बुधवार, 16 मार्च 2016

कविता
प्रकृति
कुंवर कुसुमेश

संघटकों का प्रकृति के, बिगड़ गया अनुपात ।
बिगड़ रहे हैं इसलिए, दिन पर दिन हालात ।।
पर्यावरण असंतुलन, सहन न करती सृष्टि । 
इसके कारण ही दिखे, अनावृष्टि, अतिवृष्टि । 
प्रतिदिन होता जा रहा, मौसम तुनक मिजाज ।
मानो गिरने जा रही, हम पर कोई गाज ।।
पर्यावरण उपेक्षा, पहुंचाये नुकसान ।
असमय अपने काल को, बुला रहा इंसान ।।
नित बढ़ता शहरीकरण, और वनों का ह्यस ।
धीरे-धीरे कर रहा, प्रकृति संतुलन नाश ।।
अगर आप हैं चाहते, मानव का कल्याण ।
रखिए अपने से अधिक, वन उपवन का ध्यान ।।
इंसानों के हैंनहीं, अच्छे क्रिया कलाप ।
बढ़ता भौतिकवाद है, मानवीय अभिशाप ।।
विश्व स्वास्थ्य संगठन है, बेहद चिन्ता ग्रस्त ।
दूषित पर्यावरण से, सारी दुनिया त्रस्त ।
परिवर्तित है प्राकृतिक, भौगोलिक परिदृश्य ।
विश्लेषण परिदृश्य का, करिये स्वयं अवश्य ।।
पांच जून पर्यावरण, दिवस विश्वविख्यात ।
इसे मनाये प्रेम से, लायें सुखद प्रभात ।।

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