सोमवार, 19 सितंबर 2016

वातावरण 
ताजमहल : धूमिल पड़ता प्रेम प्रतीक
डॉ.ओ.पी. जोशी

ताजमहल को आधुनिक विश्व का आश्चर्य कहा जाता है। आज यह स्मारक खतरे में है और इस पर मंडराते सारे खतरे मानव निर्मित हैं । परंतु इनसे निजात पाने का कोई प्रयास सामने नहीं आ रहा है । वैसे अब वहां पर्यटक के  हरने के समय को कम करने की प्रक्रिया पर चर्चा चल रही है । उम्मीद की जानी चाहिए कि इसके सकारात्मक प्रभाव सामने आंएगे ।
आगरा में यमुना किनारे बने ४०० वर्ष पुराने प्रेम के प्रतीक ताजमहल पर दो प्रकार के खतरे मंडरा रहे हैं । पहला खतरा ताज की बाहरी स्वरूप को प्रभावित कर रहा   है । यह ज्यादातर वायु प्रदूषण से जुड़ा है तो दूसरा खतरा इसकी नींव पर   है । यह यमुना के बहाव में परिवर्तन, पानी की कमी एवं उसके प्रदूषण से संबंधित है । ताज एवं प्रदूषण के संदर्भ में चिंताएं हमेशा से बनी रही हैं। 
सन् १९४० में भारतीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट में भाप के इंजन से पैदा धुएं से ताज पर किसी प्रकार के प्रभाव का कोई जिक्र  नहीं है। ताज के बाहरी भाग पर वायु प्रदूषण के प्रभाव के संदर्भ में संभवत: सर्वप्रथम सन् १९७७ में अमेरिका के न्यूजर्सी स्थित आर.टी. पी. एनवायरमेंटल एसो. केड़ा सुनिल हंगल ने अध्ययन कर बताया था कि डीजल जनरेटर्स से पैदा होने वाला धुआं ताज को खराब कर रहा है। उस समय शहर में कार्यरत ८० हजार जनरेटर्स सल्फर डायआक्साइड एवं नाइट्रोजन डायआक्साइड की मात्रा कारखानों से निकलने वाली गैसों से भी अधिक थी ।
बाद में आंध्र विश्वविद्यालय के पर्यावरणविद् प्रो.टी. शिवाजीराव ने भी जनरेटर्स के काले धुएं को ताज के लिए खतरनाक बताया    था । सन् १९८० के आसपास कुछ अध्ययनों से ज्ञात हुआ कि रेल्वे यार्ड, आगरा का ताप बिजलीघर एवं लोहा ढलाई के कारखानों से पैदा धुएं में उपस्थित गैसें भी ताज के लिए खतरनाक हैं । धुएं में मौजूद सल्फर डायआक्साइड तथा नाइट्रोजन सल्फाइड की संगमरमर पर प्रतिक्रिया से केल्शियम सल्फाइड व अन्य रसायन बनते हैं जो पीले रंग के तथा भूरे होते हैं । इन्हीं के कारण ताज में पीलापन दिखाई देता है इसे स्टोन केंंसर भी कहा जाता   है । 
सन् १९८३ में मथुरा तेलशोधक कारखाने की स्थापना के समय भी यह कहा गया था कि यहां से पैदा धुआं ताज को प्रभावित  करेगा । भारत सरकार के पर्यटन विभाग के सुझाव पर सन् १९९४ में आगरा विकास प्राधिकरण तथा पुरातत्व विभाग ने ताज सहित आगरा की अन्य इमारतों पर अध्ययन कर बताया था कि पर्यटकों की बढ़ती संख्या भी इन इमारतों के लिए खतरा पैदा कर रही है । ताज के अंदर व बाहर ध्वनि प्रदूषण निर्धारित स्तर से ज्यादा पाया गया । शोर की ध्वनि तरंगें भी ताज के लिए खतरनाक बतायी गयी । अधिक पर्यटकों के आने से बढ़ी नमी एवं ताज को छूने से शरीर की गर्माहट तथा हाथांे की गंदगी भी इसकी संुदरता को बिगाड़ रही है । 
सन् २००३ में किये गये एक अध्ययन में बताया गया था कि आगरा देश का ऐसा शहर है जहां वायु का प्रवाह प्रत्येक २०-२५ दिनों में बदल जाता है । राजस्थान से आने वाली हवा के साथ रेत के महीन कण उड़कर आते हैं वे ताज को नुकसान पहंुचाते हैं । ताज के आसपास के सूखे स्थानों से उड़ी धूल भी इसे प्रभावित करती है । आसपास स्थित श्मशानों से पैदा धुआं भी ताजमहल पर प्रभाव डालता है । यहां प्रतिदिन १०० दाहसंस्कार होते हैं । आगरा एवं मथुरा के मध्य बढ़ता आवागमन एवं सी.एन.जी. का उपयोग भी वायु प्रदूषण बढ़ाकर ताज को प्रभावित कर रहा है । 
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट अनुसार आगरा में सन् २०१४ के मुकाबले सन् २०१६ में धूल का प्रदूषण बीस गुना बढ़ा है । संगमरमर के बड़े बड़े पत्थरों को गिरने से रोकने के लिए लगायी गयी लोहे की बड़ी बड़ी कीलों का जंग भी पीलेपन का एक संभावित कारण हो सकता है ।
प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो आर. नाथ ने कुछ वर्षोंा पूर्व कहा था कि ताज की इमारत को बचाने पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है जबकि इसका आधार यानी नींव उपेक्षित है। वैसे ताज की नींव की जानकारी व्यवस्थित रूप से कहीं भी उपलब्ध नहीं है । न तो बादशाहनामा में एवं न ही औरंगजेब द्वारा पिता को लिखे गये पत्रों में इसका उल्लेख मिलता   है । काफी वर्षों पूर्व नींव की गहराई जानने हेतु नर्सरी के क्षेत्र में बोरिंग की गयी थी जिससे अनुमान लगाया गया था कि इसकी नींव ६२.३ फीट गहरी है। ताज की नींव को मजबूती के लिए यमुना से जल की मात्रा एवं उसकी शुद्धता दोनों जरुरी है । जल की मात्रा में कमी इसकी नींव में उपयोग की गई लकड़ी सिकुड़कर इमारत में असंतुलन पैदा कर सकती है । साथ ही प्रदूषित जल लकड़ी को सड़ा भी सकता है। सन् २०११ में आगरा के सांसद रामशंकर केरिया ने बताया था कि ताज की मीनारों के गिरने का खतरा बढ़ गया है । 
अप्रैल २०१४ में उ.प्र. सरकार के सिंचाई मंत्री ने यमुना से ताज के पास पानी छोड़ने की घोषणा की थी ताकि जलस्तर बढ़ सके एवं आर्द्रता बराबर बनी रहे । रुड़की इंजीनियरिंग कालेज के कुछ विशेषज्ञों ने अध्ययन कर बताया था कि ताज लगभग ८० से.मी. धंस गया है । संसद की विज्ञान प्रौद्योगिकी, पर्यावरण व वन पर, कांग्रेसी सांसद अश्विनी कुमार की अध्यक्षता में गठि त स्थायी समिति ने जुलाई २०१५ में संसद में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में बताया है कि यमुना का प्रदूषण ताज के लिए बहुत खतरा है। साथ ही समिति का यह भी कहना है कि ताज की सुंदरता को बचाने हेतु सरकारी विभाग एवं एजेंसियां कठोर कदम नहीं उठा रही हैं । देश की शान एकं प्रेम के इस महान प्रतीक को प्रदूषण के प्रहारों से बचाना अनिवार्य है ।

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