बुधवार, 25 जनवरी 2012

पर्यावरण परिक्रमा

आर्यो का भारत आगमन भ्रम

एक ताजा शोध में कहा गया है कि इंडो-आर्यो के भारत आगमन का व्यापक रूप से प्रचलित सिद्धांत एक भ्रम है । दक्षिण एशिया में पाई गई आनुवांशिक विविधता का स्त्रोत ३५०० साल पहले आर्यो के भारत आने के सिद्धांत से काफी पुराना है।
सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड माइक्रोबायोलॉजी (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है । इस संबंध में शोध अमेरिकन जर्नल ऑफ ह्मूमन जेनेटिक्स में प्रकाशित हुआ है। भारत में आर्यो के आगमन का सिद्धांत १९वीं सदी के मध्य में जर्मनी के विद्वान मैक्समूलर ने रखा था । उन्होनें कहा था कि करीब ३५०० साल पहले मध्य एशिया से इंडो-योरपीयों का भारत व दक्षिण एशिया की ओर पलायन हुआ था और इस क्षेत्र में आधुनिक आबादी इन्हीं के वंशज हैं । साथ ही इन्हीं से इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार और भारत में जाति व्यवस्था विकसित हुई । इसके उलट ताजा शोध करने वाले वैज्ञानिकों के दल के मुखिया डॉ. कुमारास्वामी थांगाराज कहते हैं, ३५०० साल पहले क्षेत्र में कोई आनुवांशिक अंतरप्रवाह नहीं हुआ ।
शोधकर्ताआें के दल में टार्टु विश्वविघालय, इस्टोनिया, चित्तनंद एकेडमी ऑफ रिसर्च एंड एजुकेशन चेन्नई और बनारस विवि के वैज्ञानिक शामिल थे । सीसीएमबी के पूर्व निदेशक लालजी शाह कहते हैं, हम भारत का प्रागैतिहासिक इतिहास दोबारा लिख रहे हैं, जो वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है । ऐसा कोई आनुवांशिक साक्ष्य नहीं है कि इंडो- आर्यो का भारत पर हमला हुआ या वे भारत आए और न ही आर्यो के अस्तित्व का कोई साक्ष्य है । श्री सिंह बीएचयू के उपकुलपति और शोध के सह-लेखक है ।
शोधकर्ताआेंने करीब ६लाख आनुवांशिक सूचनाआें का अध्ययन किया । इसके लिए ११२ जनसमुदायों के १३०० लोगों के डीएनए की जाँच की गई, इनमें ३० भारतीय जाति समूह भी शामिल हैं । शोध में एकत्र ऑकड़ों से यह तथ्य उभरा कि दक्षिण एशिया के लोगों में दो प्रमुख वंश है । एक दक्षिण और पश्चिम एशिया और मध्य एशिया में फैला है जबकि दूसरा वंश दक्षिण एशिया तक सीमित रहा । शोध के अनुसार दक्षिण एशिया की ५० प्रतिशत से अधिक आबादी भारतीय वंशो की है ।

बहस में है पुल्लपेरियार बांध

बड़े बॉधों के निर्माण को लेकर हमारे देश मेंहमेशा ही विवाद रहा है । भाखड़ा नंगल बाँध परियोजना से लेकर टिहरी, सरदार सरोवर, बाण सागर, नर्मदा सागर आदि तमाम बाँध परियोजनाएँ अपनी शुरूआत से लेकर पूरा होने तक तथा उसके बाद भी विवादों से घेरे में रहीं है । इसी कड़ी में अब केरल का मुल्लपेरियार बाँध भी जुड़ गया है ।
तमिलनाडु से लगी केरल की सीमा में इडुकी जिले में पेरियार नदी पर बने इस ११६ साल पुराने बाँध में दरारें आ जाने से इसके ढहने और उससे भीषण तबाही होने की आशंका जताते हुए केरल सरकार ने इस बाँध की जगह कम ऊँचाई वाला एक नया बाँध बनाने की पेशकश की है । केरल सरकार का मानना है कि मौजूदा बाँध वाटर बम की तरह है, क्योंकि यह भूकम्प का मामूली झटका भी सहन करने की स्थिति में नहीं है । यह बाँध १८९५ में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और त्रावणकोर के राजा के बीच हुए समझौते के तहत बना था । चूँकि इस बाँध के ९९९ वर्ष के लीज अधिकार तमिलनाडु के पास हैंऔर उसके कई जिलोंको इस बाँध से काफी मात्रा में पानी मिलता है, इसलिए तमिलनाडु सरकार इस बाँध को तोड़कर नया बाँध बनाए जाने के प्रस्ताव का विरोध कर रही है । उसे आंशका है कि नया बाँध बनने से उसे मिलने वाले पानी की मात्रा कम हो जाएगी ।
बाँध को लेकर पैदा हुए इस विवाद ने जहाँ केरल में सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी को एकजुट कर दिया है, वहीं तमिलनाडु में भी सभी राजनीतिक दल एक सूर में बोल रहे हैं । इस विवाद की आँच करेल और तमिलनाडु की सीमाआें को लाँघते हुए दिल्ली तक भी आ पहुंची है । दोनों राज्यों के सांसद और स्वयंसेवी संगठन राजधानी में दबाव बना रहे हैं । दोनों ही राज्यों की सरकारें इस मामले में प्रधानमंत्री से दखल देने का आग्रह कर रही हैं । केन्द्र सरकार इस मामले में जो भी पहल करें और समाधान सुझाए, लेकिन उसे बड़े बाँधों की उपयोगिता और खतरों पर भी एक बार फिर से विचार करना चाहिए । मुल्लपेरियार बाँध से उपजे विवाद ने यह नया अवसर उपलब्ध कराया है ।

मध्यप्रदेश में सोने का भंडार मिला

देश में सोना उत्पादन करने वाली कर्नाटक की कोलार गोल्ड माइन में सोने का भंडार खत्म होने के बाद बड़ी मात्र में इस मूल्यावन पीली धातु की खोज में मध्यप्रदेश को बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है ।
प्रदेश में खनिजों की तलाश करने वाली जियो मैसूर सर्विसेज (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को सिंगरौली जिले के गुरहर पहाड़ में सोने का यह भंडार मिला है । सैटेलाइट सर्वे में जमीन के नीचे सोना होने के संकेत मिलने के बाद कंपनी ने प्रॉस्पेक्टिंग लायसेंस लेकर ड्रिलिंग के जरिए जमीन के नीचे इस धातु का पता लगाया । कंपनी द्वारा २१ वर्ग किमी के जिस क्षेत्र के लिए पूर्वेक्षण अनुमति ली, उसमें से तीन किलोमीटर लंबी पट्टी में सोने का भंडार मिला है । अब तक करीब दो हजार मीटर तक कंपनी खुदाई कर चुकी है, जिसमें १७ मीट्रिक टन सोना मिलने का अनुमान लगाया गया है । अगले एक साल में यहां दस हजार मीटर खुदाई की जाएगी ।
उम्मीद की जा रही है कि इस खुदाई में सोने का भंडार और बढ़ सकता है । खास बात यह है कि टीलेनुमा गुरहर पहाड़ से सोना निकालने के लिए कोलार की तरह सुरंगें नही बनानी पड़ेगी । यहां कम गहराई पर ही यह धातु होने से खुली खदान के जरिए उत्खनन होगा, जिससे सोना निकालने की लागत भी कम आएगी । जियो मैसूर ने यहां सोने की खदान के लिए राज्य सरकार के साथ एमओयू भी किया है । खनिज विभाग के सचिव एसके मिश्र के अनुसार, पूर्वेक्षण का काम पूरा होने के बाद यहां सोना उत्खनन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी ।

खाद्य सुरक्षा एक क्रांतिकारी कदम

एक लंबे अरसे से हमारा देश जिन गंभीर चुनौतियों या समस्याआें से जुझ रहा है, उनमें कुपोषण और भुखमरी की समस्या अहम है ।
देश में लगभग ४७ फीसद बच्च्े कुपोषण के शिकार हैं और हर साल हजारों इस गंभीर समस्या के मद्देनजर अगर सरकार ने देश की लगभग ६३.५ फीसद आबादी यानी गांव और शहर के लगभग ८० करोड़ गरीब लोगों को भोजन का बुनियादी अधिकार दिलाने वाला कानून बनाने की दिशा में पहल करते हुए बहुप्रतीक्षित खाद्य सुरक्षा विधेयक को मंजूरी दी है तो उसके इस क्रांतिकारी लोक कल्याणकारी कदम का स्वागत किया जाना चाहिए ।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी का अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् द्वारा तैयार खाद्य सुरक्षा विधेयक का मसौदा लगभग डेढ़ वर्ष तक चले गंभीर विचार-विमर्श के बाद पिछले दिनों केन्द्रीय मंत्रीमण्डल की बैठक में पेश हुआ था । कांग्रेस ने पिछले चुनाव में अपने घोषणा-पत्र में खाद्य सुरक्षा कानून बनाने का वादा किया था । खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने के बाद सरकार का खाद्य सबसिडी पर खर्च मौजूदा २७,६६३ करोड़ रूपए से बढ़कर लगभग ९५,००० करोड़ रूपए हो जाएगा । इतनी बड़ी राशि खर्च होगी इसलिए कुछ विशेषज्ञ यह दलील दे रहे हैं कि जब हमारी सरकारें निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के कई औघोगिक उपक्रमों को आर्थिक संकट से उबारने के लिए अरबों रूपए के राहत पैकेज दे सकती है, उनके करोड़ों रूपए के कर्ज माफ कर सकती है, नए उद्योग लगाने के लिए करोड़ों रूपए मूल्य की जमीन औने-पौने दामों में दे सकती है तो फिर देश के गरीब और वंचित तबके के लोगों को पेटभर भोजन देने से सरकारी खजाने पर पड़ने वाले बोझ का चिंता से दुबला होने की क्या जरूरत हैं ?

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