रविवार, 17 अप्रैल 2016

ज्ञान-विज्ञान
मधुमक्खियों के पेचीदा चेतावनी संदेश
यह तो पहले से पता रहा है कि मधुमक्खियां अन्य मधुमक्खियांें को भोजन पाने के स्थान का अता-पता बताने के लिए विशिष्ट किस्म के नृत्य की भाषा का उपयोग करती    है । नृत्य का संयोजन इस प्रकार किया जाता है कि उसके जरिए भोजन प्राप्त् स्थल की दिशा और दूरी की जानकारी मिलती  है । और तो और नृत्य की गति से उपलब्ध भोजन की मात्रा का भी अंदाज मिलता है । मगर अब शोधकर्ताआें ने एक नए ढंग के संदेश का खुलासा किया है । 

मधुमक्खियांे की एक प्रजाति एपिस सेराना में देखा गया था कि जब कोई मधुमक्खी किसी ऐसे फूलका रस चूसकर लौटती है जिस पर मकड़ी बैठी हो तो छत्ते पर आकर वह अन्य मधुमक्खियांे को संकेतों में इस बता की सूचना देती है । इसके बाद अन्य मक्खियां उधर के फूलों पर नहीं जाती । शोधकर्ता इस संदेश की बारीकियों का समझना चाहते थे - जैस क्या इसमें यह भी बताया जाताह ै कि खतरा कितना बड़ा है । 
इसके लिए एशियाई मधुमक्खी (एपिस मेलिफेरा) का अध्ययन किया गया । एशियाई मधुमक्खी को इसलिए चुना गया क्योंकि एशियाई जलवायु में मधुमक्खियांे को तरह-तरह के खतरों का सामना करना पड़ता है । इनमें बड़ी-बड़ी ततैया भी शामिल है । 
प्लॉस बायोलॉजी में ऑनलाईन प्रकाशित यह प्रयोग वैज्ञानिकों ने चीन में किया है । प्रयोग में व्यवस्था यह की गई थी कि भोजन की तलाश में जाती मधुमक्खियांे का पीछा कोई छोटी या बड़ी ततैया करती थी । जब मधुमक्खियां छत्ते पर लौटती थी तो वे रूको का संकेत प्रदर्शित करती थी और इसकी आवृत्ति ततैया के आकार के अनुसार घटती-बढ़ती थी । 
इसी प्रकार से जब वही ततैया छत्ते के मुहाने पर मिल जाती तो वे रक्षक मधुमक्खियों और भोजन की तलाश से लौटती मधुमक्खियां कॉफी अलग तरह का संकेत पैदा करती थी । इससे पता चल जाता था कि खतरा ऐन दहलीज पर है । और यदि हमलावर ततैया बड़ी हुई तो संदेश में तीव्रता होती है । इसके जवाब में भोजन तलाश करने वाली मक्खियां तो पूरी तरह थम गई मगर छत्ते के रक्षकों ने ततैया के आसपास इकट्ठी होकर एक गेंद से बना ली और कोशिश की कि अपनी सामूहिक गर्मी से उसे मार डाले । 

मानव निर्मित सूक्ष्मजीव जीवित है 

संश्लेषण जीव विज्ञान के प्रणेता क्रेग वेंटर की टीम ने प्रयोगशाला में एक सूक्ष्मजीव का निर्माण किया है जो काम कर रहा   है । इस सूक्ष्मजीव की एक विशेषता है कि वर्तमान में जीवित किसी भी जीव के मुकाबले इसमेंसबसे कम जीन्स हैं । 
दरअसल, के्रग वेंटर कॉफी वर्षो से यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि किसी जीव को जीवित रहने के लिए कम से कम कितने जीन्स की जरूरत होगी । उनका और अन्य संश्लेषण जीव वैज्ञानिकों का मत है कि एक बार हम न्यूनतम जीन्स वाला जीव बना लें, तो फिर उसमें एक-एक जीन जोड़कर उस जीन की भूमिका का अध्ययन बहुत आसानी से किया जा सकेगा । 
फिलहाल हम जितना जानते हैं उसके मुताबिक सबसे कम डीएनए वाला जीव (जिसें वेंटर लाइटवेट चेपियन कहते हैं ) मायकोप्लाज्मा जेनिटेलियम नामक एक बैक्टीरिया है । इसके डीएनए में कुल ६ लाख क्षार हैं । प्रसंगवश यह भी जानना रोचक है कि सबसे बड़ी डीएनए वाला जीव एक जापानी फूलधारी पौधा है - पैरिस जेपोनिका । इसमें मनुष्य के मुकाबले ५० गुना अधिक डीएनए   है । 
क्रेग वेंटर की टीम ने जो नया संश्लेषित जीव बनाया है उसे नाम दिया गया है डूि ३.० । इसका मतलब है कि यह संश्लेषित जीव का संस्कारण ३ है । इसे बनाने के लिए जो तरीका अपनाया गया, उसकी शुरूआत २०१० में हुई थी । वेंटर की टीम ने तब रिपोर्ट किया था कि उन्होनें एक बैक्टीरिया मायकोप्लाज्मा मायकोइड्स में पाए जाने वाले एकमात्र गुणसूत्र को प्रयोगशाला में बनाकर उसे एक अन्य डीएनए-रहित बैक्टीरिया (मायकोप्लाज्मा केप्रिकोलम) की कोशिका में डालकर एक जीवित बैक्टीरिया प्राप्त् किया था जो मायकोप्लाज्मा मायकोइडस के समान था । यह डूि १.० था मगर इसमें काफी सारा डीएन था जो फालूत था । 
इसके बाद उन्होनें डूि १.० में से एक-एक करके गैर जरूरी जीन्स हटाना शुरू किया । इसके लिए उन्होनें १.० के जीनोम को खंडों में बांट लिया और खंडों को एक-एक करके बदलकर देखा । जब एक कामकाजी न्यूनतम डीएनए मिल गया तो इसे उन्होनें पुन: व्यवस्थित किया और फिर मायकोप्लाज्मा केप्रिकोलम की कोशिका में पहुंचा दिया । इस तरह डूि ३.० मिला उसके डीएनए में जीन्स की संख्या सबसे छोटे जीव (मायकोप्लाज्मा जेनिटेलियम) से कम है । डूि ३.० के डीएनए मेंक्षारों की संख्या ५,३१,००० है । इसके चलते फिलहाल यह सबसे लाइटवेट जीव   है । 
जब कोशिकाएं सफर पर निकलती हैं 
हमारे शरीर में कई कोशिकाएं, खास तौर से प्रतिरक्षा कोशिकाएं अपनी जगह स्थिर नहीं रहती बल्कि घूमती-फिरती रहती हैं ।  अपने इस सफर के दौरान उन्हें कई संकरी दरारों में से गुजरना पड़ता है, कई बार अन्य कोशिकाआें के बीच की जगह में से निकलना पड़ता है । ये दरारें प्राय: स्वयं कोशिका की साईज से भी संकरी होती है । तब कोशिकाआें को अपनी आकृति को तोड़-मरोड़कर जगह बनानी पड़ती   है । मगर इस प्रक्रिया का एक खतरनाक पक्ष भी होता है । 
जन्तु कोशिकाएं तो काफी लचीली होती है । वे अपना आकार बदलकर निकल जाती है । मगर कोशिकाआें के अंदर पाए जाने वाले केन्द्रक की झिल्ली थोड़ी सख्त होती है । लिहाजा इस धक्का-मुक्की में कई बार केन्द्रक की झिल्ली फट सकती है । हाल ही में यह पहली बार देखा गया है कि केन्द्रक की झिल्ली वाकई फट जाती है । 
दरअसल, केन्द्रक को शेष कोशिका द्रव्य से अलग रखने का काम यह केन्द्रक झिल्ली करता है । यदि केन्द्रक झिल्ली क्षतिग्रस्त हो जाए तो कोशिका द्रव्य में मौजूद एंजाइम केन्द्रक में उपस्थित डीएनए (यानी आनुवंशिक पदार्थ) तक पहुंच     जाएंगे । इनमे से कई एंजाइम का तो काम ही डीएनए को नष्ट करना है । इसलिए वैज्ञानिकों का मत था कि केन्द्रक झिल्ली को बचाने का कोई उपाय तो कोशिकाआें में होगा । मगर अब पेरिस के क्यूरी इंस्टीट्यूट के मैथ्यु पिएल और कॉर्नेल विश्वविघालय के यान लैमरडिंग ने अपने अनुसंधान में यह देखा है कि जब कोशिकाएं संकरे दरों में से गुजरती है तो उनकी केन्द्रक झिल्लियां वास्तव में क्षतिग्रस्त होती  है । 
दोनों ही दलों ने कुछ सामान्य व कुछ कैंसर कोशिकाएं ली और उन्हें इस तरह तैयार किया कि उनके केन्द्रक में कुछ चमकने वाले रंजक बनने लगे । अब इन कोशिकाआें को भ्रमण करने दिया गया । देखा गया कि भ्रमण करते हुए केन्द्रक में उपस्थित रंजक लीक होकर कोशिका द्रव्य में पहुंच गया  था । यानी केन्द्रक झिल्ली क्षतिग्रस्त हुई थी और रिसाव हुआ था । 
दोनों दलों ने यह भी देखा कि इन काशिकाआें के डीएनए में भी क्षति हुई थी । यह क्षति ऐसी थी कि जो कोशिका को मार सकती है या उसे कैंसर-कोशिका बना सकती है । यह भी पता चला कि इन कोशिकाआें में मरम्मत का काम भी काफी तेजी से किया गया । केन्द्रक की मरम्मत का काम क्षति के २ मिनट बाद शुरू हो गया और १०-३० मिनट में मरम्मत पूरी हो चुकी थी । दोनों दलों ने मरम्मत का काम करने वाले अणु की पहचान भी कर ली है । यह स्पष्ट है कि यदि मरम्मत का काम न हो, तो कोशिका मर जाएगी । 

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