रविवार, 14 अक्तूबर 2012

पर्यावरण परिक्रमा
अभी नहीं संभले तो भविष्य में पानी की कंगाली
    पर्यावरण विशेषज्ञों ने करीब २०० प्रमुख वैश्विक परियोजनाआें की २० साल तक समीक्षा के बाद कई कारणों से पानी की कंगाली वाली पैदा होने की चेतावनी दी है ।
    संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम  (यूएनईपी) के साथ मिलकर सार्वजनिक कोष मुहैया कराने वाली सबसे बड़ी  संस्था, ग्लोबल एनवायरमेंट फेसिलिटी (जीईएफ) ने जल परियोजनाआें पर यह रपट पेश की है, जिनकी कुल लागत सात अरब डॉलर से अधिक है । यूएन यूनिवर्सिटी इंटरनेशनल नेटवर्क ऑन वाटर, एनवायरमेंट एंड हेल्थ के निदेशक और रपट के सहलेखक जफर अदील ने कहा है कि यह अध्ययन इस बात को रेखांकित करता है कि उभरते मुद्दों के संबंध में शुरूआती चेतावनियों को कैसे सुना जाए और उनका पालन किया जाए ।
    साइंस-पॉलिसी ब्रिजेज ओवर ट्रबल्ड वाटर्स शीर्षक वाली रपट दुनिया भर के  ९० से अधिक वैज्ञानिकों के निष्कर्षोंा का संश्लेषण करती है । इन वैज्ञानिकों को जीईएफ के  ५ अंतरराष्ट्रीय जल विज्ञान कार्यकारी समूहों में बांटा गया था, जिन्हें भूजल, झीलों, नदियों, जमीनी प्रदूषण स्त्रोतों, विशाल समुद्री परिस्थितिकियों और खुले महासागरों पर ध्यान केंद्रित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी । रपट में कहा गया है, कमजोर निर्णय प्रक्रिया के नतीजे घातक हैं, हम दुनिया के कई क्षेत्रों में जल कंगाली की स्थिति का सामना कर रहे हैं, जिसका मानव सुरक्षा की चुनौतियों पर असर है । जल एवं जल प्रणालियों पर बढ़ी मानवीय मांगों के अपर्याप्त् और असंबद्ध प्रबंधन ने ऐसी स्थिति पैदा की है, जहां सामाजिक और पारिस्थितिकी खतरे में आ गई हैं और यहां तक की नष्ट भी हो गर्ह हैं ।  
प्रतिरोधी टीबी का इलाज
    पिछले ५ वर्षो में टीबी का प्रकोप बढ़ा है और चिंता का विषय यह रहा है कि टीबी अब कई मौजूदा दवाइयों की प्रतिरोधी हो गई है । टीबी का दवा  प्रतिरोधी होना जन स्वास्थ्य की एक प्रमुख समस्या बनकर सामने आई है । मगर अब यह खबर है कि एक ऐसी दवा खोज ली गई है जो प्रतिरोधी टीबी के खिलाफ कारगर है और इससे टीबी के उपचार में लगने वाला समय भी कम हो जाएगा ।
    इस नई दवा का नाम है पीएएमजेड । दरअसल यह दवाइयों का एक मिश्रण है जिसमें एक दवा तो वही है जो पहले भी टीबी के इलाज में उपयोग की जाती थी पायरीजिनेमाइड । इसके साथ मॉक्सिफ्लाक्सेसिन और एक अन्य दवा पीए-८२४ मिलाई गई है । इन दोनों का उपयोग टीबी के इलाज में नहीं किया जाता था हालांकि पीए-८२४ की टीबी के खिलाफ प्रभाविता की खबरें २००१ में मिल चुकी थी ।
    परीक्षण के दौरान देखा गया है कि पीएएमजेड़ टीबी बैक्टीरिया (मायाकोबैक्टीरियम ट्यूबकुलोसिस) की कई प्रतिरोधी किस्मों का खात्मा कर देती है । इनमें वे प्रतिरोधी बैक्टीरिया शामिल हैं जो दक्षिण अफ्रीका, भारत और पूर्व सोवियत देशों में टीबी फैलातें है । और तो और, पीएएमजेड को यह काम करने के लिए सामान्य की अपेक्षा तीन गुना कम गोलियों की जरूरत होती है और लागत भी पहले से १० गुना कम आती है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के टीबी विरोधी अभियान के निदेशक मारियो रेविग्लियोन का मत है कि पीएएमजेड़ सचमुच एक समाधान है और यह सस्ता, कम विषैला तथा आसान है ।
    दी लैंसेट में प्रकाशित शोध पत्र के मुताबिक  पीएएमजेड़  के असर का अंदाज दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में लोगों के चार समूहों पर परीक्षण से मिला है । खखार परीक्षण के आधार पर देखा गया कि इन तीन दवाइयों का मिश्रण दो सप्तह के अंदर टीबी के ९९ फीसदी बैक्टीरिया का सफाया कर देता है ।
मंगल पर कभी बहती थी जलधाराएं
    मंगल पर जीवन की संभावनाआें से जुड़े चिन्ह तलाशने के लिए गए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के रोवर क्यूरोसिटी को अपने मिशन की पहली कामयाबी के तौर पर यहां पानी के शुरूआती संकेत मिले हैंै। नासा की क्यूरोसिटी टीम से जुड़े वैज्ञानिक रिबेका विलियम्स ने कहा कि क्यूरोसिटी द्वारा भेजी गई तस्वीरों को देखकर हमें यह लगता है कि जिस जगह रोवर लैंड हुआ है, वहां कभी जलधारा बहा करती थी । इसमें घुटने तक पानी था । 
    क्यूरोसिटी ने गेल क्रेटर के उत्तरी सिरे पर एक बड़ी चट्टान को ढूंढ निकाला । क्यूरोसिटी द्वारा प्रेषित इस चट्टान की कई तस्वीरों में उसमें कइ्रर् गोलाकार पत्थरों को फंसा दिखाया गया है । यह चट्टान हवा में आधी उठी हुई थी । 
    वैज्ञानिकों का कहना है कि चट्टान में फंसेपत्थर बेहद वजनी है और मंगल पर चलने वाले अंधड़ में उड़कर उनका यहां तक पहुंचना      मुमकिन नहीं होगा । रिबेका ने कहा कि यहां यकीनन पानी की एक ताजा बहने वाली धारा रही होगी, जो इन पत्थरों को बहाकर यहां लाई होगी । कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिक जान ग्रोटजिगंर ने कहा की यकीनन बहता हुआ पानी सूक्ष्म जीवों के पनपने की आदर्श जगह रहा होगा । यह चट्टान इस तरह के तत्वों के संरक्षण की आदर्श जगह हो भी सकती है और नहीं भी । वैज्ञानिकों ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि इस चट्टान का रासायनिक परीक्षण करने का विचार नहीं किया ।

चुनाव अभियान में जानवरों पर प्रतिबंध

    भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने एक आदेश जारी कर चुनाव अभियानों में राजनीतिक दलों द्वारा जानवरों  के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है । एक पशु अधिकार संगठन ने कहा है कि यहां जारी एक परामर्श में राजनीतिक दलों से कहा गया है कि चुवान प्रचार में किसी भी जानवर का किसी भी रूप में इस्तेमाल न किया जाए ।
    पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल (पेटा) ने कहा है कि पशु संरक्षण के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताआें के बार-बार के अनुरोध के बाद निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलोंऔर उम्मीदवारों से अपनेे अभियानों में जानवरों के उपयोग सेे बाज आनेे के लिए कहा है ।   निर्वाचन आयोग के परामर्श में कहा गया है कि आयोग को कई व्यक्तियों और संगठनों से अनुरोध प्राप्त् हुए हैं, जिनमें आरोप लगाया है कि घोड़े, टट्टू , गधे, हाथी, ऊंट और बैल चुनाव अभियानों के औरान कई मायनों में क्रुरताके  शिकार होते हैं । निर्वाचन आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को परामर्श जारी किया है और उनसे कहा है कि वे पशु क्रुरता निवारक अधिनियम-१९६० और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम-१९७२ का उल्लघंन न करें । निर्वाचन आयोग के इस कदम का स्वागत करते हुए पेटा-इंडिया के पशु मामलों के निदेशक मणिलाल वलियाटे ने कहा कि यह उन सभी पशुआें की जीत है, जो आसानी से उल्लंघनों का शिकार बनते हैं, क्योंकि वे चुवान के दौरान नियमित सड़कों पर घूमते रहते हैं । 
गौरेया और मधुमक्खियों को बचाने की मुहिम
    केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने लंबे समय बाद आखिरकार मान लिया है कि मोबाइल फोन के टावरोंसे निकलने वाला रेडिएशन गौरेया और मधुमक्खियों के लिए घातक है । इससे अब विलुप्त् होती जा रही चिड़िया और मधुमक्खियों को बचाने की उम्मीद जगी है । हालांकि दूरसंचार मंत्रालय अब भी यह मानने को तैयार नहींे है कि टावरों से निकलने वाला रेडिएशन मनुष्य और पक्षियों के लिए खतरनाक है । ऐसे में केंद्र सरकार के दो मंत्रालयों के बीच टकराव की नौबत आ सकती है । दिल्ली में गौरेया को बचाने के लिए प्रदेश सरकार सक्रिय हो गई है, लेकिन दूरसंचार मंत्रालय मोबाइल टावरों को लेकर गंभीर नजर नहीं आ रहा है । पर्यावरण व वन मंत्रालय ने इस विषय पर विशेषज्ञों की रिपोर्ट आने के बाद नए मोबाइल टावर लगाने को लेकर सख्त दिशा-निर्देश व सुझाव जारी कर दिये हैं । इसके तहत अब वन्यजीव व संरक्षित क्षेत्रों में नये मोबाइल टावर लगाने से पहले पर्यावरण व वन मंत्रालय की मंजूरी अनिवार्य कर दी गई है ।  दूरसंचार मंत्रालय से कहा गया है कि एक  किलोमीटर के दायरे में  नया टावर न लगाए ।

कोई टिप्पणी नहीं: