रविवार, 14 अक्तूबर 2012

 वन्य जीवन सप्तह पर विशेष
खामोश परिंदों का व्यापार
डॉ. महेश परिमल
    क्या आप जानते है कि विश्व में जो गैरकानूनी धंधे हैं, उनमें नशीली दवाइयों और हथियारों के बाद किसका नम्बर आता है ? जी हां, खामोश पक्षियों का । विश्व में पक्षियों की संख्या लगातार घटती जा रही है । आखिर कम कैसे ना हो, करीब २५ हजार अरब रूपए अवैध कारोबार पक्षियों के नाम ही होता है ।
    पक्षियों के नाम पर होने वाले इस विश्व स्तरीय गोरखधंधे में हजारों लोग लगे हुए हैं । ये न तो  परिंदों की जुबान समझते हैं, न ही उनकी संवेदनाआें से इनका वास्ता है । खामोश परिंदों की तस्करी भी अजीबो-गरीब तरीके से होती हे । असम में तो पक्षियों का हाट लगता है । आश्चर्य की बात यह है कि सरकार ने अभी तक इस दिशा में कोई गंभीर कदम नहीं उठाया है । जिस देश में मानव तस्करी नहीं रोकी जा सकती, वहां जानवरों और पक्षियों की क्या बिसात ?
    हाल ही में मुंबई के सहारा अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर इथियोपियन एयरलांइस से एक बड़ा पार्सल आया । यह पार्सल किसी ने अदिस अबाबा से बुक कराया था । दो फीट लंबे इस बैग से दुर्गध आ रही थी । इससे एयरपोर्ट कर्मचारियों को शंका हुई । तुरन्त ही सोसायटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल (एसपीसी) को फोन किया  गया । वहां से कुछ अनुभवी कर्मचारी आए, बैग खोला गया । बैग खुलते ही सबकी आंखे चौंधिया गई । बैग से दस खूबसूरत भूरे रंग के अफ्रीकन तोते निकले । इन इस तोतों में से ५ की मौत हो चुकी थी । बाकी की हालत गंभीर  थी । इन तोतों को परेल के पशु चिकित्सालय ले जाया गया ।
    कई दिनों तक खुराक न मिलने और घुटन के कारण इन मूक पक्षियों की हालत बहुत ही खराब थी । इलाज के दौरान ५ में से तीन तो अस्पताल में ही मर गए । दो तोतों को बड़ी मुश्किल से बचा लिया गया । अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इन तोतों की कीमत २५-४० हजार रूपए है । हमारे देश से हर सला इस तरह से डेढ़ लाख पक्षियों की तस्करी की जाती है । मुम्बई इस तस्करी का मुख्य अड्डा है ।
    विश्व में पक्षियों की कुल १२ हजार प्रजातियां पाई जाती हैं । इनमें से ३०० प्रजातियां ऐसी हैं, जिनका गैर कानूनी रूप से व्यापार किया जाता है । इसके पीछे कई कारण है । विश्व भर के हजारोंशौकीन पक्षी पालते हैं । केवलइसी शौक के कारण हजारोंपक्षी शिकारियों के जाल में फंस जाते हैं । कई लोग अपनी जीभ के स्वाद के कारण पक्षियों का भक्षण करते हैं । अब इन मांसाहारियों को मुर्गे और बतख के मांस में उतना मजा नहीं आता, इसलिए ये लोग अब सारस और मोर का मांस खाने लगे हैं । ऐसे लोगों की जीव्हा को तुष्ट करने के लिए हर वर्ष करोड़ों पक्षियों का मारा जाता है ।
    युरोप और अमरीकी देशों में एशिया और अफ्रीका के दुर्लभ पक्षियों का बड़ा बाजार है । ब्रिटेन हर वर्ष हजारों पक्षियों का आयात करता है । ब्रिटेन का कानून ऐसा है कि जिन पक्षियों को पिंजरे में कैद कर  पाला जा सकता है, उन पक्षियों का आयात किया जा सकता है । अब यह कहना मुश्किल है कि किस पक्षी को जंगल से पकड़कर लाया गया है और किसे पिजंरे में पालकर लाया गया है । ब्रिटेन ने १९९५ से २००० के बीच २३ हजार ९३० पक्षियों को आयात किया  था । ब्रिटेन में जिन देशों से पक्षियों का आयात किया जाता है, उनमें भारत, चीन और अफ्रीकन देश हैं । ब्रिटेन जितने पक्षियों का आयात करता है, उनमें से ८८ प्रतिशत जंगल से शिकारियों द्वारा पकड़े जाते हैं ।
    पक्षियों का शिकार करने के लिए विभिन्न तरीके इस्तेमाल होते हैं । कई तरीके तो बहुत ही ज्यादा क्रूर हैं। कई शिकारी जंगल में पक्षियों को फंसाने के लिए पेड़ों पर जाल बिछा देते हैं बड़े पक्षियों के लिए पिंजरा छोड़ देते हैं । पिंजरों में पक्षियों की प्रिय खुराक रख देते हैं । कई शिकारी डालियों पर चिकना पदार्थ लगा देते हैं । इस डाली पर बैठने वाला पक्षी बाद में उड़ नहीं पाता । पक्षियों को इतने क्रूर तरीके से पकड़ा जाता है, इसका अहसास भी पक्षी पालकों और पक्षीभक्षियों को न होगा ।
    हमारे देश में हजारों पक्षी तो केवलपिंजरे में ही दम तोड़ देते हैं । यही नही कई बार शिकारी जाल बिछाकर भूल जाते हैं, पक्षी उसमें फंसेरहकर ही अपना दम तोड़ देते हैं । यदि शिकारी पक्षियों को जंगल से ले भी आएं, तो तुरन्त ही उन्हें ग्राहक नहीं मिलते । शिकारियों के पास पक्षियों को खुराक भी ठीक से नहीं मिलती, इसलिए यहां भी पक्षी अपनी जान नहीं बचा पाते । एक ही पिंजरे में आवश्यकता से अधिक पक्षियों को कैद कर दिया जाता है । पिंजरे मेंपक्षी आपस में झगड़ते भी हैं । यहां भी बलशाली पक्षी अपने से कमतर पक्षी को मार डालता है । इस तरह से जितने पक्षी विमान या स्टीमर से बाहर भेजे जाते हैं, उनमें से कई पक्षियों की मौत तो इस तरह से हो जाती है ।
    भारत से पक्षी निर्यात सिंकदर के समय से चला आ रहा है । भारत के एक महाराज ने सिकंदर को बोलता हुआ तोता भेंट किया था । सिकंदर को यह तोता इतना भाया कि वह उसे यूनान ले गया । इस तोते को सिकंदर ने अपने गुरू अरस्तू को भेंट में दिया । जो तोता सिकंदरभारत से ले गया था, आज उसे एलेक्जेंड्रियन पेराकीट के रूप में जाना जाता है । आज भी अरब के शेख ऐसे तोतों को भारत से ले जाते है । अरब शेखों का दूसरा शौक बाज़है, जिसे वे अन्य पक्षियों के साथ लडाने के लिए पालते हैं । उनके इस शौक मेंलाखों पक्षियों की जान जाती है ।
    विश्व बाजार में जिन पक्षियों का निर्यात किया जाता है, उनमें मुख्य हैं, बुलबुल, मैना, तोता, बाज आदि । पालतू पक्षियों में लव बर्ड की भी विदेशों में काफी मांग है । यह कहा जाता है कि जो पक्षी जितना सुंदर होता है, उसकी हत्या की संभावना उतनी ही अधिक होती     है । उत्तर भार में हंस, बतख, फ्लेमिंगो का बाजार लगता है । एक बाजार में चार महीने में करीब २ हजार पक्षी खरीदे बेचे जाते है । भारत में पक्षी पकड़ने का सीजन जनवरी से जनू तक माना जाता है । असम के गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के किनारे पक्षियों का बहुत बड़ा बाजार लगता है । यहां बेचे गए पक्षी सुदूर मुम्बई तक पहुंचाए जाते हैं ।
    भारत में पक्षियों के अवैध व्यापार के संबंध में अब तक का सबसे बड़ा शोध शाद बाम्बे नेचरल हिस्ट्री सोसायटी के अबरार अहमद ने किया है । काम इस तरीके से किया गया कि शिकारियों को भनक तक न लगे । देश के अनेक जंगलों की खाक छानने के बाद उन्होनें रिपोर्ट दी, वह चौंकाने वाली है । अहमद ने अपनी आंखो के सामने दो लाख पक्षी पकड़कर बेचे जाते देखा  है । अपने इस रिसर्च को अहमद अब पीएच.डी. के रूप में प्रस्तुत करने जा रहे हैं ।
    पक्षियों की तस्करी रोकने के लिए १९७३ में अमरीका के वाशिंगटन में विश्व के ८० देशों के प्रतिनिधियों की एक बैठक हुई थी । इस बैठक में पक्षियों की तस्करी रोकने के लिए कई नियम-कायदे बनाए गए । भारत ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं । इस समझौते को कन्वेशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेंड एंडेंजर्ड स्पीशीज (सीआईटीएस) के नाम से जाना जाता है । इसके द्वारा ६ पक्षी प्रजातियों को रेड डैटा लिस्ट में रखा है । रेड डैटा लिस्ट का मतलब होता है कि ये प्रजातियां अब कभी भी विलुप्त् हो सकती है ।
    एक शोध में यह बात सामने आई है कि पूरे विश्व में दो करोड़ पक्षी पकड़े जाते है, इसमें से केवल ३५ प्रतिशत पक्षी ही बाजार तक पहुंच जाते है, शेष ६५ प्रतिशत पक्षियों की मौत हो जाती है । पक्षियों के इस गैर कानूनी व्यापार का आंकड़ा २५ अरब अमरीकन डॉलर तक पहुंचता है ।
    इस तरह से देखा जाए तो कई बार पक्षियों की मौत हमारी नासमझी के कारण होती है । अंधविश्वास है कि कौआें की टांग पर धाग बांधकर उन्हें छोड़ दिया जाए, तो शगुन होता है । इसलिए लखनऊ में एक निश्चित दिन कौआें का बाजार लगता है । दूसरी ओर तांत्रिक विद्या में भी पक्षियों के खून की आवश्यकता पड़ती है । कहीं कबूतर लड़ाने का शौक है, तो कहीं मुर्गे । तांत्रिक उल्लुआें का शिकार कर उनका उपयोग तंत्र विद्या के लिए करते हैं । इस तरह के खामोश परिंदों का गलत इस्तेमाल विभिन्न तरीकों से हमारे देश में हो रहा  है । लेकिन इस दिशा में ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है, जिससे लगे कि हमारा देश मूक पक्षियों के लिए भी चिंतित है ।

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