सोमवार, 5 नवंबर 2012

जनजीवन  
पानी और पेड़ पौधे
साधना विवरेकर

    प्रकृति से हमारा संबंध सदा भावनात्मक रहा है । सदियों से हमने धरती को मां का दर्जा दिया है क्योंकि वह जीवनदायिनी है । उसने वह हर वस्तु उपलब्ध कराई है, जिससे जीवन संभव है ।
    हमारे धर्म में पृथ्वी, जलवायु, मेघ व नभ सभी का महत्व आदिकाल से समझा है, जिसे आधुनिक विज्ञान ने भी मान्यता दी  है । पेड़-पौधों में जीवन होने का प्रमाण वैज्ञानिकों ने दो ही सदियों पूर्व दिया है, पर हमारी सभ्यता में इनमें जीवन होने की आस्था युगों-युगों से स्थापित है । बरगद, पीपल, आंवला आदि को पूजने की परम्परा के पीछे आने वाली पीढ़ी को इनका महत्व समझाना, इनके प्रति संवेदना विकसित कर इन्हें सहेजने व इनकी देखभाल कर पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने का उद्देश्य ही छिपा था व इस तरह के संस्कार ही प्रकृति के प्रबंधन मेंमददगार थे । इन पेड़-पौधों की पूजा का संबंध सुहाग की लम्बी उम्र कामना से जोड़ आस्था की डोर का वैज्ञानिक आधार भी है । पेड़-पौधों की हरियाली होगी तो प्राणवायु ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ेगी, प्रदूषण कम होगा जो निश्चित ही बीमारियों पर नियंत्रण होगा व हर इंसान स्वस्थ व निरोगी होने से तनावरहित जीवन  गुजारेगा, तो लम्बी उम्र की ग्यारंटी हो जायेगी । 
    हर तीज-त्यौहार पर मौसमी फलों व सब्जियों तथा दालों के आदान-प्रदान से संबंधों का माधुर्य भी बढ़ता है और आंवला नवमी जैसे अवसरों परिवारजनों व बाल-बच्चें के साथ एकत्रित हो पौधों के नीचे भोजन करने से उन पौधों के औषधीय गुणों की जानकारी मिलती है, समझी जाती थी व नीम, पीपल, आम, जाम, जामुन हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण है । यह संस्कार अनायास ही मिलते है । हर आंगन में खिलती-बढ़ती तुलसी व उसे जल चढ़ाती दादी व मां को वह सौदर्य भरा सात्विक रूप कौन भूल सकता है । गर्मी में पिछवाड़े में लगे आमों का वृक्ष अनायास अपनी मिठास से ठंडक प्रदान करता है ।
    गुलमोहर के लाल फूल आग बरसाते हैं, तो अमलतास के पीले फूलों की बहार मंत्रमुग्ध करती है । भरी दुपहरी में नीम अपनी हरियाली के साथ घनी छाया देता है, तो चम्पा के सफेद फूल शांत रहने का संदेशा मोगरा अपनी खुशबू से सुबह को खुशनुमा बनाता है, तो छोटे-छोटे कोचिया के हरे पौधे सूरज की गर्मी का स्वाद हर सब्जी, दाल, चिवड़े को महकाता है तो हरी-हरी दूब अपनी तरफ से शीतलता प्रदान करने की पूर्ण प्रयास करते है ।
    बोगनविलिया के रंग-बिरंगे फूल कम से कम पानी में भी विजेता भाव से मुस्कुराता हुआ कहता है हम भी कुछ कम नहीं । एक्जोरा के कालघटक, गुलाबी-सफेद फूल गुच्छों में खिलकर अपनी छटा बिखेरते है, तो कन्हेर भी कहां पीछे रहने वाली सप्त्पर्ण हो या लहसुनिया, चंपा हो या चमेली अपनी हरियाली से वसुधा को ढंकने का प्रयास करते है ।
    एक नहीं हजारों प्रजातियां व लाखों पेड-पौधे इस वसुधा को एक हरित आवरण में ढंके रहते है । इसे सूरज के प्रकोप से बचाते है व अपनी जड़ों से वसुधा के गर्भ मेंसमाएं प्रचुर जल को थामे रहते हैं । इन हरियाली के बाशिदें से ही वाष्पीकृत हुआ जल मेघ बनि गगन में मेहमान बनता है व समय आने पर अमृत बूंदों के रूप में बरसकर ग्रीष्म में धरती को शीतल करने का जिम्मा उठाता है । यह धरती माँ अत्यन्त सहनशील, शांत व गंभीर होती है । वह अपने बच्चें के लिए सदियों से सब कुछ देती आई है। वह उदारमना अपनी भरपूर संपदा अपने गर्भ में छिपाए है जिसे वह उदारता से लुटाती आई है व हमें पालने-पोसने के साथ सम्पन्न भी बनाती है पर हमारे अतिस्वार्थ, अतिदोहन एवं औघोगिकीकरण ने व लापरवाही ने इसका अनुचित फायदा लेना अपना स्वभाव बना लिया ।
    वह हमारी सदियों की गलतियों को चुपचाप सहन करती रही, लेकिन हमने सारी हदें पार कर     दी । स्वार्थ में अंधे होकर हमने इसके आंचल हरियाली को नष्ट करना प्रारंभ कर दिया । कौन स्त्री, कौन मां अपनी आंचल को तार-तार होता देख   पाएगी ।  स्त्री व मां के लिए बच्च्े जान से प्यारे हो सकते हैं, इज्जत से प्यारे नहीं, इसलिए अपनी हरियाली औढ़नी में छेद होते देख, उसे तहस-तहस होते देख पहले तो वह दु:खी हुई पर उसके बच्चें को हमको उसके दर्द का अहसास नहीं हुआ । अब वह गुस्से से अत्यन्त गर्म हो रही है । अपनी इज्जत की, आवरण की हरियाली ओढ़नी की दुर्दशा से वह आग बबूला हो रही है, जिसके परिणाम हमें सूखा, बाढ़, तूफान या ज्वालामुखी के रूप में देखने को मिल रहे हैं । पानी की कमी, भीषण गर्मी, बढ़ता तापमान सब कुछ उसके नाराज होने के प्रमाण है ।
    धरती मां को पुन: शांत करना है, रूठी हुई मां को मनाना है तो अपने बरसों के पापों का प्रायश्चित करना है, तो उसका एकमात्र सरल सहज उपाय है उसकी लाज, इज्जत पुन: लौटाना हरियाली ओढ़नी के रूप में पेड़-पौधों को यथासंभव लगाकर, उनकी देखभाल करके, उन्हें सहेज हम रूठी मां को बड़ी आसानी से मना सकते हैं, उसे ठडक पहुंचा सकते है व उसके आहत मन पर मलहम लगा उसका दर्द कम कर सकते है । हमारे ये प्रयास कुछ ही वर्षो में इसकी हरियाली ओढ़नी को पूरी तरह से श्रृंगारित कर वसुधा को प्रसन्न कर ही लेंगे । वह उदाहरण से हमारे सारे गुनाह भुला हमें फिर लाड़ प्यार से अपनी ममता लुटाना प्रारंभ कर देगी ।
    पेड-पौधों व हरियाली को पुन: लौटाने के कई लाभ है -
    १. सुबह उठते ही जब आपकी नजर सुंदर फूलों, हरी घास पेड़ों पर बैठे पक्षियों पर पड़ती है, तो इस सुखद अहसास से मन में सकारात्मक ऊर्जा को भर आपकी कार्यक्षमता को बढ़ाता है ।
    २. पेड़-पौधों की हरियाली व पुष्पों के रंगोंकी विविधता, उनकी खुशबू उनसे होकर आप तक पहुंचने वाले हवा के झोंके मानसिक तनाव को समाप्त् कर आपके मन को प्रसन्नता से भर देते है ।
    ३. प्रकृति के करीब जाकर उसके सानिध्य से ईश्वर के प्रति आस्था बलवती होती है, श्रृद्धा से नतमस्तक होने से अहंभाव मिटता है व जीवन में सब कुछ सरल हो जाता है ।
    ४. पौधों पर खिलने वाले फूल नई जिंदगी का संदेश देते है है, उनकी मोहकता, सुन्दरता, आपकी सारी परेशानियां व चिंताए हर लेने में सक्षम होती है ।
    ५.  पेड़ पौधों के सानिध्य से शुद्ध हवा मिलती है, जिससे स्वस्थ व निरोगी रहने में मदद मिलती है ।
    ६. पेड-पौधों से लगाव अनायास ही प्रेम व विश्वास की भावनाएं विकसित करने में मदद करता है, जिससे मजबूत व गहरे होते है । सुखद रिश्तों की गरमाहट जीवन को सुख-शांति से भर देती है ।
    ७. पेड पौधों का मूक समर्पित भाव हमसे भी स्वार्थ, कपट, बैर जैसी भावनाआें को दमन करने में सक्षम होता है ।
    ८. पेड-पौधों को दिया गया जल पुन: वर्षा के रूप में लौटकर हमारी फसलों को सींचता है, जलस्तर को बढ़ाता है ।
    ९. हरी घास में बैठने का आनंद, भरी गर्मी में ठंडी हवा के झोंके, सर्दी में धूप सेंकने का आनंद ही जीवन के सच्च्े सुख की अनुभूति कराते हैं ।
    १०. पेड-पौधों को लगाकर हम प्रकृति के प्रबंधन में मदद कर पानी व पर्यावरण का सरंक्षण कर न सिर्फ हमारी बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों को स्वस्थ हवा, पानी से भरपूर हरी-भरी धरती की सौगात दे जाएंगे, जो हमारा कर्तव्य है व इस वक्त का तकाजा भी है ।
    अत: आएं हम सब अपनी रूठी मां को मनाने, उसे हरियाली ओढ़नी का उपहार देने, उसके प्यार को पुन: पाने के प्रयास में जुट जाएं, यह भोली मां ज्यादा देर नाराज नहीं रह पाएगी ।

कोई टिप्पणी नहीं: