गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

कविता
संदर्भ : नर्मदा जंयति
लो ! नहाया दिन 
अज़हर हाशमी 

सूर्य का तबला बजा
भोर फहराता ध्वजा
नर्मदा का तट सजा
धूप की दातौन करके
लो ! नहाया दिन । 

नर्मदे  बोला हुआ
शब्द रस घोला हुआ
नीर हिंडोला हुआ 
इस लहर से उस लहर तक 
झूल आया दिन । 
लो ! नहाया दिन । 

गिरि-सुता, गजगामिनी,
धाविका, भू-शायिनी
अन्न-विघुत दायिनी
नर्मदा का जल सुधा है 
बुदबुदाया दिन । 
लो ! नहाया दिन । 

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