बुधवार, 12 जून 2013

प्रसंगवश
बोगनवेलिया की बहार
    कहते हैं, नाम में क्या रखा है । लेकिन कई नाम हमें चीजों की जड़ तक पहुंचा देते है । मैने जब पहली बार बोगेनविल का नाम पढ़ा तो मन में खटका हुआ कि कहीं रंग-बिरंगे खुबसूरत बोगेनविलया के फूलों के साथ इसका कोई रिश्ता तो नहीं है । बोगेनविलया का इतिहास खोजा तो रहस्य का पता लग गया । बोगेनविल का बोगेनविलया से सीधा रिश्ता यह है कि सुंदर फूलों वाली इस आरोही झाड़ी का नाम पेरिस में जन्में फ्रांसीसी एडमिरल और अन्वेषक लुई एंतोइने दे बोगेनविल के नाम पर रखा गया है । जबकि इसकी खोज १७६८ में फ्रांसीसी प्रकृति विज्ञानी डॉ. फिलबर्ट कामरकान ने ब्राजील की राजधानी रियो डि जेनेरो में की थी । लेकिन इस पौधे का नाम खुद उन्होनें अपने प्रिय एडमिरल और अन्वेषक दोस्त बोगेनविल के नाम पर रख दिया ।
    मैंने लाल, गुलाबी और सफेद बोगेनविलया की झाड़ियां पहली बार १९६३-६४ में नैनीताल और भुवाली से आगे सात ताल में देखी थी जिन्हें मैं देखता ही रह गया था । फिर कहीं पढ़ा कि ये फूल प्रशांत महासागर में स्थित खूबसूरत ताहिती द्वीप में देखे गए । अपनी विश्व परिक्रमायात्रा में बोगेनविल अप्रैल १७६८ में ताहिती द्वीप के पास पहुंचे । वहां घूमते हुए उन्हें लगा जैसे वह स्वर्ग में पहुंच गए हैं । पेड़-पौधे फलों से लदे थे । लोग बहुत सीधे-सादे और मिलनसार थे । वे सुखी जीवन जी रहे थे । १७७० में जेम्स कुक भी ताहिती पहुंचे थे । ताहिती द्वीप में मुझे पेरिस में जन्मे अपने प्रिय चित्रकार पाल गेगा की याद आई जो युरोपीय सभ्यता और परम्पराआें से ऊब कर तीन जुलाई १८९५ को फ्रांस छोड़कर सदा के लिए ताहिती चले गए थे । वहां रहकर उन्होंने ताहिती के शानदार लैंडस्केप और जन जीवन के सैकड़ों चित्र बनाए । मैं पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में था तो छात्र-मित्र अरूण तिवारी ने मेरे पढ़ाई के कक्ष की एक दीवार पर मेरे इस प्रिय चित्रकार के चित्र अकेली की बड़ी सी अनुकृति बना कर लगा दी थी । चार्ल्स डार्विन ने भी १८३५ में एमएस बीगल जहाज में ताहिती की यात्रा की थी । बोगेनविल की परिक्रमायात्रा के बीस वर्ष बाद १७८९ में फ्रांसीसी वनस्पति विज्ञानी एंतोइने लारेत दे जुसियू ने पौधों के वर्गीकरण पर लिखे अपने प्रसिद्ध ग्रंथ जेनेरा प्लांटेरम में इसका बोगेनविलया नाम से वर्णन किया ।   देवेन्द्र मेवाड़ी

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