मंगलवार, 24 जनवरी 2012

ज्ञान विज्ञान

सुन्दर दिखने की चाहत और मधुमक्खी का डंक

विश्वास नहीं होता है कि किसी का जहर भी आपको सुंदर बना सकता है, लेकिन यह सच है । खूबसूरत बनने की चाह में ब्रिटेनवासी अनोखा तरीका अपना रहे हैं । ब्रिटेन में धुमक्खी के डंकों वाली सौंदर्य क्रीम की मांग तेजी से बढ़ी है । मधुमक्खी के डंक झुर्रियां मिटाकर बुढ़ापा दूर भगाते है । इस क्रीम की चाहत तीन सप्तह के अंदर हजारों फीसदी बढ़ गई है । विशेषज्ञों के मुताबिक बोटोक्स (एक प्रकार का प्रोटीन) की मौजूदगी वाली सौंदर्य क्रीम पिछले माह ब्रिटेन के बाजार में उतारी गई थी । तब से इसकी मांग ३००० प्रतिशत बढ़ गई है । बोटुलिनम जहर को बोटोक्स के नाम से जाना जाता है । यह क्लॉट्रिडियम बोटुलिनम बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न प्रोटीन है । सौंदर्य प्रसाधनों व चिकित्सा प्रक्रियाआें में इसका इस्तेमाल किया जाता है । विशेषज्ञ बताते हैं कि लोगों में सुंदर दिखाई देने का जुनून है, वे हर वो तरीका अपनाना चाहत हैं, जिससे सामने वाले पर अपने चेहरे की छाप छोड़ी जा सके । इसी के चलते यह नई क्रीम लोगों को काफी पंसद आ रही है ।

yahaan तक कि लोग अपने चहेतों को भी यह क्रीम उपयोग करने के लिए कर रहे है ।
क्रीम के प्रत्यके डिब्बे में १०,००० से ज्यादा मधुमक्खी के डंक होते हैं । दावा किया जाता है कि डंक झुर्रियों को दूर कर त्वचा में कोलेजन (एक प्रकार का प्रोटीन) का उत्पादन बढ़ाता है । यह प्रोटीन त्वचा व मांसपेशियों में नई कोशिकाआें के बनने को प्रोत्साहित करता है । बताया जाता है कि मधुमक्खी का साफ किया हुआ जहर ऑस्ट्रेलियाई पॉप गायिका काइली मिनॉग का सबसे पसंदीदा सौंदर्य प्रसाधान है ।
चूहों और मेढ़कों का शौकीन एक पौधा
अगर कहा जाए कि कोई पौधा मांस का शौकीन है, तो कैसा होगा, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से यह सच है । अप्रत्याशित रूप से मांस के प्रति झुकाव के कारण एक डरावन को पौधे को नई प्रजाति का दर्जा दे दिया गया है । यह पौध अभी तक विज्ञान से अछूता था । चूहों और मेढ़कों के शौकीन क्वींस ऑफ हाट्र्स को वनस्पति विज्ञान की दंत कथाआें जैसा कहा जा सकता है । १९८० में बोर्नियो में पहली बार इस पौधे का पता लगाया गया । यह बड़े मांसाहारी पौधों में से एक है, जिसकी पंत्तियां २.५ मीटर तक होती है । इसकी खोज करने वाले वनस्पति विशेषज्ञ रोब कैं टले ने इसका नाम नेपैथेस रोबकैंटले रख दिया ।

पौधे को नई प्रजाति का दर्जा देने से पहले वनस्पति वैज्ञानिक पिछले पांच सालों से मुद्दे को लेकर बहस कर रहे थे । उन्होनें इसके लिए लंबे समय तक शोध किया । इतना ही नहीं चेल्यिसा फ्लोवर शो में इस पौधे ने ४ स्वर्ण पदक भी जीत । इसके बाद रॉयल होलिटीक्लचर सोसायटी ने इसे प्रजाति का दर्जा प्रदान किया ।
प्रजाति का दर्जा देने से पहले रॉयल बोटनिक गार्डन्स के प्रमुख डॉ. मार्टिन चीक को इस पौधे की तस्वीरें और पत्तियां दिखाई गई । इसका अध्ययन करने के बाद नेपैथ्स के विशेषज्ञ डॉ. चीक ने तुरन्त इसे नई खोज बताया । डॉ. चीक ने कहा कि यह गैर पारंपरिक और अचंभा है । जब मुझे यह अध्ययन के लिए दिया गया तो इसमें समझने में देर नहीं लगी, कि यह विज्ञान के लिए एकदम नया है । उन्होेंने कहा कि इस खोज के बाद हमें कई चीजों को नए सिरे से समझने की कोशिश करनी होगी और यही सही होगा ।
ब्रह्मांड में एक और पृथ्वी
पिछले दिनों नासा के वैज्ञानिकों ने हमारे सौर मण्डल से बाहर एक ऐसे ग्रह की खोज की है, जो पृथ्वी जैसा है और जहाँ जीवन होने की संभावना है । इसे सुपर अर्थ और पृथ्वी - २ कहा जा रहा है । नासा का कहना है कि केपलर-२२ बी नामक यह ग्रह ६०० प्रकाश वर्ष की दूरी पर है और इसका आकार पृथ्वी से २.४ गुना बड़ा है । इस पर तापमान २२ डिग्री सेल्सियस है । पृथ्वी-२ हमारे सबसे करीब पृथ्वी जैसा ग्रह है । इस ग्रह पर एक साल २९० दिनों का होता है । वैज्ञानिकों ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के केपलर टेलीस्कोप की सहायता से इस नए ग्रह की खोज की । इस ग्रह पर जमीन और पानी दोनों हैं और संभावित जीवन के लिए यहाँ माकूल पर्यावरण है । किसी भी ग्रह पर जीवन की संभावना होने के लिए उसका अपने सूर्य से उचित दूरी होना जरूरी है, ताकि वह न तो ज्यादा गर्म हो और न ही ठंडा । ग्रह की खोज करने वाले वैज्ञानिकों के दल का कहना है कि केपलर-२२ बी की अपने तारे से दूरी जीवन की संभावनाआें की उम्मीद जगाने वाली है। हालांकि दल को अब तक पता नहीं चला है कि केपलर-२२ बी चट्टान, गैस या तरल किससे बना है । इस ग्रह को सबसे पहले मार्च २००९ में केपलर स्पेसक्राप्ट लांच किए जाने के तुरन्त बाद देखा गया था । नासा में केपलर के प्रमुख अनुसंधानकर्ता बिल बोरूची ने कहा कि केपलर-२२ बी के रूप में हमें एक ऐसा ग्रह मिला है, जिस पर जीवन के लिए जरूरी सारे तत्व मौजूद है । केपलर नासा का पहला ऐसा अभियान है, जो आकाशगंगा में सूर्य जैसे तारों का चक्कर लगा रहे पृथ्वी जैसे गृहों की खोज के लिए चलाया जा रहा है । इस अभियान पर नासा ६० करोड़ डॉलर खर्च कर रहा है ।
पौधों में नर-मादा की साइज
लगभग ६० वर्ष पूर्व वर्नहार्ड रेंश ने जंतुआें के बारे मे ंएक रोचक निष्कर्ष प्रस्तुत किया था । उन्होंने पाया था कि बड़े शरीर वाले जन्तुआें (जैसे मनुष्य) में नर का आकार बड़ा होता है जबकि छोटे शरीर वाले जंतुआें (जैसे मकड़ी) में मादा बड़ी होती है । अब पता चला है कि पेड़-पौधे भी रेंश के इस नियम का पालन करते हैं । वैसे तो अधिकांश पेड़-पौधों पर नर व मादा दोनों जननांग पाए जाते हैं, यानी ये द्विलिंगी होते हैं । मगर करीब ७ प्रतिशत वनस्पतियां एकलिंगी हैं । इनमें कोई पौधा या तो नर होगा या मादा । न्यूजीलैण्ड के विक्टोरिया विश्वविघालय के केविन बर्न्स और पैट्रिक केवेनाग ने न्यूजीलैण्ड के नेशनल म्यूजियम में उपलब्ध २९७ एकलिंगी पौधों के नमूनों के तनों और पत्तियों की नाप-तौल की । nhonen पाया कि रेंश का आकार संबंधी नियम इन पर लागू होता है । सवाल था कि ऐसा क्यों है । बर्न्स का मत है कि मादा को बीज व फल का वजन वहन करना होता है । इसके अलावा, उन्हें अपने इन फूलों व फलों को प्रदर्शित भी करना पड़ता है ताकि उनके बीजों को बिखराने वाले और उनके फूलों का परागण करने वाले जन्तु आकर्षित हों । दूसरी ओर, यदि जलवायु अथवा चयापचय छोटे पौधों को तरजीह देते हैं, तो नर पौधे सिकुड़ सकते हैं क्योंकि उनके पराग कण तो बारीक होते हैं । मोनश विश्वविघालय, ऑस्ट्रेलिया के मार्टिन बर्ड के मुताबिक यह संभव है कि सफल नर पौधे ज्यादा बड़े फूल या ज्यादा संख्या में फूल पैदा करते हैं ताकि परागणकर्ताआें को आकर्षित कर सकें । यदि ऐसा है तो इन फूलों को पैदा करने और इनका प्रदर्शन करने के लिए ज्यादा बड़ी पत्तियों और ज्यादा बड़े तनों की जरूरत होगी । वैसे बर्ड का कहना है कि यह मात्र अटकल है और इसकी जांच करने की जरूरत है ।

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