बुधवार, 11 जुलाई 2012

समाज, नदी और सरकार

               संपादकीय जीवन के लिये जल जरूरी है । जल संरक्षण सरकार और समाज का साझा दायित्व है । आज नदियों को जोड़ने के स्थान पर समाज नदी से जुड़े, इसकी आवश्यकता है ।
    समाज के नदी से अलगाव के कारण आज नदी और समाज के अस्तित्व पर संकट के बादल घने होते जा रहे है । नदी के प्रति समाज की लगातार उपेक्षा ने दोनों को रोगी बना दिया है । जिस प्रकार मनुष्य का शरीर बाहरी दवाईयों से नहीं अपितु अदरूनी शक्ति के विकास से स्वस्थ एवं दीर्घायु होता है, उसी प्रकार किसी सूखती नदी में दूसरी नदी का जल डाल देने से नदी सजल नहीं होती, नदी में जल प्रवाहमान तभी होता है जब नदी की निजी जल क्षमता का विकास होगा । स्वयं नदी अपनी जलग्रहण शक्ति से सदानीरा बनकर स्वस्थ एवं दीर्घायु होती है । यह कोई असंभव काम नहीं है, समाज इस दिशा में एक बार संकल्पित हो जाये तो फिर परिणाम आने में ज्यादा देर नहीं    लगेगी । पिछले वर्षो में राजस्थान में तरूण भारत संघ के नेतृत्व में समाज के सहयोग से मृतप्राय ६ नदियां सजीव हो चुकी है ।
    हर साल बरसात में जो पानी हमें मिलता है, उसे सहेजना और किफायती तरीके से उपयोग करना हमारे विवेक और तकनीकी दक्षता पर निर्भर करता है । हमारी वन विनाशकारी एवं पर्यावरण विरोधी विकास प्रक्रिया भी जल संरक्षण के प्रयासों की सफलता में बड़ा अवरोध है । हमें विकास की हमारी अवधारणा और जीवन शैली में पर्यावरण सम्मत परिवर्तन लाना होंगे । इस प्रकार व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी प्रयासों की सफलता से न केवलजल अपितु जंगल, जमीन और जीवधारी सभी दीर्घ जीवन प्राप्त् कर सकेंगे ।
    हम समाज और सरकार के सकारात्मक प्रयास से ही हमारी नदियों को सदानीरा बनाकर समृद्धि के नये आयाम स्थापित करेंगे ।

कोई टिप्पणी नहीं: