यक्ति को थपथपाने या सहलाने पर मिलने वाले सुखद एहसास का संबंध तंत्रिकाआें से है ।

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