बुधवार, 16 मार्च 2016

सम्पादकीय
परागण में सहायक प्रजातियां खतरे में 
फल व बीज उत्पादन के लिए पहला कदम परागण कहलाता है । एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार पराग बीजवाले पौधो के नर भाग, परागकोष में बनता है और कई तरीकों (हवा, पानी, कीट-पतंगे, वगैरह) से मादा भाग, स्त्री केसर तक पहुंचाया जाता है और यही पर निषेचन होता  है । कुछ बीज वाले पौधे या तो नर होते है या मादा, मगर अधिकांश पौधे दोनों होते है यानी उनमें पराग और ब्रीजांड दोनों होते है । कुछ पौधे अपने ही बीजाड़ में परागण करते है, जबकि दूसरे अपने पराग को मिलते-जुलते दूसरे पौधे तक या फिर अपनी ही जाति के दूसरे पौधे तक पर-परागण के जरिए पहुंचाते है । 
पिछले दिनों (२२-२८ फरवरी) मलेशिया की राजधानी कुआलालपुंंर में १०० से ज्यादा देशों के प्रतिनिधियों ने मधुमक्खियों, तितलियों और पक्षियों की परागण प्रजातियों पर विस्तृत विचार विमर्श किया । यह १२४ यूएन मेम्बर नेशंस वाले जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाआें पर अंतर सरकारी विज्ञान-नीति मंच इंडीपेडेंट वर्किग ग्रुप का आयोजन था । इस सम्मेलन में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर दुनिया भर के प्रतिनिधियों ने पराग परिवहन करने वाली प्रजातियों के अस्तित्व पर मंडराते खतरे को चिन्हित किया । बैठक में एक विस्तृत रिपोर्ट भी पेश की गई, जिसे दो साल की मेहनत और लगभग ३००० वैज्ञानिक शोधों के आधार पर विश्व के ७७ विशेषज्ञोंने तैयार किया है । 
परागण करने वाली प्रजातियों के बिना भविष्य में दुनिया चॉकलेट, कॉफी और वनीला आइस्क्रीम के अलावा ब्लूबैरीज, ब्राजीलियाई बादाम, गॉला और कॉक्स सेब जैसे हेल्दी फूड्स खाने से वंचित रह सकती है । पराग के फैलाने वाली प्रजातियों और उनकी संख्या में निरन्तरहोती जा रही कमी का नुकसान इससे भी कहीं ज्यादा उस आजीविका और संस्कृति को पहुंचेगा, जो परागण प्रजातियों से जुड़ी हुई है । पराग परिवहन करने वाली प्रजातियों जैसे, मधुमक्खियों, पक्षियों, चमगादड़ों, भृंगों, तितलियों आदि में कमी का मतलब लाखों लोगों की आजीविका के साथ-साथ सैकड़ों बिलियन डॉलर के नुकसान का संकट भी पेश कर सकता है । 

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