रविवार, 17 अप्रैल 2016

हमारा भूमण्डल
पांच अरब के बराबर पांच दर्जन
मार्टिन खोर

दुनिया के महज ६२ लोग ५० प्रतिशत वैश्विक संपत्ति के मालिक बन बैठे हैं । हम पुरातन काल में प्रचलित ``राजशाही`` को इसीलिए धिक्कारते हैं कि उस दौरान भयानक असमानता व्याप्त थी । आधुनिक ``लोकतंत्र`` तो उस कुलक प्रणाली से हजारों प्रकाश वर्ष आगे बढ़कर सारी दुनिया की आधी संपत्ति महज पांच दर्जन (६२) लोगों के  हाथ सौंप रहा है। यदि पूंजी का जमावड़ा इसी तरह सिकुड़ता रहा तो आगामी २५ वर्षों में महज पांच लोगों के पास दुनिया की आधी संपत्ति होगी । 

हाल के समय में आमदनी और संपत्ति में बढ़ती असमानता महज अकादमिक विषयों तक सीमित न रह कर वैश्विक एजेंडा बन चुकी है। दुर्भाग्यवश यह मुद्दा अभी नीतिगत विमर्श में फसा हुआ है जबकि इस दिशा में तुरंत निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है। धरातल पर देखें तो नजर आता है कि अमीर-गरीब के बीच की खाई, अमीरों द्वारा की गई अतियां और मध्य या निम्न वर्ग की स्थिर या बद्तर होती स्थिति के मद्देनजर विशेषत: पश्चिमी देशों में बहुत से विवाद एवं विरोध प्रदर्शन हुए हैं और राजनीतिक सोच में भी परिवर्तन आया है । पिछले दिनों दावोस में संपन्न हुए विश्व आर्थिक फोरम में आक्सफेम की असमानता पर जारी रिपोर्ट को फोरम के समागृहों में वैश्विक श्रेष्ठी वर्ग द्वारा व्यक्त किए जा रहे विचारों से ज्यादा मीडिया प्रमुखता मिली । आक्सफेम के अनुसार विश्व के समृद्धतम ६२  अरबपतियों के पास विश्व के निर्धनतम आधी जनसंख्या के बराबर की संपत्ति है। गौरतलब है सन् २०१० में विश्व के ३५८ समृद्धतम व्यक्तियों के पास  निर्धनतम ५० प्रतिशत जितनी संपत्ति थी । सन् २०१४ में यह संख्या घटकर ८० और सन् २०१५ में महज ६२ पर आ गई है। इतना ही सन् २०१०-१५ के दौरान निर्धनतम लोगों की संपत्ति में ४१ प्रतिशत की कमी आई है जबकि ६२ समृद्धतम व्यक्तियों की संपत्ति ५०० अरब डॉलर से बढ़कर १.७६ खरब डॉलर (तकरीबन तीन गुना) हो गई है ।
अनेक देशों में बढ़ते सामाजिक असंतोष के चलते राजनीतिज्ञों, धार्मिक नेताओं, अर्थशास्त्रियों एवं पत्रकारों का ध्यान इस स्तंभित कर देनेवाली असमानता की ओर गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने असमानता को ``हमारे समय को परिभाषित करने वाली चुनौती`` की संज्ञा दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया में डेमोक्रेटिक पार्टी के एक प्रमुख प्रत्याशी बेरनी सांड्रेस ने उजागर किया है कि अमेरिका के सर्वोच्च् ०.१ प्रतिशत लोगों के पास वहां के निम्नतम पायदान पर रह रहे ९० प्रतिशत व्यक्तियों जितनी संपदा है और उन्होंने कहा है कि वे ``कारपोरेट अमेरिका और वालस्ट्रीट के लालच से टकराएंगे तथा मध्यवर्ग के संरक्षण हेतु संघर्ष करेंगे । ``पोप फ्रांसिस का कहना है`` असमानता सामाजिक बुराई की जड़ है ``और उन्होंने उन्मुक्त बाजार और छन कर (ट्रिकल डाउन) नीचे आने वाले सिद्धांतों`` की निंदा की है। जोसेफ स्टिग्लिट्ज और थामस पिकैटी जैसे उल्लेखनीय अर्थशास्त्रियों ने हाल ही में असमानता पर प्रकाश डाला है और दोनों ने इस विषय पर प्रसिद्ध पुस्तकें लिखी हैं ।
एक अन्य अर्थशास्त्री रॉबर्ट शिलर ने सन् २०१३ का नोबल पुरस्कार लेने के बाद चेतावनी दी थी कि, ``आज की सबसे बड़ी समस्या अमेरिका और विश्व में बढ़ती असमानता है।`` इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि असमानता न सिर्फ अन्यायपूर्ण है बल्कि यह लोकतंत्र एवं सामाजिक स्थायित्व को एक गंभीर खतरा है। वाशिंगटन स्थित विचार समूह दि सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस ने बताया है कि सन १९८३ से २०१० के दरम्यान अमेरिका के सर्वोच्च् २० प्रतिशत परिवारों की औसत संपदा में १२० प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि २० प्रतिशत मध्यवर्ग की आय में १३ प्रतिशत की वृद्धि तथा निचले पायदान पर रह रहे २० प्रतिशत परिवारों की संपत्ति के बजाय ऋण में वृद्धि हुई और शुद्ध संपदा में कमी आई । 
एक सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ कि निम्नतम ५ प्रतिशत भवन स्वामी सन् २००७ एवं २०१० के मध्य अपनी ९४ प्रतिशत संपदा गंवा बैठे । प्रमुख पत्रकार मार्टिन वोल्फ ने हाल ही में फाइनेंशियल टाइम्स में ``आर्थिक नुकसान उठाने वालों का श्रेष्ठी वर्ग के प्रति विद्रोह`` शीर्षक से एक लेख में बताया कि जिन लोगों को वैश्वीकरण से लाभ नहीं पहुंचा वह स्वयं को बहिष्कृत पाते हैं और श्रेष्ठी वर्ग से नाराज हैं। इसी के परिणामस्वरूप फ्रांस और अमेरिका में दक्षिणपंथी राजनीति को लोकप्रियता मिल रही है जो कि शरणार्थी विरोधी लहर पर सवार है । वोल्फ ने चेतावनी दी है कि मनोमालिन्य की इस प्रवृति को रोकने में हम पहले ही देरी कर चुके हैं । दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञों के उदय को लेकर चिंतातुर वोल्फ अपनी जगह ठीक हैं लेकिन इसके विपरीत धारा भी प्रचलन में है । ग्रीस, स्पेन और तमाम अन्य स्थानों पर सरकारों द्वारा लिए गए मितव्ययता संबंधी निर्णयों से जनता का मोहभंग हुआ है।  फलस्वरूप विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और वामपंथी मितव्ययत विरोधी आंदोलनों एवं राजनीकि दलों का उदय हो रहा है।
अमेरिका में इस बात को लेकर नाराजगी है कि किस तरह रुढ़िवादी राजनीतिक श्रेष्ठीवर्ग ने हाल के दशकों में अमीरों और कारपोरेट के करों को कम करने हेतु उपाय किए एवं निम्न आयवर्ग को लाभ पहुंचाने वाले कल्याणकारी कार्यक्रमों में कमी की । अधिकांश पश्चिमी विश्व इस वक्त द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उठाए गए कदमों को लेकर एकमत था । इसके अनुसार बाजार को रोजगार एवं संपदा उत्सर्जित करना चाहिए । साथ ही सरकार की इस मायने में महत्वपूर्ण भूमिका है कि संपन्नों पर कर लगाए और इस आमदनी का पुनर्वितरण यह सुनिश्चित करने हेतु किया कि गरीबों का ध्यान बेरोजगारी एवं सामाजिक लाभों के माध्यम से रखा जाएगा । सरकार भी निम्न वृद्धि दर एवं मंदी के दौरान इस दुष्चक्र  से निकलने हेतु हस्तक्षेप करे एवं अपने खर्चों में वृद्धि कर मांग एवं रोजगार में बढ़ोत्तरी लाए । रीगन-थैचर क्रांति ने इस सहमति को छिन्न-भिन्न कर दिया । उनकी इस नई ``परम्परा निष्ठा`` के हिसाब से अमीरों और कारपोरेटस पर कर कम किए जाएं जिससे कि निवेश पैदा कर सकें । कल्याणकारी लाभों में या तो कमी लाई जाए या इन्हें रद्द कर दिया जाए जिससे कि गरीब इनका दुरुपयोग न कर पाएं सरकार का वित्तीय भार कम हो । और सरकार अर्थव्यवस्था में भागीदारी न करंे और बाजार को कार्य करने के लिए छुट्टा व अकेला छोड़ दे । इस नई पंरपरानिष्ठा को व्यापक तौर पर प्रभावशील बनाया गया और इसमें वे विकासशील देश भी शामिल हैं जो कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक की ढंाचागत समायोजन नीतियों का अनुपालन करने की वजह से ऋण संकट में उलझ गए थे ।
बहरहाल सन् २००७-११ के वैश्विक वित्तीय संकट एवं आगामी आर्थिक मंदी की आशंका के चलते सरकारी हस्तक्षेप वाली कीन्स की नीतियां पुन: लोकप्रिय हो गई । अनेक अर्थशास्त्रियों एवं संस्थानों का विश्वास है कि आर्थिक विकास में कमी या मंदी का कारण व्यापक मांग में कमी आना है। इसका एक कारण बढ़ती असमानता है । मांग में वृद्धि के लिए आवश्यक है कि समानता को प्रोत्सहित किया जाए । जब आमदनी का प्रवाह गरीबों की ओर होगा तो मांग में वृद्धि होेगी क्योंकि गरीब बजाए अमीर के अपनी आय का ज्यादा हिस्सा खर्च करता   है । 
सन् २०१२ में ओबामा की आर्थिक सलाहकार परिषद की पीठ  के सदस्य एलन क्रुईगर ने रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा था असमानता का एक विकृत प्रभाव यह है कि इसकी वजह से आमदनी अमीरों की ओर हस्तांतरित हो जाती है, जो कि प्रत्येकअतिरिक्त डॉलर में से कम खर्च करते हैं। जिसकी वजह से उपभोेग पर प्रभाव पड़ता है । अतएव असमानता में कमी और समानता में इजाफा एक महत्वपूर्ण न्यायसंगत आर्थिक तर्क  है । वैश्विक आर्थिक मंदी की धारा को पलटने हेतु यह एक महत्वपूर्ण आयाम भी है ।   

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