मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

विज्ञान हमारे आसपास
पौधों को छूने से फूल देरी से आते हैं
डॉ.डी.बालसुब्रमण्यन

    पौधे आपके स्पर्श पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और इसके लिए वे न सिर्फ अपनी जैव रासायनिक अभिक्रियाआें को संयोजित करते हैं बल्कि परिस्थिति और सुरक्षा जरूरतों के अनुरूप अपने आकार एवं माप को व्यवस्थित भी कर लेते हैं ।
    स्पर्श, गंध, दृश्य, श्रवण और स्वाद की पांच इंद्रियों में से कौन-सी इंद्रियां पौधों में भी पाई जाती है । अर्थात इनमें किस तरह के उद्दीपनों के प्रति पौधे प्रतिक्रिया देते हैं । इस सवाल ने वैज्ञानिकों और पौधों के जानकार लोगों को भी समान रूप से आकर्षित किया है । बेशक, पौधे प्रकाश को ग्रहण करने और उसका इस्तेमाल भोजन निर्माण में करने में सिद्धहस्त होते हैं । 
     अगर हम पौधों की श्रवण क्षमता के बारे में बात करें तो कामकाजी माली इस बात के पुरजोर समर्थक हैं कि पौधे आपकी बातचीत या संगीत का प्रत्युत्तर देते हैं । वैज्ञानिक इस बात को महज एक दिलचस्प बात कहकर नकार देते हैं । अलबत्ता यह सवाल कि क्या पौधे खुशबू को महसूस कर उस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, अब भी पूरी तरह खुला हुआ है जिस पर वैज्ञानिकों का जवाब आना बाकी है ।
    मगर पौधों द्वारा स्पर्श को महसूसने और उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने का मुद्दा अब स्पष्ट होता जा रहा है । जी हां, पौधे आपके स्पर्श पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और इसके लिए वे न सिर्फ अपनी जैव रासायनिक अभिक्रियाआेंको संयोजित करते हैं बल्कि परिस्थिति और सुरक्षा जरूरतों के अनुरूप अपने आकार एवं माप को ढालते भी हैं । वैज्ञानिक साहित्य में इस तरह की प्रतिक्रियाके लिए थिगमार्फोजेनेसिस शब्द हैं ।
    पौधे हवाआें का ध्यान रखते हुए अपनी लम्बाई को कम करते हैं और तने को चौड़ा करते हैं । पौधे छूने पर प्रतिक्रिया देते हैं । इसके लोकप्रिय उदाहरण शर्मीला और एकांतप्रिय पौधा टच-मी-नाट, छुई-मुई (मिमोसा प्यूडिसा) और मांस भक्षी वीनस फ्लाई ट्रैप (डिओनिया म्युसिपुला) हैं मगर इनके अलावा भी सारे पौधे बारिश या हवाआेंसे उत्पन्न स्पर्श संवेदना या कंपन पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं ।
    इस बात की खोजबीन के लिए जिस पौधे को वैज्ञानिकोंने आदर्श रूप से चुना वह है सरसों कुल का अरेबिडोप्सिस थैलिआना जो आसानी से गमलों में उगाया जा सकता है और इसका जीवन चक्र भी छह हफ्तों का ही होता है । इसमें बीज भी काफी मात्रा में आते हैं और इसके डीएनए का अनुक्रमण किया जा चुका       है । विकास के दौरान यदि इसकी पत्तियों को धीरे-धीरे आगे पीछे झुलाया जाए, तो पौधे में फूल देर से आते हैं, तने और डंठल छोटे होते  हैं ।
    टेक्सास के राइस विश्वविद्यालय के डॉ. जेनेट ब्राम का समूह पिछले कुछ समय से थिगमार्फोजेनेसिस  की कार्यप्रणाली का अध्ययन कर रहा है । उनके हालिया प्रकाशित पर्चे में बताया गया है कि इस पर जेस्मोनेट का खासा प्रभाव पड़ता है । नाम से ही पता चलता है कि जेस्मोनेट जेस्मीन यानी चमेली से सम्बंधित है । यह रसायन चमेली के तेल में पाया जाता है । अपनी भीनी खुशबू के अलावा जेस्मोनेट एक वनस्पति हार्मोन भी है जो पौधे की जैव रासायनिक, कोशिका, क्रियाआेंऔर सुरक्षा प्रक्रियाआें को शुरू करने का काम करता है । इस पर्चे में यह भी बताया गया है कि जेस्मोनेट पौधे की कीटों से रक्षा भी करता है ।
    प्रयोग के दौरान पौधे को धीरे से छूने के अलावा हिलाना-डुलाना भी शामिल था । इस प्रयोग में उन्होंने पाया कि पौधे को जितना अधिक छुआ गया पौधे ने उतना ही अधिक जेस्मोनेट बनाया । इसके परिणाम-स्वरूप पौधे का पुष्पन देर से हुआ साथ ही फूलोंके डंठल और पत्तियों के समूह भी छोटे बने ।
    ड्डस तरह के परिणामोंसे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जब कीटों का कोई झुंड इन पौधों पर इन्हें खाने के लिए आता है तो पौधे खुद को इनसे बचाने के लिए जेस्मोनेट का सहारा लेते हैं । यह एक मायने में प्रेरित थिग्मोमार्फोजेन  है । यह हार्मोन जीन के पूरे समूह को नियंत्रित करता है जिसके जरिए न सिर्फ उसके विकास के पैटर्न को नियंत्रित करता है बल्कि कीटों से सुरक्षा भी प्रदान करता है । यह प्रभाव तब और स्पष्ट हो गया        जब इसकी संवेदनशीलता का परीक्षण करने के लिए पौधे पर बाहर से फंफूद का आक्रमण कराया    गया । ऐसी स्थिति में जिस पौधे को ज्यादा हिलाया गया था उसने फंफूद और एक कीट के विरूद्ध बेहतर प्रतिरोध प्रदर्शित किया ।
    श्री ब्राम कहते हैं कि यांत्रिक उद्दीपनों (हिलाने-डुलाने) से प्रभावित पौधे बाह्य आक्रमणकारियों से अपनी रक्षा करने में कहीं बेहतर सक्षम होते हैं । शायद हवा, जो कवक के बीजाणु प्रसार का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम होती है, पौधों को संभवित संक्रमण के लिए तैयार करने मेंमदद करती है । कीटों के झुंड के पौधे पर उतरने से होने वाली हलचल या पौधों के आसपास से बड़े जानवरों के निकलने से पौधों का हिलना-डुलना पौधों को जेस्मोनेट उत्पादन करने को उकसाता है । अगर ऐसी हलचल आक्रमण की चेतावनी हो तो सुरक्षा के लिए तैयार होने में मददगार होती है ।
    पौधों का जीवन जो हमें बाहर से इतना नििष् क्रय या खामोश-सा लगता है, वास्तव में वैसा है नहीं । पौधे जिस वातावरण में रहते हैं वहां अपने दुश्मनों से अपनी रक्षा करने और उनका सामना करने के लिए      तैयार है । अवश्य ही उत्साही जन यह पूछ सकते हैं कि क्या दृश्य और स्पर्श जैसी संवेदनाएं ही पौधों में होती हैं, जिसके प्रति वे प्रतिक्रिया करते हैं ? कई लोग यह दावा भी कर सकते हैं कि पौधें ध्वनियों पर भी प्रतिक्रिया देते हैं ।    
    डॉ. मोनिका गैग्लिआनो सहित पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया विश्वविघालय के कुछ शोधकर्ताआें ने एक शोध के बाद यह दावा किया कि मकई की नई जड़ें लगातार क्लिक की आवाज करती रहती हैं । उन्होनें यह भी पाया कि जब मकई की इन नई जड़ों को पानी में डुबाया गया और एक तरफ से लगातार २२० हट्र्ज का कंपन प्रसारित किया गया तो पाया गया कि जड़ें उस कंपन स्त्रोत की तरफ मुड़ गई । यह कंपन उस रेंज के भीतर ही है जो खुद मकई की जड़ों में निकलते देखे गए थे । यह कहना जल्दबाजी होगी कि हम तो यह बात पहले से ही जानते थे और हमारे संगीतकार तो पहले ही यह साबित कर चुके हैं । और तो और, कहा तो यहां तक जाता है कि हमारे संगीतज्ञ तो अलग-अलग पौधों से प्रतिक्रियापाने के लिए अलग-अलग रागों का चुनाव भी कर चुके थे । इंटरनेट पर ऐसी ढेर जानकारियां पड़ी हैं जिनके गहन वैज्ञानिक सत्यापन और जांच की जरूरत है । इसके बगैर तो ये सिर्फ अटकलेंही हैं ।

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