सोमवार, 19 सितंबर 2016

सामाजिक पर्यावरण
देश को स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी 
डॉ. खुशालसिंह पुरोहित 

स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य गलियों, सड़को, गॉवो और शहरों सभी को साफ सुथरा करना   है । यह अभियान हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन २ अक्टूबर २०१४ से निरन्तर चलाया जा रहा है । 
इस अभियान के द्वारा खुले मेंशोच, अस्वच्छ शौचालयों को नवीन शोचालयों में परिवर्तित करने, सर पर मेला ढोने की प्रथा का उन्मूलन करने, नगरीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और ग्रामीण क्षेत्र में स्वच्छता के संबंध में लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए कार्य करना है । 
एक स्वस्थ्य राष्ट्र के निर्माण में स्वच्छता की अहम भूमिका होती है । इस अभियान का बड़ा लक्ष्य     ५ वर्षो में भारत को खुले में शौच से मुक्त देश बनाना है । इस अभियान में देश में बड़े पैमाने पर प्रोदयोगिकी का उपयोग कर ग्रामीण क्षेत्रों में कचरे का इस्तेमाल कर उसे पूंजी का रूप देते हुए जैव उर्वरक और ऊर्जा के विभिन्न रूपों में परिवर्तित करना शामिल है । 
स्वच्छता अभियान एक राष्ट्रीय अभियान है । इसमें प्रत्येक नागरिक की भागीदारी आवश्यक    है । इसके द्वारा जन-जन में स्वच्छता के प्रति जागरूकता जरूर आएगी । शहरों और ग्रामों के कचरों का निस्तारण वैज्ञानिक पद्धति से करने पर जहां एक ओर पर्यावरण स्वच्छ होगा वही दूसरी और उपयोगी पदार्थ भी बनाये जा सकेंगे । कचरे को जैविक तथा अजैविक दो भागों में विभाजित कर जैविक कचरे से केंचुए के माध्यम से जेविक खाद बनायी जा सकती है । इस प्रक्रिया को वर्मिकम्पोस्ट कहा जाता है । दूसरे कचरे से भारी मात्रा में ऊर्जा पैदा की जा सकती हैं । इससे एक और कचरे का निस्तारण हो जायेगा तो दूसरी ओर प्रदूषण की समस्या भी दूर   होगी । 
आज हमारे देश में प्लास्टिक एक गंभीर मसला है । आज हर जगह प्लास्टिक की बोतलों व गिलासों में बंद पानी को प्रोत्साहित किया जा रहा है । प्लास्टिक की बोतल में बंद पानी को प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जा रहा है । सार्वजनिक कार्यक्रमोंमें प्लास्टिक, थर्मोकोल और एल्युमिनियम फॉयल से निर्मित यूज एण्ड थ्रो पात्र प्रयोग में लाये जाते    हैं । कार्यक्रम खत्म होते ही समारोह स्थल पर इस कचरे के ढेर लग जाते है । यह कचरा वजन में अत्यन्त हल्का होने के कारण उड़कर आसपास के क्षेत्रों में फैल जाता है । शहरो, कस्बो और गॉवों के नैसर्गिक सौंदर्य पर यह कचरा कलंक की तरह है । बढ़ते औद्योगिकरण, आर्थिक विकास और बाजारवाद के प्रभाव के कारण प्राकृतिक सामग्री जैसे पत्तों से निर्मित पत्तल, दोने जो कि परिवेश के लिए अनुकूल और स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित होते है लेकिन इनका प्रयोग लगभग बंद सा हो गया है । 
भारत में ४५ करोड़ों लोग शहरों में विभिन्न स्तरों पर रहते हैं । ताजा आकड़े बताते हैं कि भारत के ४ महानगरों की १ करोड़ से ज्यादा आबादी हैं । १० लाख से अधिक आबादी वाले ५३ शहर हैं १० लाख से कम आबादी वाले शहरों की संख्या ४६८ है । यह सब मिलकर रोजाना ६० हजार टन कचरा उत्पन्न करते हैं और इस कचरे में से केवल ६० प्रतिशत कचरा उठाया जाता है और प्रक्रिया स्थानों तक पहुंचाया जाता   है । ज्यादातर कचरा अवैज्ञानिक तरीके से गॉव के बाहर खड्डे में डाल दिया जाता है । भारत में पैदा होने वाला कचरा अमेरिका या यूरोप के कचरे से अलग होता है । भारतीय कचरे का उष्मांक मूल्य प्रति किलो ६००-८०० केलोरी होता है, जबकि यूरोप अमेरिका में इससे कहीं अधिक अर्थात ३५०० कैलोरी प्रति किलो होता है । भारतीय कचरे में ७२-८१ प्रतिशत जैव कचरा १६-१८ प्रतिशत प्लास्टिक, कागज तथा कांच और बाकी घरेलू घटक व रसोई का कचरा होता है । जैव कचरे में पानी की मात्रा इतनी अधिक होती है उससे बिजली बनाना फायदेमंद नहीं होता  है । 
हमारे देश में करीब १५ लाख ई कचरा सालाना पैदा होता   है । ई कचरे से निजात पाने के लिए उपकरणों का प्रयोग घटाने की रणनीति अपनानी होगी । एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि सुरक्षा मानकों के अभाव में ई-कचरा के निपटारे मे लगे कर्मचारियों में ७६ प्रतिशत लोग श्वास संबंधी बीमारियों से पीड़ित है । भारतीय उद्योग संगठन के एक अध्ययन में कहा गया है कि देश में ई-कचरा पैदा करने वाले राज्यों में महाराष्ट्र प्रथम है, इसके बाद के क्रम में तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश, दिल्ली और गुजरात राज्य आते है । 
सरकारी और निजी कार्यालय और औद्योगिक संस्थान ७१ प्रतिशत ई-कचरा पैदा करते है जबकि घरों का ई-कचरे में योगदान १६ प्रतिशत    है । ई-कचरे में प्राप्त् वस्तुआें और उत्पादों को फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाने के लिए भारत मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्र पर निर्भर है । लगभग ९५ प्रतिशत ई-कचरा शहरों के स्लम बस्तियों में एकत्र किया जाता है । इनमें काम करने वाले लोग बिना किसी बचाव उपकरण के काम करते हैं । ई-कचरे के गलत ढंग से निपटान से न केवल स्वास्थ्य पर बल्कि पर्यावरण पर भी नकारात्मक असर होता है । 
भारतीय शहरों में ग्रामीण इलाकों की अपेक्षा शहरों में १० गुना अधिक कचरा पैदा होता है । हमें इस समस्या की गहराई जानने के लिए देखना होगा कि विकसित देशों की तुलना में हम कहा खड़े है ? अमेरिका में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन औसत कचरा २ किलो हैं और कनाड़ा में लगभग ३ किलो होता है । भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन औसत कचरा २५०-३५० ग्राम तक है । यद्यपि हम बहुत कम कचरा पैदा करते हैं लेकिन हमारी विशाल जनसंख्या और कचरे के निपटान का उचित प्रबंध ना होने के कारण स्वच्छता के मामले में विश्व स्तर पर हम बहुत पीछे हैं । इस समस्या से कैसे निपटे और स्वच्छता में उच्च् स्तर पर कैसे पहुंचे ये दोनों चिंताए हमारे स्वच्छता अभियान में शामिल करनी होगी । 
हम जानते हैं कि आधुनिक कचरे का दो तिहाई हिस्सा वही होता है जो किसी वस्तु या खाद्य सामग्री की पैकिंग के रूप में प्रयोग में लाया जाता है । महात्मा गांधी के जन्मदिन से शुरू हुए इस अभियान में गांधी के इस विचार पर ध्यान देना होगा जिसमें उन्होंने कहा था सुनहरा नियम तो ये हैं कि जो चीज लाखों लोगों को नहीं मिल सकती उसे लेने से हम दृढ़तापूर्वक इंकार कर दे त्याग की यह शक्ति हमें एकाएक नहीं मिल जाएगी पहले तो हमें ऐसी मनोवृत्ति विकसित करनी चाहिए की हमें उन सुख सुविधाआें का उपयोग नहीं करना है जिनसे लाखों लोग वंचित है और उसके बाद तुरन्त ही अपनी मनोवृत्ति के अनुसार हमेंशीघ्रता पूर्वक अपना जीवन बदलने में लग जाना चाहिए । 
इस प्रकार हमारे राष्ट्रपिता की बातों का सरल अर्थ इतना ही है कि आवश्यकता कचरे के कम उत्पादन करने अर्थात व्यक्गित उपभोग को कम करने की है । 
स्वच्छता अभियान मात्र एक अभियान नहीं है बल्कि जन आंदोलन है । स्वच्छता का सीधा संबंध पर्यावरण से होता है । आज जगह-जगह दिखने वाले कचरे के ढेर ने हमारी नदियों, मन्दिरों, तीर्थक्षेत्रों, ग्रामों और शहरों सभी को अस्वच्छ कर दिया है । ऐसी स्थिति में हम हमारे प्रयासों को सही कैसे ठहरा सकते है जब हम हर कदम पर गंदगी बढ़ाते जा रहे हैं । गंदगी को साफ करने के कार्यको समाज क्षुद्र कार्य मानता है । सफाई करने की ओर निम्रता का दृष्टिकोण रखा जाता है । हम सफाई जैसे महत्वपूर्ण कार्य को जातिगत पेशा मानते है । गंदगी, अस्वच्छता हम फैलाए लेकिन उसे साफ कोई दूसरा करें । 
स्वच्छता का कार्य बहुत पहले से हमने समाज के एक विशेष वर्ग को दे रखा है । यही वर्ग आज तक कचरे से लेकर मल-मूत्र तक साफ करते आया है और पीढ़ी दर पीढ़ी उसी वर्ग का इसमें लगे रहना हम सब के लिए लज्जा का विषय होना चाहिए । पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छ भारत अभियान को जन आन्दोलन बनाने में नागरिकों की सक्रिय सहभागिता आवश्यक है ।

कोई टिप्पणी नहीं: