रविवार, 7 सितंबर 2014

कृषि जगत
बीटी बैंगन की व्यावसायिक असफलता
डॉ. ईवा सिरिनाथसिंह
    बीटी तकनीक को भविष्य का चमत्कार बताया जा रहा है । इसके बारे में कहा जाता है कि इनमें किसी प्रकार के कीट नहीं लगेंगे और इस तरह यह किसान हितैषी है । परंतु बांग्लादेश में इस नई तकनीक की असफलता ने सीमित संख्या में ही सही लेकिन किसानों को नुकसान पहुंचाया है ।     
    गार्डियन ने हाल ही में बताया है कि एशिया में पहली बार व्यावसायिक रूप से उत्पादित जीनांतरित (बी.टी.) बैंगन के  निराशाजनक परिणाम सामने आए  हैं । भिन्न जलवायु क्षेत्र में इसकी चार किस्में-कजला, उत्तरा, नयनतारा और आईएमडी ००६ लगाई गई थी ।  बांग्लादेश में बैंगन, उपभोग एवं निर्यात दोनों लिहाज से महत्वपूर्ण फसल है और इसकी खेती के  जनसंख्या पर व्यापक स्वास्थ्य व आर्र्थिक जोखिम आ सकते हैं । वास्तव में यह क्षेत्र बैंगन के उद्गम और जैवविविधता वाला क्षेत्र है । अतएव जैव सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र कार्टाजेना सम्मेलन के सुझावों के तहत इस क्षेत्र को जीन संवर्धित संदूषण से बचाना आवश्यक है । इसकी लोकप्रियता और प्रमुख खाद्य फसल होने के नाते कई जी.एम. प्रस्तावक अपनी जी.एम. (जीनांतरित) तकनीकों को बंाग्लादेश एवं समीप के व्यापक क्षेत्र जिसमें भारत भी शामिल है (और जहां पर कि अभी इस पर रोक लगी हुई है,) मंे फैलाने पर तुले हुए हैं । भारतीय स्थगन विभिन्न नागरिक समूहों, सर्वोच्च् वैज्ञानिकोें ,बैंगन उपजाने वाले क्षेत्रों की राज्य सरकारों के साथ ही साथ, नागरिकांे एवं पर्यावरण समूहों के घोर विरोध के बाद आया है। बांग्लादेश मंे भी इसकी खेती को लेकर इसी तरह के विवाद सामने आए और १०० नागरिक संगठनों ने प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस संबंध में विरोध पत्र लिखा था । इस प्रकार के निराशाजनक परिणाम इस परियोजना की तरफदारी करने वालों के लिए धक्का साबित हांेगे ।
     गार्डियन के संवाददाताओं ने समस्याग्रस्त २० किसानों में से १९ से संपर्क किया । ७ स्थानों का दौरा किया, इसमें से ९ किसानों ने उन्हें अपनी समस्या बताई जिसमें कीड़े लगने (बैक्टीरियलविल्ट) एवं सूखा शामिल हैं । गौरतलब है कि इन फसलों को लेकर दावा किया जाता रहा है कि यह कीटों जैसे फ्रूट एवं शूट बोरर आदि पर नियंत्रण पाने में सक्षम है । गाजीपुर क्षेत्र में पांच में से चार खेतों में फसल को नुकसान पहंुचा है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों को जबरदस्त आर्थिक हानि पहुंची है । इसी वजह जीएम समर्थक समूह इन परिणामों को छुपाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं और जीएम विरोधियों पर फसलों की असफलता को लेकर झूठ बोलने का आरोप लगा रहे हैं ।
    परंन्तु इस नई रिपोर्ट में किसानों और उनके खेतों की फसलों की विस्तृत रिपोर्ट में नष्ट (ईद) फसल के फोटो भी शामिल हैं । विवाद को और हवा देते हुए कहा जा रहा है कि बांग्लादेश कृषि शोध संस्थान (जीएमआई) जो कि यू.एस. एड और कारनेल विश्वविद्यालय की मदद से यह परियोजना चला रहा है, के कार्य से प्रतीत होता है कि उसने लाईसेंस समझौते के कुछ अनुबन्धों का पालन नहीं किया है । इससे इस योजना की वैधता पर प्रश्न उठ  रहे हैं । अनुबंधों में व्यवस्थित लेबलिंग (नामकरण), खेतों में उत्पादन प्रक्रिया का सूत्रीकरण, खेतों में जैव सुरक्षा प्रबंधन योजना, किनारे लगने वाली पंक्ति  के  प्रबंधन की योजना और स्थानीय एवं देशज किस्मों एवं जंगली पौधों की सुरक्षा की तकनीक शामिल हैं।  बीएआरआई ने स्वीकार किया है कि उसने फसल लगाने के पहले खेतों का दौरा नहीं किया था । इसके अतिरिक्त यह समाचार भी है कि गलत प्रकार की लेबलिंग के कारण नागरिक इस बात को लेकर पूरी तरह से अनजान थे कि वे क्या खरीद रहे हैं ।
    बीटी बैंगन को सर्वप्रथम मूलत: महिको, जो कि मोंसेंटो की भारतीय सहायक कंपनी है, ने भारत में खेती करने के लिए विकसित किया था । परंतु भारत में इसके व्यापारिक उत्पादन पर तब तक के लिए स्थगन लग गया जब तक कि स्वतंत्र नियामक प्राधिकारी अपना स्वयं का सुरक्षा परीक्षण न कर ले । फिलिपीन्स में भी सन् २०११ में खेतों में परीक्षण इसलिए रोक दिया गया क्योंकि शोधकर्ताओं ने इस हेतु पूरी तरह से जरूरी सार्वजनिक विचार विमर्श नहीं किया था । उसके बाद यह तकनीक स्थानीय बांग्लादेशी किस्मों को स्थानांतरित एवं उनमें विस्तारित कर दी गई । इतना ही नहीं सन् २०१३ में महिको द्वारा वही सुरक्षा आंकड़े जो कि उसके भारत में अस्वीकृत फसल हेतु प्रयोग में लाए गए थे, के आधार पर इसको अनुमति दे दी गई । यहां सुरक्षा परीक्षण मात्र ३ माह की अवधि के लिए किए गए, जिससे स्पष्ट तौर पर दीर्घावधि में होने वाले दुष्परिणामों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है ।
    बीटी फसलों पर हुए स्वतंत्र अध्ययन पहले ही इनमें व्याप्त जहरीलापन, प्रतिरोधक शक्ति  में कमी, आंतरिक अंगों को नुकसान एवं सांस संबंधी समस्याओं के बारे में बता चुके हैं । इसके पूर्व ग्रीनपीस इंडिया के  लिए प्रोफेसर सेरालिनी और उनका समूह भारत के लिए नियत बीटी बैंगन की किस्मों के जहरीलेपन का अध्ययन कर चुके हैं । उन्होंने पाया था कि इसमें असंतुलित पोषण, चूहों और बकरियों के रक्त रसायन पर प्रभाव, दूध देने वाली गायों में वजन का बढ़ना एवं मोटा चारा पदार्थ खाने में वृद्धि शामिल हैं । इसके अलावा चूहों में पानी का बढ़ता उपभोग, लीवर (यकृत) के  वजन में कमी और लीवर व शरीर के वजन के अनुपात के अंतर में घट बढ़ एवं दस्त लगना भी देखने में आए हैं ।
    दुर्भाग्यवश बांग्लादेश की जैवसुरक्षा नियमन प्रणाली काफी कमजोर है तथा जहरीलापन मापने की उसकी अपनी प्रयोगशाला भी नहीं    है । इस वजह से वह आसानी से जीएम निगमों (कारपोरेशन) एवं संस्थानों के शोषण का शिकार हो रहा है। बीटी बैंगन के बांग्लादेश मेंे होने वाले उत्पादन के फलस्वरूप उत्पन्न संकर परागण से सीमा से लगे भारत जैसे देश भी प्रभावित होंगे । अतएव जीनांतरित संदूषण केवल बांग्लादेश की चिंता का विषय नहीं है । भारत द्वारा इसकी खेती प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद इसकी सीमा के नजदीक ही पायलेट योजना मूर्त रूप ले रही    है । पहले भी ऐसा हो चुका है कि जीएम फसलें सीमा पार तक फैली हैं और ब्राजील जैसे देशों को जीएम फसलों की वैधानिकता को ही चुनौती देना पड़ी थी । गौरतलब है कि यदि यह फसल एक बार बढ़ना शुरू कर देती है तो इसको हटाना बहुत कठिन है । ऐसा भारत के साथ भी हो सकता है ।
    एक अन्य विवाद इस फसल के बौद्धिक संपदा अधिकार को लेकर है । इसके बारे में दावा किया गया है कि स्वतंत्र रूप से बांग्लादेशी सार्वजनिक संस्थानों की संपत्ति है । जबकि बीटी तकनीक अभी भी महिको, महाराष्ट्र हाइब्रीड सीड कंपनी लि. की संपत्ति है । हालांकि इस पायलेट योजना के अंतर्गत किसानों को बीज मुफ्त में और बिना किसी रॉयल्टी के बांटे गए हैं, लेकिन इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही है कि बौद्धिक संपदा अधिकार भविष्य में एक मुद्दा बन सकता है ।
    त्रिपक्षीय अनुबंध, जिसे सतगुरु समझौते के नाम से जाना जाता है पर १४ मार्च २००५ को बी.ए.आर.आई. महाराष्ट्र हाईब्रीड सीड कंपनी लि. एवं सतगुरु मैनेजमेंट कंसल्टेंट के बीच हस्ताक्षर हुए । जिसके अंतर्गत बीटी बैंगन से संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकार महाराष्ट्र हायब्रीड सीड कंपनी के पास ही    रहेंगे । इस समझौते में महाराष्ट्र हाईब्रीड सीड कं. लि. उप लाइसेंसर है और बीआरएआई सब लाइसेंसी और वह बांग्लादेश में कृषि जैव तकनीक सहायता परियोजना-२, परियोजना में सहभागी भी है ।
    इतना ही नहीं यदि पॉयलेट योजना के बाद बड़े स्तर पर खेती की अनुमति दे दी गई तो बीटी जीन के साथ सैकडों नई किस्में (जीएम पेटेंट) विकसित हो जाएंगी । किसान तो अब कारपोरेट लड़ाई में फंस गए हैंऔर इस नई तकनीक की वजह से उनकी आजीविका संकट में है । इतना ही नहीं इससे उनकी खेती और स्वास्थ्य भी दीर्घकालिक जोखिम में फंस गए हैं । इस पायलट योजना की असफलता एक तरह से तो किसानों के लिए शुभ है और किसानों का इससे दूर रहना ही बेहतर है ।

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