बुधवार, 12 जून 2013

हमारा भूमण्डल
मोबाइल फोन से मौसम की भविष्यवाणी
प्रवीण कुमार

    मोबाइल को अस्तित्व में आए बमुश्किल चार दशक ही हुए होंगे, लेकिन इतने कम समय में ही यह दुुनिया का सबसे बहुपयोगी आविष्कार बन  गया है । यह परोक्ष रूप से मनुष्य की एक नई इंद्रिय के रूप में कार्य कर रहा है । कई लोग इसे अपने शर्ट के पॉकेट में रखते है, लेकिन जल्दी ही ऐसा भी मोबाइल आ सकता है जिसे घड़ी की तरह कलाई पर पहना जा सकेगा ।
    मोबाइल फोन की शुरूआत १९७३ में हुई थी । वर्ष २०११ तक इनकी संख्या ४.६ अरब को पार कर गई थी । भारत में आधी आबादी के  पास एक या एक से अधिक मोबाइल फोन हैं । एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में प्रति सेकंड ४.२ अरब लोग एक-दूसरे से अपने मोबाइल पर बात करते हैं । मोबाइल फोन की इतनी अधिक संख्या के कारण जल्दी ही इसका नया अवतार भी देखने को मिल सकता है । मोबाइल मौसम पर निगरानी भी रख सकेगा । हाल ही मेंडच अनुसंधानकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मोबाइल फोन मौसम की भविष्यवाणी करने में कारगर साबित हो सकता है ।


     मौसम के बारे में पूर्वानुमान कृषि, जलवायु अनुसंधान और बाढ़ प्रबंधन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण  है । लेकिन मौसम संबंधी, खासकर बारिश के, आंकड़ों को जुटाना बेहद खर्चीला काम है । हालांकि इसके लिए वर्षामापी यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन रॉयल नीदरलैंड मौसम विज्ञान संस्थान के आर्ट ओवेरीम की मानें तो हाल के वर्षो में दुनिया में इन उपकरणों की संख्या आधी रह गई है । इससे बारिश के सटीक आंकड़े जुटाना और भी मुश्किल हो गया है ।
    यह एक सर्वविदित तथ्य है और आपने अनुभव भी किया होगा कि बारिश में मोबाइल के सिग्नल कमजोर हो जाते हैं । जितनी अधिक बारिश होगी, बारिश की बूंदें उतनी ही बड़ी होंगी, और मोबाइल के सिग्नल उतने ही कमजोर होंगे । हाल ही में प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (९ फरवरी २०१३) में प्रकाशित अपने एक अध्ययन में ओवेरीम कहते हैं कि उन्होनें लगातार बारह दिन तक मोबाइल फोन से आंकड़े एकत्र किए और फिर उनकी तुलना पारंपरिक रूप से एकत्र आंकड़ों के साथ की । निश्चित रूप से जिन क्षेत्रों में माइक्रोवेव लिंक्स कमजोर होंगे, वहां  मोबाइल फोन से एकत्र आंकडों की विश्वसनीयता थोड़ी कम रहेगी ।
    अफ्रीका में वर्षामापी यंत्रों की संख्या बहुत कम है, लेकिन मोबाइल फोन की संख्या लगतार बढ़ती जा रही है । वहां मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संंख्या विकसित देशों की तुलना में दुगनी गति से बढ़ रही है । एक योजना सोची जा रही है, जिसमें ऐसा सिस्टम बनाया जाएगा, जिसमें मोबाइल फोन धारक अपने-अपने इलाके या गांव के मौजूदा मौसम का हाल टेक्स्ट मैसेज के जरिए एक केन्द्र  को भेजेंगे । उस केन्द्र मेंऐसे संदेशों का रिकॉर्ड रखा जाएगा और उनकी तुलना मौसम उपग्रहों से प्राप्त् आंकड़ों के साथ की जाएगी । सूचनाआें का मुख्य स्त्रोत अफ्रीका में स्थापित पांच हजार मोबाइल फोन स्टेशन होंगे । इस प्रोजेक्ट में सोनी एरिक्सन (स्वीडन की टेलीकॉम दिग्गज) और जैन (मध्य पूर्व एवं अफ्रीका में मोबाइल फोन ऑपरेट करने वाली सबसे बड़ी कंपनी) को शामिल किया गया है । इस कवायद मेंपूरे अफ्रीका में स्थित मोबाइल फोन स्टेशनों का इस्तेमाल किया जाएगा ।
    फिलहाल मौसम एजेंसियां वर्षामापी का इस्तेमाल करती हैं । लेकिन महंगे होने के कारण सभी देशों में इनका उपयोग नहीं किया जा रहा । ब्रिटेन जैसे देशों में तो सर्दियों में वे जम जाते हैं और इसलिए बहुत ज्यादा विश्वसनीय नहीं रह जाते । और तो और, हाल के वर्षो में इन वर्षामापी यंत्रों की संख्या में बहुत तेजी से गिरावट आई है ।
    मौसम संबंधी आंकड़ों में मोबाइल फोन की उपयोगिता का परीक्षण करने के लिए रॉयल नीदरलैंड मौसम विज्ञान संस्थान की वेजनिन्गन यूनिवर्सिटी ने टी.मोबिल एनएल द्वारा संचालित २४०० लिंक्स से सिग्नल हासिल किए । ये सिग्नल २०११ में १२ दिन की अवधि के दौरान हासिल किए गए थे । इन आंकड़ों की तुलना जब मौसम राडार और वर्षामापी यंत्रों से प्राप्त् आंकड़ों के साथ की गई तो उनमें काफी तालमेल देखा गया ।
    ब्रिटेन में राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान परिषद द्वारा वित्त पोषित अनुसंधानकर्ताआें ने बोल्टन के नजदीक यह दिखाने के लिए एक मॉक मोबाइल फोन नेटवर्क स्थापित किया है कि बारिश के पानी को मापने में इसका किस तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है । यूरोपियन प्रोजेक्ट के तहत ऐसे कुछ और प्रदर्शन आने वाले दिनों में जर्मनी और इटली में किए जाएंगे । विभिन्न देशों में किए जा रहे अनुसंधान संकेत दे रहे हैं कि इस तकनीक का इस्तेमाल बाढ़ की पूर्व चेतावनी देने में किया जा सकता है ।
कैसेकाम करता है सेल फोन ?
    सेल या मोबाइल फोन रेडियो फ्रिक्वेंसी तरंगों पर कार्य करते हैं, जिनका प्रसारण बेस स्टेशन या टॉवरों से किया जाता है । ये टॉवर इनती ऊंचाई पर होते हैं कि वे पूरी रेंज को कवर करने के लिए पर्याप्त् होते हैं । ये रेडियो फ्रिक्वेंसी तरंगें एफएम रेडियो तरंगों से लेकर माइक्रोवेव तक होती है । प्रकाश और गर्मी की तरह ये भी गैर-आयनीकारक विकिरण के रूप में होती हैं और इसलिए डीएनए के केमिकल बांड्स को सीधे ब्रेक नहीं कर सकती । जब आप मोबाइल फोन से कॉल करते है तो फोन का एंटीना रेडियो-फ्रिक्वेंसी तरंगों के माध्यम से निकटतम बेस स्टेशन तक सिग्नल भेजता है और फिर आवाज के सिग्नल बेस स्टेशन को स्थानांतरित किए जाते हैं । फिर वहां से वे स्विचिंग सेंटर भेजे जाते हैं जहां से कॉल को गंतव्य स्थानांतरित किया जाता है ।

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