सोमवार, 11 फ़रवरी 2008

१ पुण्य स्मरण

सर एडमंड हिलेरी : प्रकृति पुत्र का अवसान
डॉ. खुशालसिंह पुरोहित
विश्व की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर पहली बार कदम रखने वाले न्यूजीलैंड के सर एडमंड हिलेरी का ऑकलैंड अस्पताल में १० जनवरी को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया । वे ८८ वर्ष के थे । आपका जन्म २० जुलाई १९१९ को हुआ था । श्री हिलेरी ने १९५३ में एवरेस्ट पर विजय पाकर एक नया इतिहास रचा था । वे पिछले कुछ समय से बीमार थे । न्यूजीलैंड के सर्वाधिक लोकप्रिय सर हिलेरी का छायाचित्र सम्मान स्वरूप न्यूजीलैंड के ५ डॉलर के नोट पर अंकित किया जाता है। अपने जीवन को नेपाली शेरपाआे को समर्पित करने वाले सर हिलेरी ने नेपाल में ६३ विद्यालयों के अतिरिक्त अनेक अस्पतालों, पुलों व हवाई पट्टी का भी निर्माण किया । उनके हिमालय ट्रस्ट ने नेपाल के लिए प्रति वर्ष ढाई लाख अमेरिकन डॉलर जुटाए और हिलेरी ने निजी तौर पर नेपाल अभियान में मदद दी । सर एडमंड हिलेरी और नेपाल के पर्वतारोही शेरपा तेनिजंग नोर्गे ने २९ मई १९५३ में माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त् की थी । सर हिलेरी कई सफलताआे, उल्लेखनीय साहसिक कारनामों, खोज और रोमांच के अलावा अपने विनम्र भाव के लिए जाने जाते थे। उन्होंने कभी अहंकार को अपने पास नहीं फटकने दिया । दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर ध्वज फहराकर ब्रिटिश क्लाइम्बिंग एक्सपीडीशन के तहत जब उन्होंने सफलता हासिल की तब वे केवल ३३ साल के थे । उनकी सफलता पर ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने उन्हें नाइट की उपाधि दी । लेकिन एडमंड एवरेस्ट में उनके साथ पहुंचे नोर्गे शेरपा के देश नेपाल में स्कूल और चिकित्सा क्लीनिक खोलने में अधिक गौरव महसूस करते रहे । सर एडमंड हिलेरी ने हिमालय की तलहटी में रहने वाले नेपाल के शेरपाआे के कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन लगाया था । श्री हिलेरी जब १९३५ में स्कूल के एक पर्वतारोहण दल में शामिल हुए तब कोई नहीं कह सकता था कि कमजोर-सा दिखने वाला एक छात्र जबरदस्त इच्छाशक्ति का धनी है और मधुमक्खी पालन से जीविकापार्जन में लगे उस बालक के इरादे कुछ कर दिखाने के हैं । बीसवीं सदी के महान पर्वतारोहियों में एक हिलेरी ने न्यूजीलैंड की चोटियां चढ़ने के बाद आल्पस को लक्ष्य बनाया और फिर हिमालय पर्वत श्रृंखला की ११ विभिन्न चोटियां फतह करने के बाद उनका आत्मविश्वास और दृढ़ हो चुका था । एवरेस्ट रिकनेसेन्स एक्सपीडीशन के सदस्य के रूप में हिलेरी की प्रतिभा पर नजर १९५१ में एवरेस्ट फतह करने जा रहे अभियान दल के नेता सर जान हंट की पड़ी । मई में जब अभियान साउथ पीक पहुंचा तब केवल दो को छोड़कर शेष सदस्य थकान के कारण वापस लौटने को मजबूर हो गए । ये दो थे हिलेरी और नेपाली पवर्तरोही तेंजिंग नोर्गे । उन्होंने आखिरकार २९ मई १९५३ को समुद्र की सतह से २९,०२८ फुट ऊंची चोटी पर अपने पांव रख कर पर्वतारोहण क्षेत्र के कालपुरूष बन गए । इन उपलब्धि पूर्ण क्षणों में दोनों ने चोटी पर मात्र १५ मिनट बिताए । हिलेरी ने तेंजिग की फोटो ली । उन्होंने चोटी पर अपना क्रास उतारकर चढ़ाया । बाद में उन्होंने कहा था, हम नहीं जानते थे कि चोटी पर मानव का पहुंचना संभव है । शुरू में दोनों ने कहा था कि उन्होंने एक साथ चोटी चढ़ी लेकिन १९८६ में शेरपा की मौत के बाद सर एडमंड ने खुलासा किया कि वह अंतिम रिज में करीब १० फुट आगे थे । एवरेस्ट फतह की खबर ब्रिटेन में महारानी के अभिषेक के दिन पहुंची थी । श्री हिलेरी न्यूजीलैंड के थे और इस तरह वे राष्ट्रमंडल के नागरिक हुए, लिहाजा ब्रिटेन में भी उनकी उपलब्धि पर जश्न मनाया गया और उनकी सफलता के लिए नाइट की उपाधि दी गई । अगले दो दशकों के दौरान हिलेरी ने हिमालय में दस अन्य चोटियां फतह की । वे कामनवैल्थ ट्रांस : अंटार्कटिक एक्सपीडिशन के तहत दक्षिणी ध्रुव भी पहुंचे । उन्होंने १९७७ में गंगा नदी एक अभियान (जेटबोट एक्सपीडिशन) का भी नेतृत्व किया । सर हिलेरी ने अपने जीवन का अधिकांश भाग उन शेरपाआें के कल्याण में लगाया जो उनके विभिन्न अभियानों के दौरान उनसे मिले । भारत में दो साल तक न्यूजीलैंड के उच्चयुक्त रहने के दौरान उन्होंने १९६४ में हिमालय ट्रस्ट की स्थापना की थी । यह संस्था क्लीनिक, अस्पताल और स्कूल बनाने में मदद करती है । सर हिलेरी नेपालियोें की सेवा करने में गर्व महसूस करते थे । उन्होंने कहा था, मेरा सबसे बेहतर काम रहा स्कूलोंऔर क्लीनिकों का निर्माण । किसी चोटी की सतह से अधिक आनंद की अनुभूति मुझे इस कार्य से मिलती है । उन्हें उनकेदेश न्यूजीलैंड में काफी सम्मान दिया। न्यूजीलैंड और विदेशो में कई स्कूलों और संगठनों के नाम उन पर रखे गए । भारत में सेंट पाल्स स्कूल दार्जिलिंग में एक प्राथमिक खंड का नाम उनके नाम पर है । सर एडमंड शर्मीले स्वभाव के थे । इतने कि सितंबर १९५३ में अपनी होने वाली पत्नी लुसी मेरी रोस के समक्ष विवाह का प्रस्ताव उन्होंने अपनी सास के जरिए रखा था । वे अपने सेलीब्रिटी स्तर को लेकर भी काफी शर्मीले थे । अपनी सफलता की ५०वीं वर्षगांठ पर उन्होंने महारानी का निमंत्रण ठुकरा दिया और नेपाल में अपने शेरपा मित्रों के साथ इस अवसर को याद किया । सन् १९७५ वे नेपाल के फाफलू गाँव में अस्पताल का निर्माण करा रहे थे। तभी वहाँ आते हुए उनकी पत्नी और एक बच्च्े की विमान हादसे में मौत हो गई । परंतु हिलेरी का काम नहीं रुका । २१ दिसंबर १९८९ में उन्होने जून मलग्रु से विवाह किया, जो उनके स्वर्गवासी मित्र पीटर की पत्नी है । इस सेवाभावी व्यक्ति के ६ पोते-पोतियाँ हैं । इनमें से एमिलिया हिलेरी तो उनके ट्रस्ट का ही काम देख रही हैं । एवरेस्ट की पहली फतह की पंचासवीं बरसी पर उनके बेटे पीयर और तेजिंग नोर्गे के पुत्र जेमलिंग तेनजिंग नोर्गे ने भी अप्रैल २००३ में एवरेस्ट फतह किया। इस प्रकार प्रकृति पुत्रों ने अपनी परंपरा अपनी संतानों को विरासत में दी। वे अमेरिका हिमालयन फाउंडेशन के अध्यक्ष थे । यह अमेरिका की अलाभकारी संस्था है, जो हिमालय में लोगों के जीवनयापन तथा पारिस्थितकीय तंत्र को सुधारने में मदद करती है । सर हिलेरी की मृत्यु पर दुनियाभर में शोक मनाया गया और उन्हें शताब्दी के महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में आदर दिया गया । ***

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