बुधवार, 16 मार्च 2016

पर्यावरण परिक्रमा
नर्मदा घाटी में दुर्लभ जीवाश्म मिले 
खोजकर्ताआें ने नर्मदा घाआी क्षेत्र में समुद्री प्रवाल के दुर्लभ जीवाश्म पहली बार ढंूढ निकालने का दावा किया है, जिससे इस क्षेत्र में अलग-अलग कालखंडों में भौगोलिक और जैव विविधता का नया अध्याय खुल गया है । खोजकर्ता समूह मंगल पंचायत परिषद के प्रमुख एवं जीवाश्म वैज्ञानिक विशाल वर्मा ने बताया कि हमें नर्मदा घाटी क्षेत्र के धार जिले में समुद्री प्रवाल के जीवाश्म मिले हैं । यह पहला मौका है, जब इस क्षेत्र में समुद्री प्रवाल के जीवाश्म पाए गए हैं। 
श्री वर्मा ने कहा कि अनुमान हैं कि ये समुद्री प्रवाल करीब नौ करोड़ वर्ष पुराने हैं । इनकी खोज से इसको बल मिलता है कि मौजूदा नर्मदा घाटी क्षेत्र में करोड़ों वर्ष पहले टेथिस सागर (अब विलुप्त्) की एक भुजा लहराया करती थी । हम समुद्री प्रवालों के जीवाश्मों के आधार पर पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि नर्मदा घाटी क्षेत्र में करोड़ों वर्ष पहले कौन-सी प्रजातियों के समुद्री जीव-जन्तु मौजूद रहे होंगे । उन्होनें बताया कि उनके खोजकर्ता समूह का धार जिले में जिस जगह जीवाश्म मिले हैं, वह स्थान मान नदी के बेसिन का हिस्सा है । मान नर्मदा की सहायक नदी है । मंगल पंचायत परिषद ने पहली बार दुनिया का ध्यान तब खीचा था, जब उसने २००७ में धार जिले में डायनोसारों के २५ घोसले ढूंढे थे । इनमें डायनोसरों के अंडो के जीवाश्म बड़ी तादाद में मिले थे । 
प्रदेश सरकार धार जिले में करीब १०८ हेक्टेयर के उस क्षेत्र को राष्ट्रीय डायनोसोर जीवाश्म उद्यान के रूप में विकसित करने की परियोजना पर काम कर रही है, जहां इन जीवों ने सहस्त्राब्दियों पहले अपने घोंसले बनाए थे । 
वर्मा ने बताया, हम समुद्री प्रवालों के जीवाश्मों को धार जिले में बन रहे राष्ट्रीय डायनोसोर जीवाश्म उद्यान को दान करेंगे, ताकि भूगर्भ वैज्ञानिक, शोधार्थी और विद्यार्थी इनका अध्ययन कर सके । 
पाकिस्तान संसद सौर ऊर्जा से रोशन होगी
पाकिस्तान की संसद अब पूरी तरह सौर ऊर्जा से जगमगाने वाली यह दुनिया की पहली संसद बन गई है । प्रधानमंत्री नवाज शरीफ व पाकिस्तान में चीन के राजदूत सुन वेइडोग ने पिछले दिनों बटन दबाकर संसद की सौर ऊर्जा प्रणाली का उद्घघाटन किया । 
इस प्रोजेक्ट ने चीन ने ५.५ करोड़ डॉलर (करीब २८ करोड़ रूपये) की मदद दी है । संसद के सौर ऊर्जा संयंत्र से ८० मेगावॉट बिजली का उत्पादन होगा । नेशनल असेबली के स्पीकर सरदार अयाज सादिक ने बताया संसद को ६२ मेगावॉट बिजली की ही जरूरत है । बाकी १८ मेगावॉट बिजली नेशनल ग्रिड को दी जाएगी । इससे संसद के बिजली बिल में २.८ करोड़ रूपये की सालाना बचत होगी । 
इस मौके पर प्रधानमंत्री शरीफ ने कहा, पाकिस्तान मे बिजली संकट को मैंखुद देख रहा हॅू । लेकिन मेरी कोशिश है कि पाकिस्तान का बिजली संकट २०१८ तक पूरी तरह खत्म हो जाए । अभी संसद भवन की छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाया गया है इससे संसद भवन की उनकी जरूरत को पूरी बिजली मिलेेगी । निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य संस्थानों को भी यह तरीका अपनाना चाहिए । 
चीन ने २०१५ में पाकिस्तानी संसद को वैकल्पिक ऊर्जा  स्त्रोत उपलब्ध कराने में मदद की पेशकश की थी । उस वक्त चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पाकिस्तान यात्रा पर गए थे । दुनिया में अभी इजरायल समेत कुछ अन्य देशों के संसद भवन सौर ऊर्जा पर निर्भर है लेकिन ये आंशिक रूप से ही हो पाये है । 
वैज्ञानिकों ने दक्षिणी धु्रव पर उगाई सब्जी 
दक्षिणी धु्रव (अंटार्कटिक) की विपरीत परिस्थितियों में चीन के वैज्ञानिकों ने वहां हरी सब्जी उगाने में सफलता प्राप्त् की है । अंटार्कटिक में चीन के दूसरे अनुसंधान केन्द्र झोंगशान स्टेशन पर २०१३ में एक ग्रोथ चेम्बर स्थापित किया गया    था ।
यहां चीनी वैज्ञानिकों ने ४०० दिन का एक रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू किया है । प्रोजेक्ट में हिस्सा ले रहे शोधार्थियों को अंटार्कटिक में काम करने के दौरान वहां हरी सब्जी उगाने वाले वांग झेंग पिछले महीने ही देश लौटे है । उन्होनें बताया कि दक्षिणी धु्रव पर अब नियमित हरी सब्जी उगाकर खाई जा सकती है । रिसर्च प्रोजेक्ट के दौरान पता चला कि वहां उत्पादकता इतनी कम है कि मौजूदा वैज्ञानिकों को भोजन के लिए पर्याप्त् सब्जियां नहीं मिल सकती । 
पेशे से हड्डी रोग विशेषज्ञ वांग झेग खेती के बारे में नहीं जानते थे, लेकिन साथियों की जरूरत ने उन्हें वनस्पति विज्ञान को समझने का मौका दिया । उनका और साथियों का प्रयास सफल हुआ । अब उनके १८ वैज्ञानिक साथियों को खाने में कम से कम एक समय खीरा, सलाद या पत्ता गोभी दिया जाता है । 
दक्षिणी धु्रव पर पड़ने वाला अंटार्कटिक महाद्वीप बहुत ही विपरीत परिस्थितियां वाला स्थान है । सदियों में यहां सप्तहों तक सूरज नहीं निकलता, वहीं गर्मियों में दिसम्बर के अंत से मार्च के अंत तक सूर्यास्त ही नहीं होता है । 
दुनिया का पहला डेंगू वैक्सीन तैयार 
मच्छरों की वजह से होने वाली बीमारियों में डेंगू को सबसे ज्यादा घातक माना जाता है । विकासशील देशों में हर साल इस बीमारी की वजह से सैकड़ों जाने जा रही है । सिर्फ एशियाई देशों की बात करें तो यहां डेगू के इलाज पर प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से ६.३ बिलियन अमरीकी डॉलर खर्च हो रहे हैं । 
स्थिति इसलिए भी खराब है क्योंकि इस बीमारी का अब तक कोई इलाज नहीं था । इससे बचाव ही इसका इलाज माना जाता है । लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस बीमारी का इलाज खोज लिया है और इससे निदान का वैक्सीन बना लिया गया है । सैनोफी नाम की एक दवा कम्पनी ने डेंगवैक्सीया नाम का टीका विकसित कर लिया है, जो डेंगू पीड़ितों के इलाज में मददगार साबित हो सकता है । इस वैक्सीन की पहली खेप को पिछले दिनों फिलीपींस भेजा गया है । फिलीपींस सरकार ने दिसम्बर २०१५ को सभी जांचे पूरी होने के बाद डेंगवैक्सीया को देश में मान्यता दे दी थी । 
डेंगवैक्सीया नामक यह वैक्सीन डेगू से संंबंधित सभी प्रकार की बीमारियों में कारगर साबित हुआ है और इसे ९ साल से ४५ वर्ष पीड़ितों को लगाया जा सकता है । 
डेंगवैक्सीया को एक साल की अवधि में तीन खुराकों के रूप में लगाया जा सकता है । 
कैंसर का टीका बना
कैंसर काप टीका बनकर तैयार हो गया है । वैज्ञानिकों का दावा है कि इससे कैंसर मरीज की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है और शरीर के अंदर के ट्यूमर का खात्मा हो जाएगा । कैंसर से बचाने के लिए पहली बार ब्रिटिश महिला केली पॉटर (३५) को टीका लगाया गया है । गत वर्ष जुलाई में केली को एडवास्ड सर्वाइकल कैंसर होने की पुष्टि हुई  थी । डॉक्टरों के मुताबिक केली का कैंसर चौथे स्टेज में पहुंच चुका    था । केली को लंदन के गाइज अस्पताल में ९ फरवरी को यह टीका लगाया गया । जिन मरीजों पर ट्रायल हो रहा है, उनका इलाज कीमोथैरेपी के जरिए भी किया जाएगा । ट्रायल के लिए ३० लोगों की लिस्ट है ।
वैज्ञानिकों का दावा है कि इस वैक्सीन में एक खास तरह का प्रोटीन एंजाइम होता है, जो कैंसर के सेल्स को तोड़कर धीरे-धीरे उसे खत्म कर देता है । उम्मीद की जा रही है कि हम वैक्सीन की सफलता के बाद कैंसर का इलाज और आसान हो जाएगा । ट्रायल के ३० लोगों की लिस्ट है । यह ट्रायल अगले २ साल तक चलेगी । 
केली को टीके के बाद ट्रीटमेंट पूरा करने के लिए हॉस्पिटल के सात राउंड लगाने पड़े । डॉक्टरों ने चेताया कि उनमें फ्लू के लक्षण आ सकते है । हालांकि अभी ऐसा हुआ नहीं है । 
अब आरक्षित वन में भी मना सकेंगे पिकनिक
म.प्र. में वन्य जीवन देखने के लिए अब नेशनल पार्क और सेंचुरी जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी । शुल्क देकर पर्यटक अपने नजदीक अपने नजदीक के आरक्षित जंगलोंमें इन्हें देख सकेंगे । पर्यटक इन जंगलों में रात भी गुजार सकेंगे और पिकनिक भी मना सकेंगे । ऐसे इलाकों को मनोरंजन क्षेत्र व वन्यप्राणी अनुभव क्षेत्र के रूप में विकसित करने के नियम जारी कर दिए है । सभी डीएफओ से ऐसे स्थानों का चयन कर सूची मांगी है । 
वन अधिकारियों के अनुसार टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क और सेंचुरी में पर्यटकों के बढ़ते दबाव को कम करने के लिए यह व्यवस्था बनाई गई है । हालांकि यह नियम संरक्षित क्षेत्रों (टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क और सेंचूरी) में शामिल आरक्षित वन क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे । 
वन विभाग मनोरंजन क्षेत्रों में पर्यटकों को कैंपिंग, ट्रेकिंग, बोटिंग, फोटोग्राफी, जिप लाइनिंग, प्रकृति पथ, हाईकिंग, वर्डवाचिंग, वन्यप्राणी सफारी पेड़ों की शाखाआें पर बनी झोपड़ियों में रात गुजारने की सुविधाएं उपलब्ध कराएगा । 

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