गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

पर्यावरण परिक्रमा
अब तक शहीद शब्द को परिभाषित नहीं किया गया

सेना और अर्धसैनिक बलों के जवानों को मुआवजा और सम्मान प्रदान करने में किसी तरह का भेदभाव किये जाने को सिरे से खारिज करते हुए गृह मंत्रालय ने कहा है कि भारत सरकार ने कहीं पर भी शहीद शब्द को परिभाषित नहीं किया है ।
    सूचना के अधिकार के तहत गृह मंत्रालय के पुनर्वास एवं कल्याण निदेशालय से प्राप्त् जानकारी के अनुसार, सरकार द्वारा केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलोंतथा रक्षा बलों में दोहरा मानक नहीं अपनाया जाता है तथा न ही कोई फर्क किया जाता है । केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलोंतथा रक्षा बलों की सेवा शर्ते विभिन्न अधिनियमों तथा नियमों के तहत प्रशासित होती हैं । इन नियमों के अन्तर्गत दिए गए प्रावधानों के अनुसार ही ये बल कार्य करते हैं और इन्हीं के अनुसार सेवाकाल एवं सेवानिवृत्ति के लाभों के पात्र हैं । गृह मंत्रालय के पुनर्वास एवं कल्याण निदेशालय ने कहा भारत सरकार द्वारा कहीं पर भी शहीद शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है ।
    सरकार विभिन्न सशस्त्र बलों के कर्मियों द्वारा किये गये बलिदान में कोई भेदभाव नहीं करती है । आर.टी.आई. के तहत् मंत्रालय ने बताया कि केन्द्रीय सशस्त्र बलों के ऐसे कर्मियों को जिनकी कर्तव्य निर्वहन के दौरान मृत्यु हो गई हो, उनके संबंध में गृह मंत्रालय की ओर से कोई आदेश या अधिसूचना (शहीद या मृत घोषित करने के संबंध में) जारी नहीं की गई है ।
तेजी से पिघल रहा है हिमालय
    पिछले १०० वर्षो में हिमालय के पश्चिमोत्तर हिस्से का तापमान १.४ डिग्री सेल्सियस बढ़ा है, जो कि शेष विश्व के तापमान में हुए औसत इजाफे (०.५-१.१ डिग्री सेल्सियस) से अधिक है । रक्षा शोध एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) और पुणे विश्वविघालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकोंने क्षेत्र में बर्फबारी और बारिश की विविधता का अध्ययन किया और पाया कि बढ़ती गर्मी के कारण सर्दियों की शुरूआत देर से हो रही है और बर्फबारी में कमी आ रही हैं ।
    शोधकर्ताआें ने पाया कि पश्चिमोत्तर हिमालय का इलाका पिछली शताब्दी में १.४ डिग्री सेल्सियस गर्म हुआ है, जबकि दुनिया भर में तापमान बढ़ने की औसत दर ०.५ से १.१ डिग्री सेल्सियस रही है । शोध का नेतृत्व करने वाली डीआरडीओ के वैज्ञानिक एमआर भुटियानी ने बताया कि अध्ययन का सबसे रोचक निष्कर्ष है कि पिछले तीन दशकों के दौरान पश्चिमोत्तर हिमालय क्षेत्र के अधिकतम और न्यूनतम तापमान में तेज इजाफा, जबकि दुनिया के अन्य पर्वतीय क्षेत्रों जैसे कि आल्प्स और रॉकीज में न्यूनतम तापमान में अधिकतम तापमान की अपेक्षा अधिक तेजी से वृद्धि हुई है ।
    श्री भुटियानी ने कहा इस इलाके के गर्म होने की मुख्य वजह भी यही है । उसके अधिकतम और न्युनतम तापमान में वृद्धि होना । खासतौर पर अधिकतम तापमान में तेजी से वृद्धि होना । इस क्षेत्र से संबंधित आंकड़े भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी), स्त्रो एंड अवलांच स्टडी इस्टेब्लिशमेंट (एसएसई) मनाली और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रापिकल मीटरोलॉजी से जुटाए गए थे । अध्ययन के मुताबिक वर्ष १८६६ से २००६ के दरमियान मानसून और बारिश के औसत समय मेंभी महत्वपूर्ण कमी आई है ।
    ठंड के दिनों में अब बर्फबारी कम और बारिश अधिक हो रही है । इसके अलावा ठंड के मौसम की अवधि पर भी नकारात्मक असर पड़ा है । ये सारे संकेत इलाके के   पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों को दर्शाते हैं ।
एबी ब्लड ग्रुप वालों की याददाश्त होती है कमजोर
    एक शोध में कहा गया है कि जिन लोगों का ब्लड ग्रुप एबी है उनमें ज्यादा सोचने और याददाश्त कमजोर पड़ने की समस्या ज्यादा होती है । इसी वजह से भविष्य में उन्हें अन्य रक्त समूहों वाले लोगों की अपेक्षा मनोभ्रंश होने का खतरा ज्यादा रहता है । बलिगंटन मेंे यूनिवर्सिटी ऑफ वरमॉन्ट के कॉलेज ऑफ मेडिसीन में शोधरत मेरी कशमैन ने बताया कि हमारे शोध में ब्ल्ड ग्रुप और संज्ञानात्मक हानि पर अध्ययन किया गया ।
    जिन लोगों का रक्त समूह एबी होता है उनमें स्मृति संबंधी समस्याएं होने का खतरा अन्य लोगों की अपेक्षा ८२ फीसदी ज्यादा होता है । ब्लड ग्रुप स्ट्रोक जैसी दिल की बीमारियों से भी संबंधित है, इसलिए परिणाम संवहनी और मस्तिष्क स्वास्थ्य के बीच संबंध को दर्शाते हैं । यह अध्ययन एक बड़े अध्ययन (रीजंस फॉर जियोग्राफिक एण्ड रेशल डिफरेंसेज इन स्ट्रोक) का  हिस्सा था जिसमें ३०००० से ज्यादा लोग शामिल थे । अध्ययन में पाया गया कि एबी ब्लड ग्रुप वाले समूह में छह फीसदी लोगों को संज्ञानात्मक हानि हुई, जो कि अन्य लोगों के समूह में चार फीसदी थी ।
    शोधकर्ताआें ने रक्त जमने में मदद करने वाले फैक्टर सात पर भी नजर डाली । फैक्टर सात उच्च् स्तर होने से संज्ञानात्मक हानि का खतरा ज्यादा होता है । एबी ब्ल्ड ग्रुप के लोगों में अन्य ब्लड ग्रुप के लोगों की अपेक्षा फैक्टर सात का औसत स्तर अधिक पाया गया ।
अंटार्कटिका मेंअब माउंट सिन्हा
    अमेरिका ने अंटार्कटिका के एक पर्वत का नामकरण एक प्रतिष्ठित भारतवंशी वैज्ञानिक के नाम पर किया गया है । यूनिवर्सिटी ऑफ मिन्नेसोटा मेंडिपार्टमेंट ऑफ जेनेटिक्स, सेल बायोलॉजी एण्ड डेवलपमेंट में सहायक प्रोफेसररहे अखौरी सिन्हा के नाम पर अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने पर्वत का नामकरण माउंट सिन्हा रखा      है ।
    वर्ष १९७१-७२ में किए गए उनके कार्य के लिए अमेरिकी भूगर्भ सर्वेक्षण ने उन्हें सम्मानित किया है । सिन्हा उस दल के सदस्य थे, जिन्होनें वर्ष १९७२ और १९७४ में बेलिंगशॉसेन और आमंडसेन समुद्री क्षेत्र में अमेरिकी कोस्ट गार्ड कटर्स साउथविंड और ग्लेशियरों में सील, व्हेल और पक्षियों पर्वत का नामकरण अंटार्कटिका नेम्स (यूएस-एसीएएन) और अमेरिकी भूगर्भ सर्वेक्षण की सलाहकार समिति द्वारा किया गया ।
    माउंट सिन्हा पर्वत (९९० मीटर) मैकडोनाल्ड पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी हिस्से एरिकसन ब्लफ्स के दक्षिण पूर्वी छोर पर स्थित है । श्री सिन्हा ने कहा कि कोई भी गूगल डॉट कॉम या बिंग डॉट कॉम पर माउंट सिन्हा को देख सकता है । अखौरी सिन्हा ने कहा कि यह सम्मान यह दिखाता है कि आप सक्षम है इसलिए आज लोगों से संपर्क करनेसे नहीं डरना चाहिए और हर अवसर को आजमाना  चाहिए । श्री सिन्हा ने वर्ष १९५४ में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की थी । इस नामकरण से भारतीय वैज्ञानिक को प्रतिष्ठा मिली है और इससे देश का गौरव बढ़ा है ।
चूहे में डाला इंसानी दिमाग
    मस्तिष्क के प्रत्यारोपण की दिशा में वैज्ञानिकों ने एक अहम कदम आगे बढ़ाया है । मानव दिमाग का अहम जीन जब उन्होनें चूहे में प्रत्यारोपित किया तो पाया कि चूहे का दिमाग सामान्य से ज्यादा तेज चलने लगा । रिसचरों के मुताबिक इस प्रयोग का लक्ष्य यह देखना था कि अन्य प्रजातियों में मानव दिमाग का कुछ हिस्सा लगाने पर उनकी प्रक्रिया पर कैसा असर पड़ता है । इस तरह के प्रत्यारोपण के बाद चूहा अन्य चूहों के मुकाबले अपना खाना ढूंढने में ज्यादा चालाक पाया गया । उसके  पास नए तरीकों की समझ देखी गई ।
    एक जीन के प्रभाव को अलग करके देखने पर क्रमिक विकास के बारे मेंभी काफी कुछ पता चलता है कि इंसान में कुछ बेहद अनूठी खूबियां कैसे आई । यह बोलचाल और भाषा से संबंधित है, इसे फॉक्सपी २ कहते है । जिस चूहे में ये जीन डाला गया उसमें जटिल न्यूरॉन पैदा हुए और ज्यादा क्षमतावान दिमाग पाया गया । इसके बाद मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट के रिसचरों ने चूहे को एक भूलभुलैया वाले रास्ते में चॉकलेट ढूंढने की ट्रेनिंग दी । इंसानी जीन वाले चूहे ने इसे ८ दिनों में सीख लिया जबकि आम चूहे को इसमें ११ दिन लग गए ।
    इसके बाद वैज्ञानिकों ने कमरे से उन तमाम चीजों को निकाल दिया जिनसे रास्ते की पहचान होती हो । अब चूहे रास्ता समझने के लिए सिर्फ फर्श का की संरचना पर ही निर्भर थे । इसके विपरीत एक टेस्ट यूं भी किया गया कि कैमरे की चीजें वहीं रहीं लेकिन टाइल्स निकाल दी गई । इन दोनों प्रयोगों में आम चूहों को मानव जीवन वाले चूहों जितना ही सक्षम पाया गया । यानि नतीजा यह निकला कि उनको सिखाने में जो तकनीक इस्तेमाल की गई है वे   सिर्फ उसी के इस्तेमाल होने पर  ज्यादा सक्षम दिखाई देते हैं । मानव दिमाग का यह जीन ज्ञान संबंधी क्षमता को बढ़ाता है । यह जीन सीखी हुई चीजों को याद दिलाने में मदद करता है ।

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