सोमवार, 13 अगस्त 2012

पर्यावरण परिक्रमा
टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में पर्यटन नहीं

    बाघों के संरक्षण की दिशा में कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि देश के सभी ४० टाइगर रिजर्वोके कोर क्षेत्रोंमें किसी किस्म की पर्यटन गतिविधियाँ संचालित नहीं की जाएँगी । साथ ही कोर्ट ने टाइगर रिजर्वोंा के आसपास बफर झोन संबंधी अधिसूचना जारी न करने वाले राज्यों पर जुर्माना भी लगाया है ।
    न्यायाधीश न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार तथा न्यायमूर्ति कलीफुल्ला की पीठ ने आदेश देते हुए कहा कि टाइगर रिजर्वोके कोर क्षेत्रों तथा बफर झोनों में किसी भी प्रकार से पर्यटन गतिविधियों न चलाई जाएँ । आदेश के बावजूद कई राज्यों की सरकारों ने अभी तक बफर झोन संबंधी अधिसूचना जारी नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि तीन सप्तह के अंदर यह अधिसूचना जारी न करने पर ५०-५० हजार रूपये का हर्जाना लगाया जाएगा ।
    बफर झोन की अधिसूचना जारी नहीं करने वाले राज्यों के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही  भी की जाएगी । कोर्ट ने आंध्र प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, महाराष्ट्र तथा झारखंड सरकारों पर अदालती आदेश का पालन न करने पर १०-१० हजार रूपये का हर्जाना भी लगाया है । याचिका वन्य प्राणी संरक्षणवादी अजय दुबे ने दायर की थी ।
    सुप्रीम कोर्ट ने टाइगर रिजर्व मामले में एमपी हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को पलट दिया है । दरसअल, हाईकोर्ट के जस्टिस अजित सिंह व संजय यादव की युगलपीठ ने ८ फरवरी २०११ को प्रदेश के सभी छ: टाइगर रिजर्व मेंपर्यटकों को प्रवेश प्रतिबंधित किए जाने की मांग वाली अंतरिम अर्जी नांमजूर कर दी थी । यह कदम तत्कालीन अतिरिक्त महाधिवक्ता नमन नागरथ की उस दलील पर गौर करने के बाद उठाया गया था, जिसके तहत कहा गया था कि मध्यप्रदेश के कान्हा, पेंच, पन्ना, बांधवगढ़, सतपुड़ा और संजय गांधी टाइगर रिजर्व में टूरिज्म सरकार के लिए राजस्व प्रािप्त् का एक अहम स्त्रोत है ।
    केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री जंयती नटराजन ने टाइगर रिजर्वोके कोर व बफर क्षेत्रोंमें पर्यटन गतिविधियाँ रोकने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है । आपने कहा कि इस आदेश का सख्ती से पालन करवाने के लिए वे खुद सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियोंको पत्र लिखेगी ।
    बाघों के शिकार के चलते इनकी प्रजाति खतरे मेंहै । देश में कुल १७०० बाघ ही बचे हैं । इनके चमड़े और कुछ अंगोंसे दवाएँ बनाने के लिए इस वन्य प्राणी का अवैध शिकार होता है ।
   

पर्यावरण के प्रति भारतीय सबसे ज्यादा संवेदनशील

    प्रकृति को मित्र समझने की हमारी सनातन परम्परा आज भी कायम है । इसी की सुखद परिणति है कि पर्यावरण के प्रति दुनिया में किसी अन्य मुल्क की तुलना में भारतीय सबसे ज्यादा संवेदनशील है ।
    देश में बढ़ते उपभोक्तावाद के रूख के बावजूद पर्यावरण को नुकसान होने पर हम खुद को सबसे ज्यादा कसूरवार मानते हैं । अन्य देशों की तुलना में भारतीयों की जीवनशैली भी सबसे टिकाऊ है । इसका सीधा मतलब है कि भारतीयों के बीच प्राकृतिक संसाधनों का दोहन सबसे कम है । इसके उलट पर्यावरण संरक्षण को लेकर हो-हल्ला मचाने वाले विकसित देश इन सभी पैमानों पर फिसड्डी साबित हुए हैं । उनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का फर्क देखा गया है ।
    नेशनल जियोग्राफिक सोसायटी के दुनिया में १७ देशों के उपभोक्ता व्यवहार को आँकने के लिए कराए गए सर्वे में भारत सबसे ऊपर हैं । सूची में अमेरिका अंतिम पायदान पर है । भारत, चीन और ब्राजील जैसे विकासशील मूल्क टिकाऊ विकल्पों को सबसे अधिक प्राथमिकता देते हैं । इसके विपरीत अमीर पश्चिमी देशों में सतत जीवनशैली की प्राथमिकता निम्नतम स्तर पर है ।
    सर्वेक्षण के अनुसार, भारत और अन्य विकासशील देश पर्यावरण पर उनकी वजह से पड़ने वाले असर
को लेकर सबसे अधिक अपराधबोध  से ग्रस्त रहते हैं । ऐसा ४५ प्रतिशत भारतीय जबकि ४२ प्रतिशत चीनी उपभोक्ता मानते हैं । भारत में पेड़, पौधों, नदियों समेत अन्य प्राकृतिक संपदाआें की पूजा सदियों से की जाती रही है । जानकार मानते हैं कि यही अपराधबोध का स्तर ऊँचा रहने की वजह हो सकती है । फिलहाल इन दोनों ही एशियाई महाशक्तियों के लोगों को इस बात पर सबसे कम यकीन है कि व्यक्तिगत प्रयासों से पर्यावरण को मदद मिल सकती है । नेशनल जियोग्राफिक सोसायटी में मिशन कार्यक्रमों की वाइस प्रेसीडेंट टेरी ग्रेसिया कहती हैं कि भारत, चीन के अलावा मेक्सिको, ब्राजील और अर्जेटीना में वायु और जल प्रदूषण पर सबसे ज्यादा चिंता की जाती है ।

राजाजी पार्क मेंहै इंसान और वन्य जीवों के प्रेम का स्मारक

    साल, सागौन व शीशम के घने दरख्तों की छाँव में पत्थरों के चबूतरे पर अडिग एक शिला । शिल्प के स्तर पर यह शिला ताजमहल जैसी बेजोड़ न सही, लेकिन प्रेम का यह स्मारक है । इस इमारत से कम हसीन नहीं । एक अंग्रेज अफसर और उसकी पालतू हथिनी के बीच बना वह अटूट रिश्ता आज भी राजाजी पार्क के कोर जोन (जंगल के बीच का भाग) में महसूस किया जा सकता है । स्नेह का बंधन विशाल पत्थर पर इन शब्दों में उकेरागया ब्रेव एज ए लॉयन, स्टडी एज दिस रॉक (शेर की तरह बहादुर
और इस चट्टान की तरह अडिग) ।
    हाथियों की पंसदीदा पनाहगाह में से एक है राजाजी नेशनल पार्क की कांसरो रेंज । इसी रेंज में मुख्य मार्ग से करीब दस किलोमीटर भीतर है एक चबूतरा, जिस पर खड़ा है विशाल पत्थर । यह है मेजर स्टेनले स्किनर की पालतू हथिनी रामप्यारी की कब्र । ९० साल पहले वर्ष १९२२ में स्टेनले ने रामप्यारी को यहीं दफनाया था । दरअसल, वर्ष १९०८ मंे मेजर स्टेनले स्किनर शिवालिक वन प्रभाग में प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) बनकर आए । उस वक्त कांसरो रेंज देहरादून पूर्वी वन प्रभाग के अन्तर्गत आती थी । मेजर को वन्य जीवों से बेहद प्यार था । वे गाँव-गाँव जाकर लोगों में वन्य जीवों के खौफ को दूर करते थे और इस यात्रा में उनकी हमसफर थी उनकी प्यारी रामप्यारी । वह इसी हथिनी की पीठ पर बैठकर जंगल में गश्त पर जाते थे ।
    राजाजी पार्क के निदेशक एसपी सुबद्धि इतिहास में झांकते हुए कहते है कि जंगल में गश्त के दौरन कई बार रामप्यारी ने स्टेनले की जान बचाई थी । वे बताते है कि रामप्यारी का स्टेनले को मिलना भी एक संयोग ही था । स्टेनले अपना अधिकतर समय जंगल में ही बिताते थे । ऐसे ही किसी दिन उन्हें जंगल में हाथी का एक जख्मी बच्च दिखाई दिया । वन्य जीवों के दीवाने स्टेनले उसे अपने बंगले पर ले आए और उसका इलाज  शुरू कर दिया । इस शिशु से कब बेपनाह मुहब्बत हो गई, उन्हें इसका पता ही नहीं चला । उन्होनें उसे नाम दिया रामप्यारी ।
    वर्ष १९२२ में बीमारी के बाद रामप्यारी की मौत हो गई । रामप्यारी की मौत से स्टेनले टूट गए । उन्होनें उसे रेंज के पास ही दफना दिया । बाद में कब्र के लिए स्टेनले ने इलाहाबाद से विशेष पत्थर मॅगवाए, जो आज भी इंसान और जानवर के अलबेले रिश्ते की गवाही दे रहे हैं । बताते है कि इसके बाद इलाके मेंस्टेनले को कभी नहीं देखा गया ।

पानी को संविधान की समवर्ती सूची में रखें

    पिछले दिनों एक संसदीय समिति ने पानी को संविधान की समवर्ती (केन्द्र व राज्य दोनों का अधिकार) सूची में लाने का सुझाव दिया है । अभी यह राज्य सूची में शामिल है और इस कारण राज्यों के बीच नदी जल बँटवारे को लेकर विवाद चलते रहते हैं ।
    जहाँ जलपूर्ति, सिंचाई, नहरें, ड्रेनेज और बाँध राज्य सूची में आते हैं, वहीं अंतर राज्य नदी विकास जैसे मुद्दे केन्द्र की सूची में शामिल है । सूत्रों के अनुसार जल संसाधन पर सलाहकार समिति के सदस्यों में इस बात पर लगभग आम सहमति है कि पानी को समवर्ती सूची में लाया जाए ताकि केन्द्र नदी जल विवादों को सुलझाने में प्रभावी भूमिका निभा  सके । जल संसाधन मंत्री पवनकुमार बंसल की अध्यक्षता मेंबैठक में सदस्यों ने राज्यों के हितों के संरक्षण के कुछ उपायों पर भी जोर दिया ।

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