रविवार, 14 अक्तूबर 2012

जनजीवन
वायु प्रदूषण : आनुवांशिकता पर प्रभाव
डॉ. गीता शुक्ला
    पर्यावरण को बचाने की लड़ाई हिटलर को खत्म करने से बहुत ज्यादा कठिन है क्योंकि यह लड़ाई अपने आप से है । अलगोर
    पर्यावरण समस्त भौतिक (हवा, जल, मिट्टी, ध्वनि, सड़क, भवन, पुल आदि) जैविक और सामाजिक (परिवार, समुदाय, व्यवसाय, उद्योग आदि) कारकों की यह व्यवस्था है जो मानव को किसी न किसी प्रकार से प्रभावित करती है ।
    प्रदूषण से तात्पर्य केवल हानिकारक तत्वों का वातावरण में आ जाना ही नहीं बल्कि पर्यावरण के किसी घटक की प्राकृतिक गुणवत्ता में परिवर्तन से है । वायु के भौतिक, रासायनिक या जैविक घटकों का वह परिवर्तन जो मानव एवं उसके लाभदायक जीवों व वस्तुआें पर प्रतिकूल प्रभाव डाले वह वायु प्रदूषण कहलाता   है ।
    सन् १९७० से लेकर आज तक जो कुछ घटा है वह सब अप्रत्याशित है । विभिन्न आविष्कारों ने विश्व का नक्शा ही बदल दिया है । पूरी धरती को एक छत के नीचे लाकर विश्वग्राम बना दिया है परन्तु इससे जो क्रूर माजक प्रकृति के साथ हुआ है उसका प्रतिफल हम सब भुगत रहे हैं । पारिवारिकता समाप्त् हुई है, संवेदना का हृास हुआ है तथा मानवीय मूल्यों में तेजी से गिरावट आई है । व्यक्ति की जीवनशैली में आए भटकाव से उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण संकट हमारे कृत्यों की ही प्रतिक्रिया है ।
    जब अपराधी छोटे स्तर के दण्ड से नियंत्रित नहींहोते तो उनके लिए बड़े और विशिष्ट स्तर के दण्ड का प्रावधान करना पड़ता है और प्रदूषण की प्रतिक्रिया मनुष्य के बन्ध्यत्व के रूप में घटित होने जा रही है । सर्वप्रथम इसकी जानकारी एक विज्ञान कथा लेखिका की एक रचना से मिली । जो कि इस प्रसिद्ध अंग्रेज लेखिका का उपन्यास है ।
    विकृत पर्यावरण का प्रभाव केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर ही नहींबल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। उत्तेजना या दबाव चाहे ऋतुआें के कारण हो या प्रदूषण से दोनों ही स्थितियों में उतना काम नहीं हो सकता है जितना संतुलित वातावरण में ।
    पर्यावरण का हमारे स्वास्थ्य से सीधा संबंध है । प्रदूषण से अजन्मा बच्च भी प्रभावित हो रहा है क्योंकि गर्भस्थ शिशु भी बाह्य पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होता है । यह प्रदूषण गर्भ में पल रहे भ्रूण पर भी कहर बरपा रहा है गर्भस्थ शिशु के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को तहस-नहस करने की पूरी क्षमता प्रदूषण में है ।
    नई दिल्ली के अपोलो अस्पताल की एक स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मधुरूचि के अनुसार कुछ प्रदूषित तत्वों का भार वा रासायनिक संरचना गर्भस्थ शिशुआें के आहार से मिलती-जुलती है जिससे ये तत्व प्लेसेंटा द्वारा गर्भ में पहँुच जाते हैं इनमें से टेराटोजेंस नामक रसायन तो भ्रूण की सरंचना को ही चौपट कर सकता है ।
    नई दिल्ली के ही गुरू तेग बहादुर अस्पताल के बालरोग विशेषज्ञ डॉ. फरीदी के अनुसार - पर्यावरण प्रदूषण से घर की चहारदीवारी के अन्दर भी वायु की गुणवत्ता घटी है जिससे गर्भस्थ शिशु बुरी तरह प्रभावित होता है और यह स्थिति विकासशील एवं अविकसित राष्ट्रों में कुछ ज्यादा ही खराब है । कार्बनमोनो ऑक्साइड भ्रूण को प्राणदायी ऑक्सीजन से वंचित करने का काम करता है । प्लेसेंटा में फैलकर भ्रूण के रक्त संचार से जुड़ जाता है । यदि भ्रूण में कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ती है तो उसे मीकोनियम कहते हैं इससे मस्तिष्क व हृदय बुरी तरह से प्रभावित होते हैं । मीकोनियम भ्रूण के मुँह या फेफड़ों में पहुँचकर गर्भस्थ शिशु को मौत की नींद सुला देता है क्योंकि यह कॉर्बनडाईऑक्साइड की अपिेक्षा २०० गुना ज्यादा तेजी से हीमोग्लोबिन में पहुँचता है ।
    थियोकोलवॉन द्वारा रचित एक ग्रन्थ अवर स्टोलन फ्यूचर प्रदूषण से होने वाली समस्याआें की विशद विवेचना की है । उनका कहना है कि प्रदूषण के कारण पुरूषों की प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है । शुक्राणुआें की संख्या २१ प्रतिशत की दर से कम हो रही है । इंडोक्राइन के व्यातिक्रम के कारण पुरूषों का स्त्रीकरण और स्त्रियों का पुरूषीकरण हो रहा है जिसे जेंडरवेंडर्स के नाम से जाना जाता है ।
    एक पाश्चात्य विद्वान के अनुसार - लड़कियाँ समय से पूर्व युवावस्था को प्राप्त् हो रही हैं जिसका जिम्मेदार ऑस्ट्रेजन नामक हार्मोन है और इस हार्मोन के व्यतिक्रम का कारण वायु प्रदूषण है । अत: वायु प्रदूषण को रोकना होगा ।
    वायुमण्डल की जीवनोपयोगी स्थिति कायम रहे इसके लिए आवश्यक है कि दृश्य और अदृश्य जीव सत्ता का अस्तित्व स्थिर रहे जबकि प्रदूषण से ऑक्सीजन घटेगी कार्बनिक गैसें बढ़ेगी जिससे प्राणियों का जीवन कठिन हो जाएगा वे क्रमश: दुर्बल सुस्त और अविकसित होते चले जाएँगे और केवल जीवधारी ही नहींजीवाणु सत्ता भी अपना अस्तित्व गंवाती चली जाएगी क्योंकि गैसीय आहार तो उन्हें भी चाहिए ।
    मिलान (इटली) के एक सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक ने अपनी वैज्ञानिक शोधों के आधार पर बताया है कि जल्दी ही वह युग आ रहा है जब धरती पर से पुरूष सत्ता का नामो निशान मिट  जाएगा । यह संभावना इसलिए की गई है कि उससे भू्रण में नरलिंग निर्धारण करने वाले क्रोमोसोम नष्ट हो जाते हैं प्रदूषित वातावरण की घुटन असाध्य बीमारियों से भी आगे बढ़कर अनुवांशिकी नष्ट करने पर तुल गई है ।
    एक डनिश अन्त:शास्त्री ग्रन्थि विशेषज्ञ नील्स ई.स्कैकविक ने अपनी एक शोध रिपोर्ट एक जर्नल में प्रकाशित करवाई जो ६१ ग्रन्थों के अध्ययनों पर आधारित थी । इस रिपोर्ट के अनुसार - पिछले ५० वर्षो में स्वस्थ पुरूषों के शुक्रणुआें में ४० प्रतिशत की गिरावट आई है और असामान्यों में विकारयुक्त होने की पुष्टि हुई है जिसमें या तो सन्तानोत्पत्ति की क्षमता होती ही नहीं या फिर विकृत सन्तानोपत्पत्ति होती     है ।
    द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् सैकड़ों रसायनों की खोज और प्रयोग से जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है । ये रसायन साबुन सौन्दर्य प्रसाधन, रंगरोशन, प्लास्टिक, कीटनाशक या अन्य उत्पादों में विद्यमान रहता है और इनके माध्यम से ये हमारी जीवनशैली के अंग बन चुके है । ये प्रदूषणकारी तत्व जेनेटिक संरचना को भी परिवर्तित करने मेंसमर्थ है । ये रसायन ऑस्ट्रेजन की तरह हैं जिसका उल्लेख पहले किया जा चुका है ।
    न केवलपाश्चात्य अपितु भारतीय डॉ. अनिरूद्ध मालपानी तथा डॉ. अंजली मालपानी ने भी इसकी निश्चित विवेचना अपनी एक रचना में की है ।
    डब्ल्यू.एच.ओ. (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की जन स्वास्थ्य एवं पर्यावरण निदेशक मारिया नीरा के अनुसार इस दिशा में हमें प्रयास करने की जरूरत है यदि हम पर्यावरण की स्थिति पर नजर रखें और इसे स्वच्छ रखने के लिए कदम उठाएँ तो पर्यावरण प्रदूषण से होेने वाली बीमारियाँ कम हो जाएंगी । इसके अतिरिक्त यू.एन.ई.पी. के निदेशक ने अपने संदेश में विश्व समुदाय का आहृान करते हुए कहा है कि पर्यावरण की सुरक्षा विश्व की सुरक्षा है ।

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