मंगलवार, 24 जनवरी 2012

पर्यावरण समाचार

विज्ञान की प्रगति एवं शोध में अवरोध

पिछले दिनों भुवनेश्वर में आयोजित भारतीय विज्ञान कांग्रेस में प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने कहा कि एक समय तक विज्ञान की प्रगति व शोध में भारत काफी आगे चल रहा था लेकिन अब इस क्षेत्र में चीन हमसे आगे निकल गया है । भारत के वैज्ञानिकों को इस स्थिति को समझते हुए उन्हें देश को आगे लाना चाहिए । इस क्षेत्र में औघोगिक जगत को भी आगे आकर निवेश करना चाहिए ।
इस समय शोध पर सकल घरेलू उत्पाद का बहुत ही कम ०.९ प्रतिशत खर्च हो रहा है और १२वीं योजना के अंत तक इसे बढ़ाकर २ प्रतिशत करना है। यह भी एक विडम्बना है कि भारत में विदेशी कम्पनियां जनरल इलेक्ट्रिकल्स (जी.ई.) और मोटोरोला ने विश्व स्तरीय तकनीकी व्यवस्था बनाई है लेकिन भारतीय उद्योग ने ऐसा कुछ नहीं किया ।
यह एक यथार्थ है कि अमेरिका में फोर्ड फांउडेशन, राक फेलर फाउंडेशन जैसे अन्य कई संस्थान है जो समाज के हर क्षेत्र में विकास व कल्याण का काम करते है । ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी आदि अन्य यूरोपीय देशों में भी ऐसे संस्थान है जो समाज उन्नति में भारी धन राशि खर्च करते हैं । हाल ही में बिल गेट्स भारत आए थे उन्होंने भी यह कहा कि निजी उद्योग को समाज की उन्नति में आगे आना चाहिए ।
लेकिन एक वास्तविकता यह भी है कि आजादी के बाद से सरकार को राष्ट्रीयकरण का उन्माद आ गया और उसने निजी क्षेत्र को बढ़ने ही नहीं दिया । अब माहौल बदला है फिर से निजी विमान, बैंक, बीमा, सड़क, परिवहन व अन्य सरकारी उपक्रमों में विनिवेश हो रहा है । इस बदलते परिवेश में ही विप्रो के अजीम प्रेमजी ने यह घोषणा की है कि उनका संस्थान शिक्षा व सामाजिक विकास में पूंजी लगायेगा । अब पी.पी.पी. के नाम पर जन सहयोग से सड़कें तक बन रही हैं जबकि हमेशा से सड़कें बनाना सरकार का ही काम रहा है ।
अब सरकार ही यह कहने लगी है कि सब काम सरकार ही नहीं कर सकती थी । प्रधानमंत्री ने इस विज्ञान कांग्रेस में उद्योगों से कहा कि विज्ञान की प्रगति की प्रगति में हम पीछे हो गये है और उद्योग जगत को इसमें आगे आना चाहिए ।
भारत और चीन के बीच विकास में प्रतिस्पर्धा चल रही है । दोनों देश अपना-अपना विकास उनके तौर तरीकों व साधनों के अनुसार कर रहे हैं । विकास दोनों देशों की आंतरिक गतिविधियां है इसमें प्रतिस्पर्धा हो ही नहीं सकती । लेकिन इनकी आपस में तुलना इसलिए हो जाती है कि दोनो एशियाई देश एक दूसरे के पड़ोसी हैं, दोनो का काफी बड़ा भू-भाग है और दोनों की आबादी भी दुनिया में सबसे ज्यादा है ।

जल विघुत परियोजना पर पाक ने खड़ा किया विवाद

पाकिस्तान सरकार ने एक बार फिर भारत की जम्मू-कश्मीर में सिधु नदी तीसरी जल परियोजना पर विवाद खड़ा करके इसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में जाने की धमकी है ।
पाकिस्तान सरकार ने ताजा विवाद सिंधु नदी पर भारत को ४५ मेगावॉट की निमू-बाजगो जलविघुत परियोजना पर खड़ा किया है । पाक के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने इस परियोजना को अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में चुनौती देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है । खबर है कि इस परियोजना के निर्माण के अलावा भारत को इस परियोजना में कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने की एवज में धनराशि देने की संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी के निर्णय को भी चुनौती दी जाएगी ।
पाकिस्तान सरकार का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने पाकिस्तान की स्वीकृति के बगैर ही भारत को कार्बन क्रेडिट दी है, जबकि ऐसा किया जाना अनिवार्य है । जलसंसाधन सम्बन्धी मामलों पर प्रधानमंत्री के सलाहकार कमल मजीदुल्ला हालेंड स्थित अंतराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में मामले को ले जाने के लिए इस मामले के विशेषज्ञ वकीलों की टीम की तलाश कर रहे हैं ।
पाकिस्तान इससे पहले भी भारत के दो बांधों को अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में चुनौती दे चुका है । पहली बार यह कश्मीर में चेनाब बागलीहार बांध को तथा दूसरी बार कश्मीर के ही गुरेज में नीलम नदी पर किशनगंगा बांध को न्यायाधिकरण में चुनौती दे चुका है ।

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