सोमवार, 5 नवंबर 2012

पर्यावरण समाचार
यूका कचरे के निपटान का नहीं निकला रास्ता

    भोपाल गैस त्रासदी के २८ साल बीतने के बाद भी यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निपटान का कोई रास्ता निकलता नजर नहीं आ रहा है । मध्यप्रदेश सरकार व केन्द्र सरकार कोई हल निकालने के बजाए एक दूसरे पर मामला टालने मेंलगे हुए हैं । मध्यप्रदेश सरकार की चिंता अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव हैं और तब तक कचरे का निपटान नहीं हो पाया तो यह चुनावी मुद्दा भी बन सकता है । यही वजह है कि मध्यप्रदेश के गैस त्रासदी राहत व पुनर्वास मंत्री बाबूलाल गौर ने कोई हल निकलता न देख मामला टालने के लिए केन्द्र से उप समिति गठित करने की मांग की है ।
    भोपाल गैस त्रासदी पर गठित मंत्री समूह की केन्द्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता में बैठक में भोपाल स्थित संंयंत्र में सालों से पड़े जहरीले कचरे के निपटान का कोई रास्ता नहीं निकल पाया है । जर्मन कंपनी के हाथ खड़े कर देने के बाद अब केन्द्र व राज्य सरकार को कचरे के निपटान के लिए कोई उपयुक्त जगह नजर नहीं आ रही    है । बैठक में हिस्सा लेते हुए बाबूलाल गौर ने केन्द्र सरकार से मांग की कि वह एक उप समिति गठित कर दें जो देश भर के भस्मीकरण केन्द्रोंके अपशिष्ट निपटारे लिए सबसे उपयुक्त केन्द्र को चुने । अभी गुडगांव की एसजीएएस प्रयोगशाला में कचरे के सैम्पल की जांच की जाएगी । दरअसल इस जहरीले कचरे के निपटने के लिए देश का कोई भी अपशिष्ट निपटान केन्द्र तैयार नहीं  है ।
    केन्द्र सरकार का कहना है कि जर्मन कंपनी के हट जाने के बाद मध्यप्रदेश सरकार अपने यहां पीथमपुर मेंही इस कचरे का निपटान करे । दूसरी तरफ मध्यप्रदेश सरकार का कहना है कि पीथमपुर प्रयोगशाला कचरे के निपटने के लिए तय मापदण्ड पर खरी नहींउतर रही है । जहरीले कचरे के निपटारे पर निर्णय लेते समय प्रदेश सरकार व मध्यप्रदेश के लोगों की भावनाआें का भी ध्यान रखा जाना चाहिए । इसकी सबसे बड़ी वजह पीथमपुर के लोगों का विरोध है । वहां जब इसका ट्रायल किया गया था, तभी विरोध सामने आ गया था । दूसरी तरफ भोपाल में कचरे के निपटान के कोरे वादों से लोगों में गुस्सा है ।

कोई टिप्पणी नहीं: