सोमवार, 5 नवंबर 2012

पर्यावरण परिक्रमा
गांधीजी को राष्ट्रपिता की उपाधि नहीं
    महात्मा गांधी को सरकार की तरफ से राष्ट्रपिता की उपाधि नहीं दी जा सकती, क्योंकि संविधान सेना व शिक्षा से जुड़ी उपाधि के अलावा कोई भी खिताब देने की इजाजत नहीं देता हैं । गृह मंत्रालय ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी ।
    लखनऊ की सातवीं कक्षा की छात्रा ऐश्वर्या पाराशर द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में मंत्रालय ने बताया कि गांधीजी को राष्ट्रपिता घोषित करने के संबंध मेंउसकी अपील पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है, क्योंकि संविधान का अनुच्छेद १८(१) इसकी इजाजत नहीं देता । इस अनुच्छेद के अनुसार शैक्षणिक व सैन्य उपाधि के अलावा अन्य कोई उपाधि नहीं दी जा सकती है । ऐश्वर्या ने महात्मा गांधी के संबंध में जानकारी के लिए कई आरटीआई याचिकाएं दाखिल की है । उसने गांधीजी को राष्ट्रपिता कहे जाने की वजह भी जानना चाही थी । इसके जवाब में बताया गया था कि गांधीजी को ऐसी कोई उपाधि नहीं दी गई है । इस पर ऐश्वर्या ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर गांधीजी को राष्ट्रपिता घोषित करने के संबंध में अधिसूचना जारी करने का आग्रह किया था । ऐश्वर्या ने यह जानने के लिए भी आरटीआई याचिका दाखिल की कि उसके आग्रह पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने क्या कार्यवाही की ? उसकी अर्जीगृह मंत्रालय के पास भेज दी गई । जवाब में मंत्रालय ने गांधीजी को राष्ट्रपिता का खिताब न दिए जाने की यह वजह बताई है ।
    इतिहास के अनुसार गांधीजी को राष्ट्रपिता की उपाधि सबसे पहले नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने ०६ जुलाई १९४४ को सिंगापुर रेडियो पर अपने संबोधन में दी थी । इसके बाद २८ अप्रैल १९७४ को सरोजिनी नायडू ने एक सम्मेलन में उन्हें यही उपाधि   दी थी ।
देश में ६८ फीसदी दूध मिलावटी
    केन्द्र सरकार ने देश में बिक रहे दूध में बड़े पैमाने पर मिलावट की पुष्टि की है । सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा है कि देश भर में की गई दूध की जांच में ६८.४ फीसदी नमूने मिलावटी पाए गए है । दूध में पानी की मिलावट आम है, लेकिन कुछ मामलों में डिटजेंट की मिलावट के भी संकेत मिले हैं । फूड सेफ्टी एण्ड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया के सहायक निदेशक कमल कुमार की ओर से दाखिल हलफनामें में कहा गया है कि वह मिलावटी दूध के बारे में मीडिया में आई खबर से वाकिफ है ।
    इसीलिए अथॉरिटी ने दूध की गुणवत्ता तय करने के लिए गत वर्ष दूध की जांच का सर्वे किया था । इस सर्वे में ३३ राज्यों में शहरों और गांव से दूध के कुल १७९१ नमूने एकत्र किए गए । जांच में सिर्फ ५६५ (३१.५ फीसद) नमूने मानकों पर खरे उतरे, यानी सही पाए गए । जबकि १२२६ (६८.४ फीसद) नमूने फेल रहे, यानी मिलावटी पाए गए । मिलावटी दूध के कुल नमूनों में ३८१ (३१ फीसदी) ग्रामीण क्षेत्र के थे और ८४५ (६८.९ फीसद) शहर के थे ।  जांच मेंपता चला है कि दूध में पानी की मिलावट से न सिर्फ दूध की पोषक क्षमता घटती है बल्कि मिलावट के लिए दूषित पानी के इस्तेमाल से सेहत की भी खतरा होता है । इसका जिक्र नहीं था जबकि पैकेट पर इसका जिक्र जरूरी है क्योंकि इसके मानक अलग है । सरकार ने बताया है कि जांच मेंकुछ मामलों में डिटजेंट पाउडर की मिलावट के संकेत मिले हैं । डिटजेंट की मिलावट वाला दूध पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । उत्तरप्रदेश का ब्योरा देते हुए कहा गया है कि यहां से जांच के लिए कुल १३६ नमूने लिए गए थे जिनमें सिर्फ १७ नमूने मानकोंपर खरे उतरे बाकी के ८८ फीसदी नमूने मिलावटी पाए गए ?
    ज्यादातार मामलों में ग्लूकोज और मिल्क पाउडर की मिलावट थी । मानकों पर खरा न उतरने का मुख्य कारण दूध में पानी की मिलावट होना था । सरकार ने कहा है कि अध्ययन के नतीजे सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में खाद्य सुरक्षा आयुक्तों को भेज दिए गए हैं । उन्हें सलाह दी गई है कि वे दूध की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए  कदम उठाएं और कानून के मुताबिक कार्यवाही करें । केन्द्र सरकार ने मिलावटी दूध का मुद्दा उठाने वाली स्वामी अच्युतानंद तीर्थ की  याचिका खारिज करने की भी मांग की है ।

बेकार बोतलों से रौशन होगी झुग्गियां
    देशभर में नयी-नयी खोजों को बढ़ावा देने वाले विज्ञान भारती ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे खाली और बेकार पड़ी प्लास्टिक की बोतलों में पानी भरकर बिना किसी खर्च के देश के विभिन्न महानगरों की चौड़ी-चौड़ी सड़कों के किनारे बनी करोड़ों अंधेरी झुग्गियों को रोशन करने में सहायता मिलेगी ।
    विज्ञान भारती ने राष्ट्रीय पर्यावरण एवं  ऊर्जा विकास अभियान (एनईईडीएम) की सहायता से सूरज और सड़कों के किनारे खड़े खंभो पर लगे हैलोजन के प्रकाश का इस्तेमाल कर झुग्गियोंको बिल्कुल मुफ्त में रौशन करने के इंडोनेशियाई फार्मूले को विकसित किया है । जालंधर के लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी तीसरे अखिल भारतीय विज्ञान सम्मेलन एवं प्रदर्शनी में इस पूरी प्रक्रिया को दिखाया गया   है । विश्वविद्यालय परिसर में अंधेरी झुग्गी की एक डमी बनायी गयी है । इसमें प्लास्टिक की खाली बोतलों में पानी भरकर उसे प्रकाशित किया गया है । प्रदर्शनी में आकर्षण का केन्द्र बनी इस झुग्गी को देखने के लिए पंजाब भर से लोग आ रहे हैं । इस तकनीक को विकसित करने वाले विज्ञान भारती के राष्ट्रीय समन्वयक अमित कुलकर्णी ने बताया कि आमतौर पर झुग्गियोंमें खिड़कियां नहीं होती । उसमंे रहने वाले लोगों के लिए रात और दिन में कोई फर्क नहीं होता है । हमने पानी भरी प्लास्टिक की बोतल को छत में छेद कर ऐसे लटकाया जिससे उसका आधा हिस्सा ऊपर की ओर और आधा हिस्सा अंदर की ओर हो ।
    श्री कुलकर्णी ने कहा  इस प्रक्रिया  मेंबोतल में भरा पानी सूरज के प्रकाश को रिफलेक्ट कर कमरे को पूरी तरह रौशन करता है । डमी झुग्गी के अंदर इस प्रक्रिया से इतनी रोशनी है कि आप किताब भी पढ़ सकते है । रात में सड़कों के किनारे खंभों में लगे हैलोजन के प्रकाश को भी यह प्रतिबिंबित करता है और घर में काम करने के लिए जितनी रोशनी चाहिए उतनी इससे मिलती है । यह पूछने पर कि बरसात के दिनों में या सूर्यास्त के बाद रोशनी कैसे आएगी, कुलकर्णी ने कहा, बरसात के दिनों में भी दिन के वक्त प्रकाश तो होता है यह उसे प्रतिबिंबित करेगा । रही बात शाम के वक्त तो झुग्गी जंगलों या सुनसान स्थानों पर तो होती नहीं ।
    सड़को के किनारे खंभो पर लगे हैलोजन के प्रकाश से भी यह कमरे को रौशन करेगा । उन्होनें कहा कि मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन से थोड़ा हटकर बनी झुग्गियोंमें इसका प्रयोग किया गया और यह सफल रहा । हम जल्दी ही इस तरीके से देश के अन्य हिस्सों में भी झुग्गियों को रौशन करने की कोशिश करेंगे । यह पूछे जाने पर कि बोतल के पानी को बार-बार बदलना होगा, उन्होने कहा, हां, बदला जा सकता है लेकिन इसमें अगर ब्लीचिंग पाउडर और नमक मिला दिया जाए तो पानी बदलने की जरूरत नहीं होगी । इससे रोशनी भी और तेज होगी । ब्लीचिंग पाउडर पानी में काई और फफंूद बनने से रोकेगा ।
धूम्रपान ले लेगा एक अरब लोगों की जान
    आधा खरब डॉलर का तंबाकू उद्योग किसी आतंकवादी संगठन से कम नहीं है जो इस सुदी में दुनियाभर में एक अरब लोगों की जान ले लेगा ।
    विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि दुनियाभर के विभिन्न देशों की सरकारों ने इस दिशा में प्रभावी कदम नहीं उठाए तो एक अरब लोग केवल धूम्रपान के कारण इस दुनिया को अलविदा कर देंगे । दुनिया के इतिहास मेंं धूम्रपान को सबसे बड़ी स्वास्थ्य आपदा बताया गया है क्योंकि धूम्रपान करने वालों में से ५० फीसदी की मौत कैंसर के कारण हो जाती है ।
    चेतावनी में कहा गया है कि दुनिया के कई देशों में इस समस्या को लेकर गंभीर और कारगर कदम उठाए जाने की जरूरत है । सरकारों को इस ओर तुरन्त ध्यान देना होगा ।

कोई टिप्पणी नहीं: