बुधवार, 12 जून 2013

पर्यावरण समाचार
राजनीतिक दलों की प्राथमिकता नहीं है, पर्यावरण
    पिछले दिनों इन्दौर की प्रमुख सामाजिक संस्था सेवा सुरभि द्वारा क्यों नहीं सुधरता पर्यावरण विषय पर जाल सभागृह में परिसंवाद का आयोजन किया गया । परिसंवाद को प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह, पर्यावरण डाइजेस्ट के संपादक डॉ. खुशालसिंह पुरोहित, झाबुआ के युवा पर्यावरण कार्यकर्ता नीलेश देसाई और एप्को के पूर्व निदेशक उदयराज सिंह ने संबोधित किया । 

    सामाजिक कार्यकर्ता अनिल त्रिवेदी ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि हमने जब से मनुष्य को प्रकृति से अलग किया है तभी से हमारा पर्यावरण बिगड़ा है । अपने संबोधन में डॉ. पुरोहित ने कहा कि मनुष्य को जब से पर्यावरण के मालिक होने का भ्रम हुआ तभी से यह बिगड़ना शुरू हुआ । पर्यावरण अपने आप नहीं बिगड़ता, पहले वातावरण बिगड़ता है, फिर आचरण बिगड़ता और अंत में पर्यावरण बिगड़ता है । इसलिये सुधार के लिये भी हम वातावरण और आचरण सुधारेंगे तो पर्यावरण अपने आप सुधर जायेगा । जब तक राजनीतिज्ञ पर्यावरण के मुद्दे को प्राथमिकता नहीं बनायेंगे तब तक देश का पर्यावरण नहीं सुधरेगा ।
    जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि हम नीर, नारी और नदी के साथ समाज के रिश्तों को भुल गए है ।
    अतिथि स्वागत अरविन्द बागड़ी, मोहन अग्रवाल, कमल कमलवानी और मोहित सेठ ने   किया । स्मृति चिन्ह डॉ. ओ.पी. जोशी, मुकुंद कारिया, डॉ. जी.एस. नारंग और अवतारसिंह सैनी ने भेंट किए । संचालन संजय पटेल ने   किया । इस अवसर पर किस मौसम में कहां, कब और कौन से पौधे लगाए जाए, इस आशय की पुस्तिका और नो-हॉर्न प्लीज के स्टीकर जारी किए गए । कार्यक्रम संयोजक कुमार सिद्धार्थ ने आभार प्रकट किया ।

आंखो की कमजोरी से हो रहा २०३५०० करोड़ का नुकसान
    दुनिया के सबसे बड़े चश्मा निर्माताआें मे से एक एसिलॉर के चेयरमेन हबर्ट साग्नियर्स के अनुसार भारत में लोगों की आंख कमजोर होने के कारण देश को सालाना उत्पादकता में लगभग २०३५०० करोड़ रूपयों का नुकसान हो रहा है। 

    दृष्टिदोष के कारण  होने वाले सामाजिक आर्थिक प्रभाव के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए बैंगलोर में शुरू किए जा रहे वैश्विक संस्थान की शुरूआत के अवसर पर आए श्री साग्नियर्स ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन का हवाला देते हुए उक्ताशय का दावा किया है । इस अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में देश की जनसंख्या के आधा यानी ५५ करोड़ लोगों को नेत्र चिकित्सा की जरूरत है, लेकिन ये लोग इस ओर ध्यान नहीं देते । बहुत से मामलों में विशेषकर बच्चें के मामलों में उन्हें इस बात की जागरूकता ही नहीं है कि उन्हें नेत्र चिकित्सा की जरूरत है ।
    श्री साग्नियर्स ने बताया कि आंख कमजोर होने पर कुछ वर्षो तक तो मस्तिष्क इस कमी की पूर्ति कर देता है लेकिन एक समय के बाद समस्या मस्तिष्क के काबू के बाहर हो जाती है । इसका मतलब यह हुआ कि प्रारंभ में तो मस्तिष्क दृष्टि दोष की समस्या का मुकबला करता है लेकिन बाद में थक जाता है । नजरों की समस्या बच्च्े के परीक्षा परिणाम पर गंभीर एवं सीधा प्रभाव डालती है। इसके अलावा देश की कुल आबादी में से ४२ फीसदी कर्मचारियों, ४२ फीसदी वाहन चालकों एवं ४५ फीसदी वृद्धजनों को नेत्र चिकित्सा की आवश्यकता है ।

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