सोमवार, 19 सितंबर 2016

जीवन की उत्पत्ति पर नई समझ
स्वयं की प्रतिलिपि बनाना जीवन का एक बुनियादी गुण है । जीवों में यह गुण तीन तरह के अणुआें की बदौलत आता है - डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड (डीएनए), राइबो न्यूक्लिक एसिड (आरएनए) और   प्रोटीन्स । डीएनए वह अणु है जिसमें सारी आनुवंशिक सूचनाएं सहेजी जाती हैं । इस सूचना को कार्यरूप देने के लिए डीएनए से आरएनए बनाया जाता है । और इस क्रिया में प्रोटीन्स की भूमिका होती है । आगे भी आरएनए से प्रोटीन बनाने में कई अन्य प्रोटीन की भूमिका होता है और ये प्रोटीन आरएनए द्वारा ही बनाए जाते हैं । दूसरे शब्दों में ये तीन तरह के अणु कार्य संपादन के लिए परस्पर निर्भर है । 
बहस का विषय यह रहा है कि जीवन के शुरूआती दौर में भी क्या यह परस्पर निर्भरता मौजूद थी । कई वैज्ञानिक मानते हैं कि शुरू-शुरू में आरएनए ही तीनों भूमिकाएं निभाता था । अब इस मत को प्रयोगों को कुछ समर्थन प्राप्त् हुआ है । शोधकर्ता एक ऐसा आरएनए बनाने में सफल हुए हैं जो लगभग किसी भी अन्य आरएनए की प्रतिलिपि बना सकता है । इससे लगता है कि आनुवंशिक सूचना के भंडारण के मामले मेंसंभवत: आरएनए डीएनए से पहले आया होगा । इसी की बदौलत उन जीवों का निर्माण हुआ होगा जिनमें आज भी आरएनए आनुवंशिक सूचना के भंडारण का काम करता है । 
अलबत्ता, शोधकर्ताआें ने जो आरएनए बनाया है वह एक काम नहीं कर सकता - वह स्वयं की प्रतिलिपि नहीं बना पाता । मगर यदि शुरू में अकेला आरएनए ही जीवन का आधार था तो उसमें स्वयं की प्रतिलिपि बनाने की क्षमता तो होनी ही चाहिए । 
हालांकि इस शोध को महत्वपूर्ण माना जा रहा है मगर यदि मात्र आरएनए से शुरूआत की बात सही है तो शोधकर्ताआें को यह दिखाना होगा कि उनके द्वारा निर्मित आरएनए स्वयं को द्विगुणित कर सकता है । यदि ऐसा नहीं हो पाता तो शुरूआती जीवन का आगे बढ़ना अनिश्चित सा हो जाता है । 

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