हमारा भूमण्डल
बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण
प्रो. कृष्ण कुमार द्विवेदी
वर्तमान समय में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर विश्वव्यापी समस्या बन गई है । संपूर्ण देश-धरती में प्रत्येक वर्ष अरबों की संख्या में प्लास्टिक थैलियाँ फेंक दी जाती है ।
चतुर्थिक बिखरे यही प्लास्टिक थैलियाँ नालियों, नालों में जाकर उनके प्रवाह को अवरूद्ध करती है, आगे बहकर यह अंतत: नदियों एवं सागरों में पहुँच जाती है । यह चूंकि प्राकृतिक रूप से विघटित नहीं होती इसलिए नदियों, सागरों आदि के जीवन और पर्यावरण को बुरी तरह से प्रभावित करती है । प्लास्टिक प्रदूषण के कारण आज वैश्विक स्तर पर लाखोंकी संख्या में पशु पक्षी मारे जा रहे हैं जो पर्यावरण संतुलन की दृष्टि से अत्यधिक चिंतनीय पहलु है ।
आज विश्व का प्रत्यक देश प्लास्टिक से उत्पन्न प्रदूषण की अत्यन्त विनाशकारी समस्याआें से जूझ रहा है । हमारे देश में तो प्लास्टिक प्रदूषण से विशेषकर नगरीय पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हुआ है ।नगरों में प्लास्टिक थैलियों को खाकर भारी संख्या में गाये, भैंसे व अन्य पशु पक्षी मारे जा रहे है ।
प्लास्टिक नैसर्गिक रूप से विघटित होने वाला पदार्थ नहीं होने के कारण एक बार निर्मित हो जाने के बाद यह प्रकृति में स्थाई तौर पर बना रहता है तथा प्रकृति में इसे नष्ट कर सकने वाले किसी सक्षम सूक्ष्म जीवाणु के अभाव के कारण यह कभी भी नष्ट नहीं हो पाता इसलिए गंभीर पारिस्थितिकी संतुलन उत्पन्न होता है और सम्पूर्ण वातावरण प्रदूषित हो जाता है । यह जल में भी अघुलनशील होने के कारण नष्ट नहीं होता और भारी जल प्रदूषण बढ़ाता है तथा वृहद स्तर पर जल प्रवाह को बाधित करता है जिससे ऐसे दूषित जल में मक्खियाँ, मच्छर एवं जहरीले कीट पैदा होते हैं जिससे मलेरिया, डेंगू जैसे रोग फैलते हैं ।
प्लास्टिक पैकिंग से खाघ सामग्री भोजन एवं औषधियों के पैक किये जाने से इनके साथ प्लास्टिक रासायनिक प्रक्रिया करके उन्हेंदूषित और खराब कर देता है । इनके उपयोग से मानव जीवों को जान का खतरा उत्पन्न हो जाता है तथा भयानक बीमारियों से ग्रसित कर देता है । प्लास्टिक को जलाये जाने से निकलने वाली विषाक्त गैसों के परिणाम स्वरूप गंभीर वायु प्रदूषण फैलता है जिससे कैंसर, शारीरिक विकास में अवरोध होना एवं जघन्य रोग उत्पन्न हो जाते है । प्लास्टिक को गढ्ढों में गाड़ दिये जाने से पर्यावरण को हानि पहुंचती है, मिट्टी और भूमिगत जल विषाक्त होने लगता है और धीरे-धीरे पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ने लगता है । प्लास्टिक उद्योग में कार्य करने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है विशेषकर फेफड़े, किडनी और स्नायुतंत्र प्रभावित होते है ।
अत्यन्त गंभीर तथ्य है कि वर्तमान समय में सम्पूर्ण पृथ्वी पर लगभग १५०० लाख टन प्लास्टिक एकत्रित हो चुका है जो पर्यावरण को लगातार क्षति पहुंचा रहा है । आज वैश्विक स्तर पर प्रतिव्यक्ति प्लास्टिक का उपयोग जहां १८ किलोग्राम है वहीं इसका रिसायक्लिंग मात्र १५.२ प्रतिशत ही है । प्लास्टिक की रिसायक्लिंग को भी सुरक्षित नहीं माना गया है । रिसायक्लिंग प्लास्टिक से ओर अधिक प्रदूषण फैलता है । सामान्यतौर पर प्लास्टिक पर प्रतिबंध करके उसका सर्वोत्तम विकल्प प्राकृतिक रूप से विघटित होने वाली थैलियाँ होते है जो ३ से ६ महीनोंमें अपने आप ही नष्ट होने लगती है ।
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