मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

कविता
बसंत
सुमित्रानंदन पंत

    चंचल पग दीपशिखा के धर
    गृह मग वन में आया वसंत ।
    सुलगा फागुन का सूनापन
    सौंदर्य शिखाआें में अनंत ।
            सौरभ की शीतल ज्वाला से
            फैला उर-उर में मधुर दाह
            आया वसंत भर पृथ्वी पर
            स्वर्गिक सुन्दरता का प्रवाह ।
    पल्लव पल्लव में नवल रूधिर
    पत्रों में मांसल रंग खिला
    आया नीली पीली लौ से
    पुष्पो के चित्रित दीप जला ।
            अधरों की लाली से चुपके
            कोमल गुलाब से गाल लजा
            आया पंखड़ियों को काले -
            पीले धब्बों से सहज सजा ।
    कलि के पलकों में मिलन स्वप्न
    अलि के अंतर मेंप्रणय गान
    लेकर आया प्रेमी वसंत -
    आकुल जड़-चेतना स्नेह-प्राण ।

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