पर्यावरण समाचार
सबसे बड़े पशु मेले में अब बलि नहीं
जानवरों को बलि से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे पशु प्रेमियों के लिए अच्छी खबर है । नेपाल में हर पांच साल में गढ़िमाई पर्व में होने वाला पशु संहार अब से नहीं होगा । नेपाल गढ़िमाई मन्दिर ट्रस्ट ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए उत्सव में होने वाली पशु बलि पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया । ट्रस्ट ३०० साल पुराने परम्परा बदलने को तैयार हो गया ।
दुनिया में सबसे बड़े पशु नरसंहार के लिए पहचाने वाले इस उत्सव में करीब पांच लाख तक पशु बलि चढ़ाए जाते है । काठमांडु से १६० कि.मी. दूर दक्षिण में यानी बिहार से सटी सीमा पर स्थित बारा जिले के बरियापुर में गढ़िमाई देवी का मन्दिर है । मवेशी लोग इनकी आराधना शक्ति की देवी के रूप में करते हैं और इनमें ऐसी मान्यता है कि पशुआें की बलि देने से देवी प्रसन्न होती है । हर बार लाखों बलि दी जाती है । भारत से भी हर साल इस उत्सव के लिए सैकड़ों पशु नेपाल ले जाए जाते थे, पर पीपुल फॉर एनीमल संस्थान की ट्रस्टी गौरी मुलेखी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की । तब शीर्ष अदालत ने राज्यों को आदेश दिया कि वे अपने राज्य के पशुआें को नेपाल ले जाने से रोकने के प्रबंध करे । इसका असर भी हुआ ।
२००९ में हुए गढ़िमाई पर्व में करीब पांच लाख, तो २०१४ के उत्सव में ४.७ लाख भैंसो, बछड़ों, सुअरों और गौवंश की बलि चढ़ाई गई थी । इस भीषण पशु वध के खिलाफ पशु कल्याण तंत्र नेपाल और ह्यूमन सोसायटी इंटरनेशनल इण्डिया ने काफी संघर्ष किया ।
जलवायु बदलने का पेड़ों पर असर
जलवायु परिवर्तन का असर अब पेड़-पौधों की लंबाई पर दिखने लगा है । पेड़-पौधों की लंबाई २-४ फीट तक घट गई है । यह खुलासा जबलपुर स्थित उष्ण कटिबंधीय अनुसंधान के वैज्ञानिकों के शोध में हुआ है । लंबाई घटने का कारण तापमान में पेड़ों की पत्तियां झुलस रही हैं । इसकी वजह से पनपते पेड़-पौधे सही ढंग से प्रकाश संश्लेषण नहीं कर पा रहे हैं और पर्याप्त् खुराक नहीं मिलने से उनकी ऊंचाई घट गई है । फलदार पेड़ों से उत्पादन भी कम हो रहा है । वैज्ञानिकों ने यह शोध आम, नीम, बबलू, खमेर, यूकेलिप्टस, कदम, मौलश्री समेत सभी किस्म के पेड़ पौधों पर किया जाता है ।
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