सोमवार, 19 सितंबर 2016

विज्ञान हमारे आसपास
टाइटेनियम की खोज की कहानी 
डॉ. विजयकुमार उपाध्याय

टाइटेनियम एक प्रमुख धात्विक तत्व है जिसका रंग चांदी के समान सफेद हैं । इसका रासायनिक संकेत ढळ तथा परमाणु संख्या २२   है । 
इस तत्व के पांच समस्थानिक पाए जाते हैं जिनमें सबसे अधिक प्रचुरता ४८ परमाणु भार वाले समस्थानिक की है जो कुल समस्थानिकों का ७३ प्रतिशत है । इसका आपेक्षिक घनत्व ४.५१ गलनांक १६६८ डिग्री सेल्सियस तथा क्वथनांक ३२६० डिग्री सेल्सियस है ।
टाइटेनियम की खोज कुछ विलम्ब से हुई । सन् १७८९ में इंग्लैण्ड के एक पादरी विलियम ग्रेगर ने इल्मेनाइट खनिज से सफेद रंग का एक धात्विक ऑक्साइड पृथक किया । उन्होंने इसका नाम मेमाकिन रखा था । 
सन १७९५ में जर्मन रसायनविद एम. क्लैथपरोथ ने रूटाइल नामक अयस्क से भी एक धात्विक ऑक्साइड पृथक किया तथा इसका नाम टाइटेनियम रखा । यूनानी मायथॉलॉजी में पृथ्वी के बेटे को टाइटन नाम से पुकारा जाता   था । कुछ समय बाद पता चला कि ग्रेगर तथा क्लैथरौथ द्वारा पृथक किए गए धात्विक ऑक्साइड एक ही थे । उस समय से इस तत्व का नाम टाइटेनियम प्रसिद्ध हो गया । 
शुद्ध टाइटेनियम को पृथक करने का श्रेय स्वीडिश रसायनविद बर्जीलियस को जाता है जिन्होनें सन १८२५ में इससे पृथक किया । परन्तु बाद में पता चला कि बर्जीलियस द्वारा पृथक की गई धातु शुद्ध टाइटेनियम नहीं थी । उसने कई प्रकार की अशुद्धियां मिली हुई थी । सन १८७५ में रूसी वैज्ञानिक किरोलोव ने शुद्ध टाइटेनियम को पृथक करने में सफलता प्राप्त् की । परन्तु इस खोज से संसार के अन्य वैज्ञानिक अपरिचित रहे । सन १८८७ में स्वीडन के नील्सन तथा पेटर्सन नामक दो रसायविदों ने भी शुद्ध टाइटेनियम धातु को पृथक करने में सफलता प्राप्त् की । परन्तु यह टाइटेनियम भी पूरी तरह शुद्ध नहीं था । इसमें भी ५ प्रतिशत अशुद्धि मिली हुई थी । 
सन १८९५ में फ्रांसीसी रसायनविद हेनरी मॉइसां ने आर्क भट्टी में टाइटेनियम ऑक्साइड का हाइड्रोजन द्वारा अपचयन कर ९८ प्रतिशत शुद्ध टाइटेनियम प्राप्त्   किया । सन १९१० में संयुक्त राज्य अमेरिका के रसायनविद हंटर ने नील्सन तथा पेटर्सन की विधि में थोड़ा संशोधन कर शुद्ध टाइटेनियम धातु प्राप्त् करने में सफलता प्राप्त्   की । परन्तु वास्तविकता यह थी कि यह टाइटेनियम भी शत प्रतिशत शुद्ध नहीं था । इसमें अल्प परिमाण में कुछ अशुद्धियां शामिल थी । 
शुरू-शुरू में इल्मेनाइट तथा रूटाइल नामक अयस्कों के विश्लेषण से प्राप्त् टाइटेनियम ऑक्साइड का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा था । लोग इसे व्यर्थ की वस्तु समझते थे । सन १९०८ में दो अमरीकी वैज्ञानिकों ने विचार व्यक्त किया कि टाइटेनियम ऑक्साइड का उपयोग सीसे (लेड) तथा जस्ते के यौगिकों के स्थान पर सफेद वर्णक (व्हाइट पिगमट) प्राप्त् करने हेतु किया जा सकता है । सीसे तथा जस्ते से प्राप्त् वर्णकों की तुलना में टाइटेनियम से प्राप्त् वर्णक द्वारा अधिक क्षेत्र का रंगा जा सकता है । साथ ही टाइटेनियम प्राप्त् वर्णक सीसे  तथा जस्ते से प्राप्त् वर्णकों के समान विषैला भी नहीं होता । इसके बाद धीरे-धीरे टाइटेनियम ऑक्साइड का उपयोग चमड़ा, कपड़ा, कांच तथा पोर्सलेन को रंगने हेतु किया जाने लगा । इससे कृत्रिम हीरे भी बनाए जाने लगे । 
कुछ समय बाद टाइटेनिय के एक अन्य यौगिक टाइटेनियम टेट्राक्लोराइड का भी उपयोग किया जाने लगा । इस यौगिक में एक विशेषता यह पाई जाती है कि यह बहुत धंुआ पैदा करता है । अत: प्रथम विश्व युद्ध के समय से ही युद्ध  कार्योंा में इसका उपयोग होता आ रहा है । 
सन १९२५ के पूर्व जो भी टाइटेनियम धातु के रूप में प्राप्त् किया गया था, उसमें कुछ नेकुछ अशुद्धि मौजूद रहती थी जिसके कारण वह भंगुर किस्म का रहता   था । सन १९२५ में फान आर्केल तथा डी बोर नामक दो डच वैज्ञानिकों ने टाइटेनियम टेट्राक्लोराइड के विलयन से शत प्रतिशत शुद्ध टाइटेनियम धातु प्राप्त् करने में सफलता पाई । देखा गया कि विशुद्ध टाइटेनियम लचीला तथा सुघटय था जिससे चादर, पत्तियां तथा तार बनाए जा सकते थे । 
पाया गया कि लोहे की तुलना में इसका आपेक्षिक घनत्व लगभग आधा होते हुए भी यह लोहे से अधिक मजबूत   है । साढ़े छ: सौ डिग्री सेल्सियस जैसे उच्च् तापमान पर भी इसकी मजबूती बनी रहती है । यही कारण है कि उच्च् तापमान पर काम में लाए जाने वाले कलपूर्जो तथा औजार टाइटेनियम से बनाए जाते   हैं । 
आजकल कहीं - कहीं सुपरसोनिक जेट विमान टाइटेनियम से बनाए जाते है । इसके दो कारण हैं । पहला कारण तो यह है कि यह मजबूत होता है । दूसरा कारण है कि यह हल्का होता है । विमान उद्योग में टाइटेनियम का उपयोग धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है । वायुयानों में टाइटेनियम का उपयोग इंजिन के कलपुर्जो तथा मुख्य ढांचा दोनों ही के निर्माण में किया जाता है । 
टाइटेनियम का उपयोग अंतरिक्ष अनुसंधान एवं तकनीक में भी किया जा रहा है । इस धातु से अंतरिक्ष यान के ढांचे तथा इंजिन आदि बनाए जाते हैं । इस दिशा में सबसे पहला प्रयोग १८ अगस्त १९६४ को रूस में किया गया था । इस प्रयोग में टाइटेनियम से निर्मित संसार के सबसेपहले अंतरिक्ष यान को प्रक्षेपित किया गया । सन १९६९ में तत्कालीन सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों गियोगी शेनिन तथा वालेरी कुबासोव द्वारा अंतरिक्ष में किए गए प्रयोगों में यह पता चला कि अंतरिक्ष के निर्वात् में टाइटेनियम की वेल्डिग तथा कतरन आसानी से की जा सकती है । 
आजकल टाइटेनियम का उपयोग घड़िया तथा कैमरोंके निर्माण मेंभी काफी अधिक किया जा रहा  है । साइकल का निर्माण करने वाली कुछ कम्पनियां टाइटेनियम से सायकल की बॉडी का निर्माण कर रही है । ऐसी सायकलें काफी हल्की होती है जिससे सायकल चालक को इसे चलाने में शरीर की कम ऊर्जा खर्च होती है । 
आजकल टाइटेनियम का उपयोग रसायन उद्योग में काम आने वाले उपकरणों के निर्माण में भी किया जा रहा है । हालांकि ऐसे उपकरण का क्रय मूल्य स्टील से बने उपकरणों की तुलना में बहुत अधिक हैं, परन्तु स्टील से बने उपकरणों की तुलना में टाइटेनियम से बने उपकरण बहुत अधिक टिकाऊ होते है क्योंकि इन पर अम्ल, क्षार या जंग का प्रभाव नगण्य होता है । 
टाइटेनियम शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में भी बहुत उपयोगी साबित हो रहा है । टाइटेनियम तथा टाइटेनियम की मिश्र धातुआें से बने शल्य औजार काफी लोकप्रिय हो रहे है । इन औजारों की बढ़ती लोकप्रियता के कईकारण है । उदाहरणार्थ ये औजार काफी हल्के है इन पर जंग नहीं लगता तथा ये टिकाऊ होते है । 
भूपटल में विभिन्न तत्वों की प्रचुरता के दृष्टिकोण से टाइटेनियम नौवे स्थान पर है । भूपटल में इसकी औसत प्रचुरता ६३२० भाग प्रति दस लाख है । इसके अलावा कुछ उल्का पत्थरों में भी यह पाया जाता है । सिलिकेट उल्का पत्थरों में इसकी प्रचुरता १८०० भाग प्रति दस लाख आकी गई है । अमरीकी अंतरिक्ष यान अपोलो द्वारा चन्द्रमा की मिट्टी के कुछ नमूनों के विश्लेषण से पता चला कि चन्द्रमा की सतह पर टाइटेनियम की काफी मात्रा मौजूद  है । 
भूपटल न टाइटेनियम युक्त लगभग ७० प्रकार के खनिज पाए जाते है जिनमें प्रमुख दो है, इल्मेनाइट तथा रूटाइल । इसके अलावा स्फीन भी एक प्रमुख खनिज माना जाता है जिसे टाइटेनाइड भी कहा जाता है । इल्मेनाइट का नामकरण रूस के इल्मेन नामक पर्वत के नाम पर किया गया था जहां सबसे पहले इस खनिज की खोज की गई थी । यह काले रंग का एक कठोर खनिज है जिसका आपेक्षिक घनत्व ५ है । इसे लोग गलतफहमी से मेग्नेटाइट समझ लेते है, क्योंकि यह प्राय उन्ही प्राकृतिक अवस्थाआें में पाया जाता है जिनमें मैग्नेटाइट मिलता है । परन्तु दोनों में अन्तर   यह है कि मैग्नेटाइट जहां चुम्बकत्व के गुण से युक्त होता है वहीं इल्मेनाइट में चुम्बकत्व नहीं पाया जाता ।
इल्मेनाइट-मैग्नेटाइट का विशाल भंडार संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यूयार्क से कुछ दूर सैनफोर्ड लेक के निकट सन १८३६ में ही पाया गया था । परन्तु उस समय लोग न तो इल्मेनाइट का कोई उपयोग जानते थे और न मैग्नेटाइट से उसे अलग करने की विधि ज्ञात थी । इल्मेनाइट की उपस्थिति के कारण यहां प्राप्त् होने वाले मैग्नेटाइट भी उपयोगी साबित नहीं हुआ था । अत: उस समय खनन कार्य शुरू नहीं हो पाया । बीसवी शताब्दी में जब लोगों ने टाइटेनियम की उपयोगिता समझी तथा मैग्नेटिक संपरेटर द्वारा दोनों खनिजों को अलग करने की विधि का विकास हुआ तो यहां पर खनन कार्य शुरू हुआ । 
रूटाइल भूरे लाल रंग का एक खनिज है जिसकी कठोरता मो पैमाने पर ६-६.५ है । इसका आपेक्षिक घनत्व ४.२ है । सामान्य तौर पर यह इल्मेनाइट तथा गार्नेट के साथ समुद्री किनारों पर बालू के साथ पाया जाता है । 
आज संसार में इल्मेनाइट का वार्षिक उत्पादन लगभग ३० लाख मीट्रिक टन है । रूटाइल का वार्षिक उत्पादन ३.५ लाख मीट्रिक टन है । इल्मेनाइट का सबसे बड़ा उत्पादक नॉर्वे है (वार्षिक उत्पादन ८.५ लाख मीट्रिक टन) । इल्मेनाइट के उत्पादन में दूसरे स्थान पर आस्ट्रेलिया (वार्षिक उत्पादन ८.२५ लाख मीट्रिक टन) तथा तीसरे स्थान पर संयुक्त राज्य अमेरिका है (वार्षिक उत्पादन लगभग ६.७५ लाख मीट्रिक टन) । इल्मेनाइट का उत्पादन करने वाले अन्य प्रमुख देशों में शामिल है मलेशिया, श्रीलंका तथा भारत । 
रूटाइल का सबसे अधिक उत्पादन ऑस्ट्रेलिया में होता है (वार्षिक उत्पादन लगभग १.२० लाख मीट्रिक टन) । रूटाइल का उत्पादन करने वाले अन्य प्रमुख देशों में शामिल हैं संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत तथा श्रीलंका । 
भारत में इल्मेनाइट का कुल वार्षिक उत्पादन लगभग ७७००० मीट्रिक टन तथा रूटाइल का कुल वार्षिक उत्पादन लगभग ३४०० मीट्रिक टन है । 

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