पर्यावरण परिक्रमा
पहली बार भारत में जुरासिक युग का सरीसृप मिला
पहली बार भारत मंे जूरासिक काल के बड़े समुद्री सरीसृप (रेंगने वाला जीव) इचथियोसर के कंकाल का जीवाश्म मिला है । यह जीव डायनोसर के साथ पृथ्वी पर रहता था । इचथियोसर को ग्रीक भाषा में मछली छिपकली कहा जाता है । इससे पहले इसके जीवाश्म उत्तर अमेरिका और योरप में पाए गए हैं । दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलियां में ये काफी सीमित रहे है ।
दिल्ली विश्वविद्यालय और जर्मनी के एर्लानजेन-न्यूरेमबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताआें ने इचथियोसर को भारत में गुजरात के कच्छ में पाया है । यह करीब ५.५ मीटर लम्बा कंकाल है । माना जा रहा है कि यह ऑप्थलमोसोरीडे परिवार का जीव है जो करीब १६.५ करोड़ से नौ करोड़ साल पहले पृथ्वी पर रहता था । दिल्ली विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विभाग के गंुटुपल्लीप्रसाद के मुताबिक, यह खोज केवल इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि पहली बार भारत में इचथियोसर होने का प्रमाण मिला बल्कि यह पूर्व के गोंडवाना के इंडो-मैडगास्कन क्षेत्र में इचथियोसर के विकास और विविधता पर भी प्रकाश डालता है ।
इससे जुरासिक काल मे अन्य महाद्वीपों के साथ भारत के जैविक रूप से जुड़े होने का पता भी चलता है । शोधकर्ताआें को उम्मीद है कि इस क्षेत्र में जुरासिक काल के रीढ़ की हड्डी वाले और जीवों की खोज से दुनिया के इस हिस्से में समुद्री सरीसृपों के विकास के बारे में जानकारी मिल सकती है ।
अरबो रूपयो के फल और सब्जी की बर्बादी
ऐसोचैम और एमआरएसएस इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक देश में सालाना उत्पादित होने वाले दूध, फल व सब्जियों में से तकरीबन आधा बर्बाद हो जाता है । इस बर्बादी से हर साल देश को करीब साढ़े चार सौ अरब डॉलर का नुकसान होता है । देश में कोल्ड स्टोरेज तकनीकों और उसके संचालन के लिए प्रशिक्षित स्टाफ की कमी इस बर्बादी की मुख्य वजह है ।
देश में तकरीबन ६३०० कोल्ड स्टोरेज इकाइया हैं । इनकी कुल क्षमता ३.०१ करोड टन खाद्य पदार्थ रखने की है । यह आकड़ा देश में उत्पादित होने वाले कुल खाद्य पदार्थो का महज ११ फीसद है । इनके संचालन के लिए प्रशिक्षित कर्मियों की कमी, कोल्ड स्टोरेज की अप्रचलित तकनीके और अनियमित बिजली सप्लाई के चलते ये देश में कारगर नहीं हो रही है ।
इस बर्बादी में ६० फीसदी हिस्सेदारी उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात और पंजाब की है, लेकिन दक्षिण भारत में हालात बेहद खराब है । यहां का मौसम उत्तर भारत की तुलना में गर्म और उमस भरा है । यही वजह है कि कोल्ड स्टोरेज यूनिट्स की कमी की वजह से यहां दुध, फल व सब्जियां ज्यादा बर्बाद होती है ।
देश में २०१४ में किराना व्यापार ५०० अरब डॉलर का था । २०२० तक इसके ८४७.९ अरब डॉलर होने की संभावना है । ऐसे में जरूरी है कि इस उद्योग में खाद्य पदार्थो को एकत्र करने स्टोर करने और एक से दूसरी जगह भेजने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जाए । तभी यह विक्रेताआें और खरीदारों के लिए किफायती होगा ।
ऐसे खाद्य पदार्थ जो सामान्य तापमान में अधिक दिनों तक ताजे नहीं रह पाते हैं, उन्हें कई दिनों महीनों तक ताजा रखने के लिए विशालकाय कमरों में कई डिग्री कम तापमान में स्टोर किया जाता है । इसे कोल्ड स्टोरेज कहते है ।
वर्ष २०१९ से कारो में एयरबैग्स अनिवार्य
आगामी आने वर्ष २०१९ से बनने वाली सभी कारों में एयरबैग्स, सीट बेल्ट रिमांइडर्स, ८० किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक स्पीड पर अलर्ट करने वाला स्पीड वॉर्निग सिस्टम, रिवर्स पार्किग अलटर्स, मैनुअल ओवरराइड सिस्टम आदि फीचर्स देना अनिवार्य हो जाएगा । सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने इस पर अपनी मुहर लगा दी है । फिलहाल, महंगी और लग्जरी कारों में ही सुरक्षा संबंधी उपरोक्त पैमानों का इस्तेमाल होता है ।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी ने भारत में होने वाले सड़क दुर्घटनाआें को कम करने के मद्देनजर यह फैसला लिया है । बता दें कि २०१६ में भारत में मरने वाले प्रति १.५ लाख लोगों में से तकरीबन ७४००० लोग सड़क हादसे में मारे गए । इनको जिंदगी ओवर स्पीडिंग की भेंट चढ़ गई । परिवहन मंत्रालय के एक सूत्र की मानें तो नई कारों में ऐसा सिस्टम फिट किया जाएगा जो कि स्पीड ८० किलोमीटर प्रति घंटा में अधिक होने पर ऑडियो अलर्ट देगा । स्पीड १०० किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक होने पर इस अलर्ट की आवाज और भी तेज हो जाएगी । १२० किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक स्पीड होने पर यह लगातार बजता रहेगा ।
पावर फेल्योर की स्थिति में अगर सेन्ट्रल लॉकिंग सिस्टम ने काम करना बंद किया तो मैनुअल ओरवाराइड सिस्टम से ड्रायवर और पैसेजर्स आसानी से कार के बाहर निकल सकेगे । रिवर्स पार्किग के दौरान होने वाले ऐक्सिडेंट्स को कम करने के लिए कारों में रिवर्स पार्किग अलर्ट दिया जाएगा । कार जब रिवर्स गियर में पीछे जा रही होगी तब ड्रायवर को रियर मॉनिटंरिग रेंज के हिसाब से पता चलता रहेगा कि कोई ऑब्जेक्ट है या नहीं । परिवहन मंत्रालय के सूत्रों ने बताया है कि एयरबैग्स और रिवर्स पार्किग सेंसर्स को शहर में चलने वाले हल्के वाणिज्यिक वाहनों के लिए भी अनिवार्य किया जाएगा ।
अब बैक्टीरिया रहित कपडे से नहीं आएगी बदबू
बढ़ते त्वचा रोगों व एलर्जी की समस्या के बीच राहत भरी खबर है ।भारतीय युवा वैज्ञानिकों ने शत प्रतिशत स्वदेशी तकनीक से एक ऐसा नैनोफैब्रिक विकसित किया है जो त्वचा रोगों व एलर्जी से तो बचाएगा ही साथ ही शरीर में दुर्गध पैदा करने वाले बैक्टीरिया को भी मार देगा । इस फैब्रिक से बने कपड़ों में लागत मात्र १० रूपये प्रति मीटर आएगी । इलाहाबाद विश्वविघालय के भौतिक विज्ञान विभाग द्वारा किए गए इस शोध को अंतराष्ट्रीय शोध पत्रिका फ्रंटियर इन माइक्रोबोयोलॉजी ने हाल ही में प्रकाशित किया है ।
एक शोध के मुताबिक बदलती जीवनशैली, दूषित खानपान, असुरक्षित कॉस्मेटिक, शरीर में प्रतिरोधक क्षमता की कमी, औघोगिक कचरा, प्रदूषण, हवा में उड़ते औघोगिक कचरा, प्रदूषण, हवा में उड़ते औघोगिक व ऑटोमोबाइल प्रदूषण के कारण विश्व में त्वचा रोगियों की संख्या २३ फीसदी से अधिक है । त्वचा संबंधी रोग बढ़ रहे है । खासकर ऐसे क्षेत्रों में जहां रासायनिक उद्योग व धनी बस्तियांं अधिक है । विवि के भौतिक विज्ञानी प्रो. केएन उत्तम ने बताया कि चांदी, सोना और तांबा एंटीबैक्टीरियल धातु है । इनमें चादी सबसे अधिक प्रभावी है । हमनें लैंब में सिल्वर डेकोरेटड नैनोफैब्रिक यानी चांदी के अति महीन कणों से युक्त कपड़ा तैयार करने में सफलता हासिल की है ।
इसका प्रयोग घाव को सुखाने, पटि्टयों, मास्क, रूमाल, मोजे, अंत:वस्त्रों व वस्त्र निर्माण में बखूबी किया जा सकता है । इस तकनीकी के प्रयोग से बने मौजे कभी बदबू नहीं करेंगे क्योंकि नैनोफैब्रिक खतरनाक पैथोजेनिक बैक्टीरिया को भी मार सकता है ।
प्रो.केएन उत्तम और प्रो. रामगोपाल के मार्गदर्शन में शोध करने वाले शोधार्थी अभिषेक भारद्वाज ने बताया कि हमने सबसे शुद्ध मेडिकल बैडेज का इस्तेमाल किया । बैडेज (सफेद पट्टी) को डाईएथिल- डाईमेथिल अमोनियम क्लोराइड से बैक्टीरिया रहित करने के बाद इसमें एक ऐसा पदार्थ लगाया जो गोंद (बाइंडर) का कार्य करता है । इसके बाद इसमें सिल्वर नाइट्रेट लगाया । बाइंडर के कारण सिल्वर नाइट्रेट पट्टी से इस तरह चिपक जाता है कि सौ-पचास धुलाई के बाद भी वह अलग नहीं होता ।
इस तरह इस पट्टी का फैब्रिक नैनो सिल्वर पार्टिकल्स यानी चांदी के अति महीन कणों से युक्त हो जाता है । जब चेहरे या शरीर के किसी अंग की नमी का नैनो सिल्वर युक्त बैंडेज से संपर्क होता है तो इसमें युक्त चांदी के अति महीन कणों का आयनीकरण हो जाता है । इससे वे अत्यन्त सक्रिय होकर बैक्टीरिया को मारने की स्थिति में आ जाते है ।
प्रो. उत्तम बताते है कि सिल्वर कोटेड नैनोफैब्रिक्स का औघोगिक प्रयोग पर लागत और कम आ सकती है । कपड़े धुलने के बाद भी यह लंबे समय तक प्रभावी बना रहता है । खास बात यह है कि इस तकनीक से विकसित कपड़ो से किसी भी सतह को पोछ देने पर उसके बैक्टीरिया मर जाएंगे । चाहे वो हमारा हाथ ही क्यों न हो ।
बाजार में अभी कुछ नामी कंपनियां टेक्नोफैब्रिक तकनीकी से कपड़े तैयार करने का दावा करती है । इनकी कीमत सामान्य से चार गुना अधिक होती है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें