रविवार, 7 सितंबर 2014

कविता
पशु-पक्षी संरक्षण
गौरी शंकर वैश्य   विनम्र 
पर्यावरण संतुलन हित शुभ, पशु-पक्षी संरक्षण ।
वन-उपवन के बीच बसा है, जीव-जन्तुआें का संसार ।
हरे-भरे तरू की शाखाएं, सबको लुटा रही है प्यार ।
रंग-बिरंगी चिड़ियों की है, गूंज रही मीठी बोली ।
कोयल, बुलबुल, मोर, पपीहा, शुक, गौरेया की टोली ।
परोपकार मान कर प्रकृति का, करते स्नेहार्पण ।
पर्यावरण प्रदूषण घातक, घटती जाती हरियाली ।
बहु-प्रजातियां नष्ट हो चुकी, कुछ सहसा जाने वाली ।
जीवों पर आया है संकट, वन कट गए कहाँ जाएँ ।
नहीं मिल रहा भोजन-पानी, कैसे प्राण बचा पाएँ ।
वातावरण मिले तब होगा, जीवन का अनुरक्षण ।
सभी जीव है पात्र दया के, मानव के हित हितकारी ।
सुख से धरती पर रहने के, सब समान हैंअधिकारी ।
नहीं क्रूरता-भय दिखलाओ, स्वार्थवृत्ति को त्यागो ।
महानाश क्यों बुला रहे हो, सोचो ! अब तो जागो ।
शाकाहारी बनो, त्याग दो, जीव-जन्तु का भक्षण ।
नए चतुर्दिक वृक्ष लगाओ, मिले सरस फल-छाया ।
रंग-बिरंगे फूल खिलाओ, रहे निरोगी काया ।
फिर जंगल में मंगल होगा, झूमेंगे भौरे-तितली ।
कुहू-कुहू, पिउ-पिउ स्वर होगा, उछलेगी जल में मछली ।
महकेगा विनम्र घर-आंगन, स्वच्छ-स्वस्थ हो जन-गण ।
पर्यावरण संतुलन हित शुभ, पशु-पक्षी संरक्षण ।

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