रविवार, 7 सितंबर 2014


सम्पादकीय 
हिमालय की जरूरत है, पर्यावरण मित्र पयर्टन
    पिछले कुछ वर्षोसे पर्यटकों का हिमालयी क्षेत्रों की ओर रूझान बढ़ रहा है । आवागमन के साधनों में सुधार और मध्यम वर्ग के आर्थिक सामर्थ्य में बढ़ोत्तरी भी इसके बढ़ने का कारण बनते जा रहे हैं । पर्यटन विकास को सरकारें भी पर्याप्त् प्रोत्साहन देने का प्रयास करती हैं । यह एक ऐसा कारोबार है, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की भी आवश्यकता नहीं पड़ती । केवल ठहरने/खाने-पीने की अच्छी सुविधाआें और आवागमन के साधनों के विकास की ही जरूरत होती है । इस तरह के ढांचागत विकास मेंकुछ संसाधन जरूर खप जाते हैं । फिर भी अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम संसाधनों के प्रयोग से ज्यादा रोजगार सृजन और लाभ प्राप्त् किया जा सकता है । लेकिन हिमालय जैसे नाजुक क्षेत्र में पर्यटन का मनमाना मॉडल न टिकाऊ हो सकता है और न ही यहां के प्राकृतिक संतुलन के लिए लाभदायक।
    पर्वतीय नाजुकता को ध्यान मेंन रखने के कारण ही सामान्य विकास गतिविधियों, जल-विघुत परियोजनों और अंधाधंुध को बढ़ावा मिला । नदी किनारे मनमाने निर्माण से जन-धन की हानि बढ़ गई । हमें हिमालय क्षेत्र की नाजुकता को ध्यान में रखते हुए टिकाऊ और जिम्मेदार पर्यटन का मॉडल विकसित करना होगा । हम ज्यादा पर्यटक आकर्षित करने के नाम पर ऊंचाई वाले संवेदनशील क्षेत्रोंमें स्की विलेज जैसा मेगा पर्यटन मॉडल अपनाकर जिस प्राकृतिक विशिष्टता के कारण पर्यटक यहां आते हैं, उसे ही खतरे में नहीं डाल रहे है ।
    इस तरह के पर्यटन का स्थानीय छोटे व्यवसायी को कोई रोजगार नहीं मिलने वाला और स्थानीय पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव भी पड़ेगा । संवेदनशील जगहों तक गाड़ी पहुंचाने के बजाय अच्छे रोप-वे बनाने की दिशा में सरकारी प्रयासों को समर्थन मिलना चाहिए । ऐसे रोप-वे बड़े पैमाने पर बने । टैक्सी का व्यवसाय बाधित न हो, इसके लिए युवा उद्यमियों को सहकारी समिति बनाकर उसमेंशेयरधारक बनाना चाहिए । हिमालयवासी, जो हिमालय के सौंदर्य और पारिस्थितिकी का रखवाला है, वह पर्यटन विकास में केवल बैरागिरी या बिस्तर बिछाने तक सीमित रहें, यह ठीक मॉडल नहीं होगा । इन बातों को ध्यान में रखते हुए कुछ नयी सावधानियों को पर्यटन विकास का हिस्सा बनाना होगा ।    

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