रविवार, 14 अप्रैल 2013

प्रसंगवश
अरावली बचाने का निर्णय
    प्रसंगवश प्राकृतिक संपदा का ज्यादा से ज्यादा दोहन वर्तमान आर्थिक विकास का आधार है, पर देश में जिस बेशर्मी से यह दोहन जारी है, उस परिप्रेक्ष्य में मौजूदा आर्थिक विकास की निरन्तरता तो बनी हीं नहीं रह सकती, दीर्घकालिक दृष्टि से देखें, तो विकास की यह अवधारणा उस बहुसंख्यक आबादी के लिए जीने का भयावह संकट खड़ा कर सकती है, जिसकी रोजी-रोटी प्रकृति पर ही निर्भर है । इसी लिहाज से सुप्रीम कोर्ट ने २००२ में अरावली पर्वत श्रृंखला में उत्खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था, पर पिछले १०-११ वर्षो में इस पर अमल नहीं हुआ है ।
    नतीजजन, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने एक बार फिर दुनिया की इस सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला को बचाने के लिए आदेश जारी किया है । इसके तहत् दिल्ली से सटे गुड़गांव के पूरे अरावली क्षेत्र में सड़क निर्माण व पेड़ों के काटने पर रोक लगा दी गई है । विकास के बहाने पर्यावरण संरक्षण को अकसर नजरअंदाज कर दिया जाता है, पर इस बार इस फैसले से यह संदेश प्रचारित हुआ है कि पर्यावरण सुरक्षा के हितार्थ कड़े कदम उठाए जा सकते हैं । आज का सीमेंट, कंक्रीट और लोहे की संरचनाआें से जुड़ा विकास हो या कम्प्यूटर और संचार क्रांति से जुड़ा प्रौघोगिक विकास सब प्राकृतिक संपदा पर ही आश्रित है ।
    इस विकास का माध्यम जल, जंगल, जमीन तो हैंही, खनिज, जीवाष्म ईधन और रेडियोएक्टिव तरल पदार्थ भी हैं । ये संपदाएं अब अकूत नहीं रहीं । इनके भंडार भी रीत रहे हैं । अत: न्यायाधिकरण ने गुडगांव, फरीदाबाद और मेवात क्षेत्र के ५४८ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में खनन को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया है । ऐसा इसलिए कि खनन क्षेत्र में शर्तो के मुताबिक पर्यावरण सुधार के प्रावधानों को अमल में नहीं लाया जा रहा   था । न्यायालय एवं सरकार से बेखौफ होकर सूरजकुंड कीपहाड़ियों में बड़े पैमाने पर गैर कानूनी निर्माण हो रहा था । फार्म हाउस, इमारतें और रिसोर्ट बनाए जा रहे थे । जो पहाड़ियां एक समय वनों से आच्छादित रहती थी, बंजर बना दी गई ।
    अब अरावली की हरियाली लौटाने की दृष्टि से न्यायाधिकरण ने बड़े पैमाने पर पेड़ लगाने की योजना बनाई है और क्षेत्र में कचरा फेकनें पर रोक लगा दी है ।

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