रविवार, 7 सितंबर 2014

पर्यावरण समाचार
कूनो अभयारण्य का क्षेत्र होगा दोगुना
    गिर (गुजरात) के सिंहों (शेर) के लिए, मध्यप्रदेश के पालनपुर-कूनो अभयारण्य (श्योपुर) का क्षेत्र बढ़ाया जाएगा । इसमें ३०४ वर्ग किलोमीटर को अभयारण्य क्षेत्र में जोड़ा जाएगा । इस तरह सिंहों के लिए कूनो अभयारण्य का क्षेत्र ६०० वर्ग किलोमीटर से ज्यादा का हो  जाएगा । शेर अपने परिवार के साथ यहां रह पाएंगे ।
    सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सिंहों को लाने का रास्ता करीब-करीब साफ हो चुका है । नई दिल्ली में कुछ एनजीओ की याचिका और लगी है । उन पर फैसला होते ही मध्यप्रदेश का वन विभाग शेरों को लाने की तैयारी शुरू कर देगा ।
    सूत्र बताते हैं कि बीते दिनों दिल्ली में हुई बैठक में वन्य प्राणी की एक्सपर्ट कमेटी ने मध्यप्रदेश के वन विभाग को अभयारण्य का क्षेत्र बढ़ाने को कहा था । उक्त आदेश के बाद विभाग ने कूनो अभयारण्य क्षेत्र का सर्वे कराया । सर्वे का काम पूरा हो चुका है ।
    सर्वे के बाद कूनो अभयारण्य के एरिया में ३०४.५९६ वर्ग किलोमीटर का एरिया और जोड़ा जाएगा । इसके साथ ही अभयारण्य का कुल क्षेत्र ६५९.२८२ वर्ग किलोमीटर हो जाएगा । कुल रेंज २ की जगह ४ हो जाएगी । इनमें मुरावन पूर्व और मुरावन पश्चिम रेंज और शामिल कर ली जाएंगी ।
    कूनो अभयारण्य का वर्तमान क्षेत्र ३४४,६८६ वर्ग किलोमीटर है । इसमेंदो रेंज पालपुर पूर्व और पालपुर पश्चिम रेंज आती है । अभयारण्य क्षेत्र के लिए वनमण्डलाधिकारी भी अलग से पदस्थ है ।

इन्दौर के वैज्ञानिक ने खोजा ६ करोड़ साल पुराना जीवाश्म
    मध्यप्रदेश के इन्दौर में होलकर साइंस कॉलेज में प्राणी विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. विपुलकीर्ति शर्मा ने ६ करोड़ वर्ष पुराना जीवाश्म खोज निकाला है । वैज्ञानिकों ने उनकी इस खोजा का श्रेय उन्हें देते हुए जीवाश्म का नामकरण शर्मा के नाम पर कर दिया है । उनके द्वारा खोजे गए सीअर्चिन को दुनिया अब स्टिरियोसिडेरिस कीर्ति के नाम से जानेगी । प्राणी विज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय फोरम ने स्वीकार किया है कि स्टिरियोसिडेरिस एक नई खोज है, जो इसके पूर्व विश्व में कहीं नहीं मिली । अब किताबों में जहां भी उक्त जीवाश्म का नाम आएगा । डॉ. शर्मा का नाम भी लिया जाएगा ।
    डॉ. शर्मा ने बताया, यह जीवाश्म २००६-०७ के दौरान मनावर के जीराबाद गांव में करोदिया मान-सुकर नदी के क्षेत्र में मिला था । इसका व्यास ५० मिमी और ऊंचाई ३८ मिमी है । क्रीमी पिंक कलर का यह जीवाश्म ६ से १० करोड़ वर्ष पुराना है । यह जिस जीव का जीवाश्म है, वह समुद्र के उथले जल में पाया जाता होगा ।
    डॉ. शर्मा बताते हैं ६ करोड़ वर्ष पूर्व इन्दौर समुद्री किनारे पर था । अरब सागर उस वक्त टेथिस समुद्र     था । टेथिस की एक भुजा गुजरात के कच्छ से पश्चिम निमाड़ होती हुई जबलपुर तक फैली थी ।
    यही क्षेत्र आज नर्मदा वैली के नाम से जान से जाना जाता है । मध्यकाल के मीजोजोईक इस में टेथिस की गहराई बढ़ जाने के कारण उथले समुद्री किनारों पर पाये जाने वाले जीव विलुप्त् हो गए ।
    कालांतर में टेथिस समुद्र की यह भुजा भौगोलिक परिवर्तनों के कारण समाप्त् हो गई और अपने पीछे जीवाश्मों का खजाना छोड़ गई । ये जीवाश्म राष्ट्र की बहुमूल्य संपत्ति और धरोहर है ।
ऐसे तो गंगा २०० साल में भी साफ नहीं हो पाएगी
    पिछले दिनों धार्मिक आस्था से जुड़ी गंगा नदी की साफ-सफाई के लिए केन्द्र सरकार द्वारा बनाई जा रही योजना को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है । सरकार ने गंगा को निर्मल बनाने के लिए अपना एक्शन प्लान पेश किया, तो शीर्ष अदालत ने इसे तल्ख टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया ।
    कोर्ट ने कहा, आप जिस योजना में गंगा की सफाई का खाका खींच रहे है, उससे तो २०० साल में भी ये नदी साफ नहीं हो पाएगी । आपको ऐसे कदम उठाने चाहिए कि गंगा की ऐतिहासिक शान लौटे और आने वाले पीढ़िया उसे निर्मल रूप में देख सके । हमें तो पता नही हम उसे देख पाएंगे या नहीं । केन्द्र सरकार को  फटकार लगाते हुए कोर्ट ने कहा कि आप तीन हफ्ते में एक चरणबद्ध योजना पेश करें, जिसमें इस नदी को साफ करने की सटीक योजना का व्यवस्थित ब्यौरा हो । कोर्ट ने कहा कि हमें यह नहीं जानना कि आप क्या समिति बना रहे है और कौन सी समिति कौन सा काम करेगी । 

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