रविवार, 17 अप्रैल 2016

जीवन शैली
अब तो जहर भी मिलावटी
राजकुमार कुम्भज
भारत में खाद्य पदार्थों में मिलावट दिनों दिन गंभीर समस्या बनती जा रही है। ढीले-ढाले नियमों और कानूनों और व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार स्थितियांे को और भी अधिक जोखिम भरा बनाता जा रहा  है ।
देेश के आज उपभोक्ता महंगाई और मुनाफाखोरी से  परेशान हैं साथ ही सार्वजनिक खाद्य सुरक्षा प्रयोगशालाओं में जांच किए गए खाद्य पदार्थों का हर पांच मंे से एक नमूना मिलावटी और गलत मार्क अर्थात मिथ्याछाप (मिस ब्रांडेड) पाया गया हैं । भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफ एस एस ए आई) द्वारा जारी प्रयोगशालाआंेे की परीक्षण रिपोर्ट से इस तथ्य का खुलासा हुआ है । परीक्षण रिपोर्ट तो यह भी बता रही है कि वर्ष २०१५ में तकरीबन पंद्रह सौ मामलों में आरोपियों को दोषी पाया गया और उनसे करीब ग्यारह करोड़ की राशि बतौर जुर्माना वसूल की गई । एक चौंकाने वाली सूचना यह रही कि मिलावट के सर्वाधिक मामलों में उत्तरप्रदेश अगर प्रथम स्थान पर रहा तो पंजाब व मध्यप्रदेश, क्रमश: दूसरे और तीसरे क्रम पर रहे । जून २०१५ में एफ एस ए आई द्वारा ``मैगी`` पर प्रतिबंध कुछ अधिक ही चर्चा में आ गया था ।
उद्योग संगठन एसोचैम ने भी दावा किया है कि देश में बिक रहे ६० से ७० फीसदी फिटनेेस अथवा फूड सप्लीमेंट नकली हैं । हमारे देश में इनका वर्तमान बाजार तकरीबन दो अरब डॉलर का है। विटामिन और खनिजों के पूरक आहार के ग्राहकों की संख्या में तेजी से हो रहे इजाफे को देखते हुए उद्योग संगठन ऐसोचैम ने कहा है कि देश में बेचे जा रहे ६० से ७० फीसदी फिटनेस फूड गैर मान्यता प्राप्त हैं । साथ ही इन नकली उत्पादों की पहचान कर पाना भी बेहद मुश्किल है। ये पूरक आहार किसी भी सरकारी संस्थान से मान्यता लिए बिना ही बाजार में बेचे जा रहे हैं। क्या बिना किसी मिलीभगत के नकली पूरक आहार इतनी बड़ी तादाद में बिक सकते हैं ?
पूरक आहार के निरंतर बढते जा रहे उपभोक्ताओं में सबसे बड़ा योगदान मध्य वर्ग का है। बढ़ती क्रय शक्ति के चलते मध्य वर्ग अपने स्वास्थ्य को लेकर कुछ अधिक ही सजगता दिखा रहा हैंऔर भारी मात्रा में पूरक आहारों का इस्तेमाल करने को आतुर है । ज्ञातव्य है ये तमाम पूरक आहार बाजार में गोली, कैप्सूल जेल, जैल-कैप, द्रव्य अथवा चूर्ण आदि के आकार में सर्वसुलभ हैं। एसोचैम की सर्वेक्षण रिपोर्ट चौकाने वाली हो सकती हैं किन्तु यही सच है। भारत के लगभग सभी बड़े शहरों में तकरीबन अस्सी फीसदी किशोर जाने-आनजाने ही पूरक आहारों का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं । ये अपनी आधी-अधूरी जानकारी और अल्पज्ञान की वजह से अपना शरीर सौष्ठव बनाने, बीमारियों से लड़ने की क्षमता तथा अपनी ऊर्जा का स्तर बढ़ाने के निमित्त इन पूरक आहारों का सेवन करते हैं। चिकित्सको के मुताबिक यह सब न सिर्फ गलत व हानिकारक है, बल्कि खतरनाक भी है।
उपभोक्ताओं को नकली पूरक आहारों के चंगुल से बचाने की गरज से प्रखंड स्तर पर छोटी-छोटी समितियां स्थापित करने की सिफारिश की गई है। इनकी बड़ी जिम्मेदारी नकली पूरक आहारों की मौजूदगी पर निगरानी रखने की होगी ही साथ ही वे नकली उत्पादों की बिक्री रुकवाने में भी जरुरी कदम उठा सकेंगी ताकि उपभोक्ताओं को नक्कालों की जानलेवा करतूतों से सावधान करते हुए बचाया जा सके । हमारे देश में जमाखोरी और मिलावटखोरी रोकने के लिए कानून तो हैं लेकिन वे इतने प्रभावशाली नहीं हैंकि उनसे लोगोंे में डर पैदा किया जा सके, मिलावटखोर किलोग्राम से मिलावाट करते है और मिलीग्राम में जुर्माना भरकर पतली गली से निकल लेते हैं।
खाद्य पदार्थो की प्रामाणिकता का मुद्दा नए सिरे से वर्ष २०१५ जून में उठा और खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण अर्थात एफ एस एस ए आई ने ``मैगी`` की बिक्री पर उसकी अमानकता की वजह से प्रतिबंध लगाया था । तब बम्बई उच्च्न्यायालय ने प्राधिकरण द्वारा जारी किए गए प्रतिबंध को हटा दिया था । यहां तक कि खाद्य सुरक्षा प्राधिकारी की सिफारिश को सर्वोच्च् न्यायालय तक ने भी अमान्य कर दिया था । इस सबसे मिलावाटखोरी को कोई नसीहत मिलने से तो रही बल्कि उनकी हिम्मत ही बढ़ती दिखाई देती है ।
गौरतलब है खाद्य सुरक्षा प्राधिकारी अर्थात एफ एस एस ए आई के पास देश की सवा सौ करोड़ की आबादी के खाने की जांच-पड़ताल के लिए सिर्फ ३६२१ कर्मचारी ही हंै। अर्थात एक कर्मचारी पर तकरीबन साढ़े तीन लाख लोगों की खाद्यसुरक्षा की जिम्मेदारी थोप दी गई है । देशभर में कुल जमा सिर्फ  बारह जांच प्रयोग शालाएं हैंजहां किसी भी राज्य से आने वाले अथवा भेजे जाने वाले विवादित खाद्य नमूनों की प्रामाणिक परीक्षक के लिए कुल जमा १६० प्रयोग शालाआंे को मान्यता है । जबकि तीन बरस में सत्रह की मान्यता रद्द हुई हैंऔर ७० से अधिक ने अपनी मान्यता लौटा दी है। ये एक अजीब किस्म का घालमेल है जिसकी वजह से मिलावाटी खाद्यप्रदार्थ बेचने वाली चार में से तीन कंपनियां सजा पाने से बच निकलती हैं। देश में तकरीबन ५२ फीसदी बीमारियां मिलावाटी खाद्य पदार्थोंेके कारण ही होती हैंपिछले पांच बरस में प्रदूषित खाद्य प्रदार्थों से होने बीमारियों के तकरीबन छ: करोड़ मरीजों की शिनाख्त की गई है जिनमें से लगभग साढ़े तीन लाख लोग मर गए ।  
मिलावाटखोरों पर सख्त कार्रवाई के अभाव में न सिर्फ आम खाद्य पदार्थोबल्कि आम आदमी के आम उपभोग की प्रत्येक खाद्य वस्तु में धड़ल्ले से मिलावाटखोरी जारी है। कहा जा सकता है कि उपभोक्ताओं में जागरुकता की कमी और सख्त सजा का अभाव होने से मिलावाट-खोरों के हौसले बुलंद हैं। 

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