रविवार, 17 अप्रैल 2016

सिहंस्थ परिक्रमा
योग में समाया है सिंहस्थ का सार
भारतीय ज्योतिष शस्त्र तथा नक्षत्र मेखला की गणनानुसार देखा जाए तो लगभग १२ वर्ष बाद सिहंस्थ महाकुंभ का आयोजन होता है । सिहंस्थ की दृष्टि से देखें तो सिंह राशि के बृहस्पति तथा मेष राशि के सूर्य की साक्षी में सिहंस्थ महापर्व का आयोजन होता है । 
गणना तथा तिथि सिद्धांत के अनुसार देखा जाए, तो बृहस्पति का एक राशि में परिभ्रमण की स्थिति ३६१ दिन की होती है, इस अनुसार सिंहस्थ महापर्व १२ वर्ष में अपनी परिक्रमा का बृहस्पति का अनुक्रम समाप्त् होता है । 
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बावाला ने बताया कि पंचाग के अनुसार सिहंस्थ में वार, तिथि, योग, नक्षत्र, करण इन पांच अंगों का विशेष महत्व है । सिंहस्थ महापर्व पर सभी दिव्य संयोग पंचाग के पांच अंगों से आगे बढ़ते है । जैसे चैत्र मास की पूर्णिमा से लेकर वैशाख पूर्णिमा तक सिंहस्थ का आयोजन एक माह का माना गया है, किन्तु इसमें भी विशेष तिथि तथा योग एवं नक्षत्र पर बल दिया जाता है । 
उज्जैन की भूमि देवी-देवताआें से परिपूर्ण है । यहां उत्तर वाहिनी क्षिप्रा, दक्षिणेश्वर ज्योतिर्लिग श्री महाकाल, दक्षिणेश्वरी महाकाली हरसिद्धि, दक्षिणी तंत्र प्रधान अष्ट महाभैरव, अष्ट विनायक गणेश सहित नवनाथ, तंत्र सिद्ध स्थली, ओखरेश्वर, महाशक्तिभेद श्मशान तीर्थ, चक्रतीर्थ, चौरासी महादेव, नव नारायण आदि विशेष देव तथा देवियों से परिपूर्ण यह उज्जयिनी । 
यहां दो प्रकार के मत हैं । पहला क्षिप्रा के तट पर बसी उज्जयिनी, जो मोक्षदायिनी क्षिप्रा के नाम से जानी जाती है । दूसरा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिग, जिसका शिव महापुराण में उल्लेख है । महाकालेश्वर ने अघौर पंथ के तीन बिन्दुआें का समयोजन उज्जयिनी के जीरो रेखांश से संबंधित बताया है । 
ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया कि सिंह राशि के बृहस्पति की प्रािप्त् वैशाख शुक्ल पूनम में हो, तब उज्जैन में सिंहस्थ महापर्व होता है । इसके लिए १० योग बताए जाते हैं, लेकिन हर बार ये योग नहीं मिलते हैं । इस बार २०१६ में सिंहस्थ के दौरान कुल छह योग बन रहे है । 

पर्यावरण सन्तुलन के लिए सिंहस्थ में३४ दिनी यज्ञ
महायोगी पायलट बाबा के शिष्य महामंडलेश्वर अवधूत बाबा अरूण गिरि के शिविर में सिंहस्थ के दौरान पर्यावरण संतुलन के लिए ३४ दिवसीय यज्ञ होगा । २० अप्रेल से २४ मई तक चलने वाल यज्ञ में नामचीन हस्तियों सहित देश-विदेश के हजारों भक्त शामिल होंगे । यज्ञ के दौरान हेलिकॉप्टर से पुष्प वर्षा भी की जाएगी । 
अवधूत बाबा का शिविर सिंहस्थ बायपास रोड़ पर स्थित है । शिविर में तेजी के साथ यज्ञ की तैयारी चल रही है । विश्व पर्यावरण यज्ञ से लोगों को लाभ मिलेगा । यज्ञ से पर्यावरण पूरी तरह से संतुलित होगा, साथ ही अच्छी बारिश होगी । अवधूत बाबा ने कहा कि यज्ञ में फिल्म अभिनेत्री सुष्मिता सेन समेत फिल्मी दुनिया के कुछ लोगों के आने की संभावना है । यज्ञ की तैयारी महामंडलेश्वर शिवागीनंद गिरि की देखरेख में चल रही है । 
मंगलनाथ क्षेत्र में नेपाली बाबा के कैंप में ११ मंजिला यज्ञशाला का निर्माण पूर्णता की ओर है । अब जल्द ही १७ मंजिली यज्ञशाला का निर्माण प्रारंभ होगा । श्रीरामनाम जप कल्याण समिति अध्यक्ष लोकेन्द्र मेहता के अनुसार जल्द ही यज्ञशाला का निर्माण कार्य पूर्ण हो जाएगा । 
इसके बाद १७ मंजिली यज्ञशाला का निर्माण पूजा-अर्चना के साथ प्रारंभ किया जाएगा । यज्ञशाला सिहंस्थ के दौरान आकर्षण का केन्द्र  रहेगी । सिंहस्थ में नेपाली बाबा की सबसे बड़ी और ७० फीट ऊंची यज्ञशाला बन रही है । 
इसके निर्माण में सवा सौ कारीगर लगे है । निर्माण में १ लाख बांस, १० बजार बल्लियां, १ लाख घास के पुले और १० क्विंटल नरेटी रस्सी का उपयोग होगा । यज्ञशाला में नर्मदा से लाए गए १००८ शिवलिंग की स्थापना होगी । 
सम्राट विक्रमादित्य के नौ रत्न 
सम्राट विक्रमादित्य के नौ रत्न थे । इन नौ रत्नों को लेकर अनेक जनश्रुतियां है । वहीं प्राचीन साहित्य में श्लोक के माध्यम से इनकी महत्ता भी प्रतिपोदित है - 
धन्वन्तरिक्षणकामरसिंह शंकुवेतालभट्टघंटकर्पर कालिदासा: । 
ख्यातो वराहमिहिरो नृपते: 
सभायां रत्नानि वे 
वररूचिर्नव विक्रमस्य ।।
इन नवरत्नों के नाम पर उज्जैन के नये शहर के विभिन्न मार्गो का नामकरण है । साधारणत: ये नाम बोलने और पढ़ने में कठिन है लेकिन इनकी महत्ता के बारे में नई पीढ़ी को जानना चाहिए । 
धन्वन्तरि : ये एक श्रेष्ठ चिकित्सक थे । धन्वन्तरि के नाम से सृजित कई ग्रंथ है । उज्जैन की महिदपुर तहसील में वैजनाथ का मन्दिर है । इस मन्दिर का संबंध धन्वन्तरि से बताया जाता है । 
क्षपणक : जैन साधुआें को क्षपणक कहा जाता है । विक्रम के दरबार में जैन साधु सिद्धसेन दिवाकर थे, जो महान विद्वान एवं अनेक ग्रंथों के रचियता थे । 
अमरसिंह : ये विक्रमादित्य के कोषाकार थे । उन्होनें संस्कृत भाषा मेंअमर कोष नामक ग्रंथ की रचना की थी । उनके इस इस ग्रंथ पर अनेक टिकाएं लिखी जा चुकी   है । 
शंकु : इनके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त् नहीं होती है । यह कहा जाता है कि शंकु एक वैश्य थे और ज्योतिष के साथ रसायन शास्त्र के ज्ञाता थे । 
बेतालभट्ट : बेताल पंचविशातिका नामक साहित्य में बेतालभट्ट को सम्राट विक्रमादित्य का सहयोगी बताया गया है । यह माना जाता है कि वे कोई कापालिक या तांत्रिक थे । उनके पास अपूर्व दैवीय शिक्क्तयां थी । 
घटकर्पर : ये विद्धान होने के साथ-साथ कवि भी थे । इनका लिखा एक ग्रंथ आज भी संरक्षित    है । इन्हें घट खर्पर भी कहा जाता है। खर्पर से आशय वैज्ञानिक से रहा होगा । वे अच्छे वैज्ञानिक थे । 
कालिदास : महाकवि कालिदास अन्तर्राष्ट्रीय स्तर ख्याति प्राप्त् है । इन्होंने अनेक अमर रचनाएं दी । उज्जैन में गढ़कालिका देवी के भक्त कालिदासी की रचना मेघदूत में महाकालेश्वर मन्दिर की भव्यता का उल्लेख है । उन्होनें इस नगरी का स्वर्ग का एक भाग बताया था - दिव: कान्तिम् खण्डमेकम् । 
वराहमिहिर : उज्जैन के समीप कायथा नामक ग्राम के निवासी वराहमिहिर महान वैज्ञानिक हुए । उन्होनें वृहत् संहिता नामक ग्रंथ लिखा । गणितज्ञ, जोहरी होने के साथ ही वे शस्त्र परीक्षक भी थे । भूगोल, खगोल ज्योतिष का भी ज्ञान था । 
वररूचि : सम्राट विक्रमादित्य की शासन पटि्टका तथा पाणिनी पर वार्तिकाए लिखने वाले महान साहित्यकार वररूचि सम्राट विक्रमादित्य की पुत्री के गुरू थे । 

सिंहपुरी की होली देती है पर्यावरण संरक्षण का संदेश
उज्जैन शहर में सिंहपुरी में विश्व की सबसे प्राचीन होली पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन का भी संदेश देती है । वनों को बचाने के लिए यहां लकड़ी से नहीं बल्कि गाय के गोबर से बने कंडो की पारंपरिक होलिका का दहन किया जाता है । जिसकी खासियत है कि यह पर्यावरण को नुकसान नहींपहुंचाती । 
श्री महाकालेश्वर भर्तृहरि विक्रम ध्वज चल समारोह समिति सिंहपुरी की ओर से यह होली बनाई जाती है । इस समिति का संचालन गुर्जर गौड़ ब्रह्माण समाज सिंहपुरी की ओर से किया जाता है । समिति अध्यक्ष पं. विनोद व्यास और उपाध्यक्ष पं. रविशंकर शुक्ल के अनुसार गाय के गोबर से बने कण्डो की होली बनाई जाती है । इसमें कभी भी लकड़ियां का प्रयोग नहीं होता । ताकि पेड़ों को संरक्षित किया जा  सके और वन बचे रहें । पारंपरिक तरीके अनादि काल से ही यहां कंडो की होली बनाई जाती है । इसमें   पांच हजार कंडो से होली बनाई जाती है । 
पं. यशवंत व्यास और धर्माधिकारी पं. गौरव उपाध्याय ने बताया कि सिंहपुरी की होली विश्व में सबसे प्राचीन और बड़ी है । पीढ़ी दर पीढ़ी इसकी कथाएं सिंहपुरी के रहवासियों को जानने को मिली है । राजा भर्तृहरि भी यहां होलिका दहन पर आते थे । पांच हजार कंडो से ५० फीट से भी ऊंची होलिका तैयार की जाती है । होलिका के ऊपर लाल रंग की एक ध्वजा भी भक्त प्रहलाद के स्वरूप में लगाई जाती है । यह ध्वजा जलती नहीं है । जिस दिेशा में यह ध्वजा गिरती है, उसके आधार पर ज्योतिषी मौसम, राजनीति और देश के भविष्य की गणना करते हैं । धर्माधिकारी पं. उपाध्याय ने होलिका दहन करने वाले अन्य संगठनों व समितियों के पदाधिकारियों से भी पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के लिए पेड़ों की लकड़ियों का प्रयोग नहीं करने की पहल शुरू की है । 
लकड़ियों का प्रयोग नहीं किया जाता, जिससे पेड़ व वन संरक्षित होते है । चकमक पत्थर से होलिका को चैतन्य किया जाता है, जिससे तुरन्त की दहन होती ही आग की लपटें शुरू हो जाती है और धुंआ नहीं निकलता । कंडों से निकलने वाली वायु प्राकृतिक होती है । ऊर्जा कारक होने के साथ यह पर्यावरण को हानि नहीं पहुंचाती और वातावरण में वायु विशेष से मुक्त करती है । 
सिंहस्थ में संतो को देंगे ५ हजार तुलसी के पौधे
उज्जैन में सिंहस्थ की तैयारियों के मद्देनजर छोटी से छोटी चीजों पर ध्यान दिया जा रहा है । साधु-संत भोग लगाने के लिए तुलसी का उपयोग करते है । तुलसी के पौधे उपलब्ध कराने का जिम्मा वन विभाग को सौंपा गया है । पांच हजार तुलसी के पौधे विभाग की ओर से साधु संतो को वितरित किए जाएंगे । 
वन विभाग के मुताबिक साधु-सन्तों की आवश्यकताआें को ध्यान में रख तुलसी के पौधे लगाए गए हैं । विशेष देखरेख में इन इन पौधों को तैयार किया जा रहा है । जल्द ही पौधों का वितरण कर दिया जाएगा । अन्य पौधों के वितरण के दौरान तुलसी के पौधों का मसला प्रकाश मंें आया था । साधु-सन्तों द्वारा भोग लगाने में तुलसी का उपयोग किया जाता है । मान्यता है कि इससे भोजन की शुद्धि भी होती है जिसके बाद तुलसी के पांच हजार पौधे वितरण करने का निर्णय लिया गया । अखाड़ों के साथ ही मेला क्षेत्र मेंलगे साधु-सन्तों के कैंप में तुलसी के पौधे बांटे जाएंगे । पौधों के साथ ही विभाग को सिंहस्थ के लिए जलाऊ लकड़ी भी उपलब्ध करानी है । इसके लिए विभाग की ओर से समस्त जोन में दुकानें लगाई है । साधु संत वहां से रियायती दरों पर लकड़ी खरीद सकते है । 
सिहंस्थ के कारण पहली बार शहर में इतनी बड़ी संख्या में पौधारण हुआ है । ग्रीन सिंहस्थ की थीम के चलते वृहद स्तर पर पौधे लगाए गए है । विभाग के अनुसार करीब तीस हजार से अधिक पौधे लगाए गए हैं जिसमें सभी किस्म के पौधे शामिल है । 
विभाग के वरिष्ठ अधिकारी पी.एस. दुबे के अनुसार सिहंस्थ के लिए विभाग को जो जिम्मेदारी मिली है उसे लेकर सारी तैयारियां पूरी हो चुकी है । पर्याप्त् मात्रा में जलाऊ लकड़ी का स्टॉक कर लिया गया    है । साथ ही साधु सन्तों के पूजा पाठ के लिए लगने वाले तुलसी के पौधों के लिए भी विभाग तैयार है । 

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