सोमवार, 17 अगस्त 2015

सुमन-शताब्दी 
मानवतावादी लोकनायक डॉ. सुमन
डॉ. खुशालसिंह पुरोहित 
हिन्दी के शीर्षस्थ साहित्यकार प्रगतिशील विचारधारा के प्रख्यात कवि मानवतावादी लोकनायक डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन का जन्म शताब्दी का वर्ष चल रहा है । 
डॉ. सुमन की कविता बीसवींशताब्दी की साहित्य की सुदीर्घ परम्परा और सम-सामयिक इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज है । सुमनजी को सांसों के हिसाब के कवि के रूप में जानने का अवसर हमें मिला, लेकिन उनकी कविता में समय की धड़कनें हर युग में सुनी जाती रहेगी । सुमनजी की कविता और उनका विलक्षण व्यक्तित्व उनको कालजयी साहित्यकारों की पंक्ति में खड़ा करता है । 
हिन्दी की प्रगतिशील विचारधारा के प्रमुख कवि होने के साथ ही सुमनजी के काव्य मेंमानवतावाद और सामान्य जन की पीड़ा का मुखरता से वर्णन हुआ है । सुमनजी की लोकप्रियता में उनका मानवतावादी दृष्टिकोण भी था । 
उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के झगरपुर गांव में परिहार ठाकुर घराने में ५ अगस्त (नागपंचमी) १९१५ को सुमनजी का जन्म हुआ  । राष्ट्र के लिये उत्सर्गशीलता और साहित्यिकता की परम्परा आपको विरासत में मिली  थी । आपके प्रपितामह ठाकुर चंद्रिकाबक्शसिंह ने सन् १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के विरूद्ध लड़ते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी । आपके बड़े भाई रामसिंहजी ब्रजभाषा के अच्छे कवि थे । इसी प्रकार बहन कीर्ति कुमारी की गिनती भी वरिष्ठ साहित्यकारों में होती थी । 
आपकी प्रारंभिक शिक्षा उत्तरप्रदेश में हुई । बाद में रीवा, ग्वालियर और बनारस शहर आपकी शैक्षणिक यात्रा के पड़ाव रहे । हिन्दी के महापुरूषों में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, बाबू श्यामसुन्दर दास, आचार्य केशव प्रसाद मिश्र जैसे मनीषियों का मार्गदर्शन आपको   मिला । ग्वालियर, बनारस और उज्जैन ऐसे नगर हैं जहां सुमनजी को जनता का भरपूर प्यार और लोकप्रियता मिली । उज्जैन में तो यह लोकप्रियता उस शिखर तक पहुँची जहां व्यक्ति लोकनायक हो जाता है । 
ग्वालियर नगर में ही सुमनजी को सुमन उपनाम मिला । ग्वालियर के कविरामकिशोर शर्मा किशोर ने सन् १९३४ में शिवमंगलसिंह नाम में शिव से सु, मंगल से म और सिंह के अनुस्वार से न लेकर सुमन उपनाम बनाया । सुमनजी शुरू में पत्रकार रहे लेकिन उन्हें अध्यापन का अवसर मिला तो अपनी रूचि के कारण वे उसी में रम गये, उनका पूरा जीवन लोक शिक्षण के लिये समर्पित रहा । ग्वालियर और उज्जैन में आपकी अध्यापकीय गौरव गाथा के उदाहरण देखे जा सकते हैं । ग्वालियर में अटल बिहारी वाजपेयी, रामकुमार चतुर्वेदी चंचल, वीरेन्द्र मिश्र तो उज्जैन में प्रकाशचंद सेठी, श्याम परमार, शरद जोशी और चिंतामणि उपाध्याय को आपके विद्यार्थी होने का गौरव मिला था । 
डॉ. सुमन जैसा वक्ता हिन्दी में दुर्लभ है । सुमनजी को शब्दों का जादूगर कहा जाता था, उनके भाषणों में घंटों श्रोता बंधे रहते थे । आपके काव्यपाठ में भी भाषण का पुट रहता था, भाषण कब कविता हो जाती थी और कविता कब भाषण बन जाता था पता ही नहीं चलता था । सुमनजी उन चंद सौभाग्यशाली कवियों में शामिल हैं, जिनको महात्मा गांधी और पं. नेहरू को अपनी कविता सुनाने का अवसर मिला था । नेहरूजी ने तो सुमनजी की डायरी में संदेश लिखा था अपने जीवन को एक कविता बनाना चाहिये यह छोटा सा वाक्य बाद में ऐतिहासिक दस्तावेज बन  गया । 
जिन लोगों को सुमनजी से मिलने का या उनका भाषणा सुनने का अवसर मिला, वे जानते हैं कि डॉ. सुमन से मिलना, चर्चा करना या उनका भाषण सुनना नये अनुभव के दौर से गुजरना होता था । सुमनजी का भाषण कभी समाप्त् नहीं होता उसे तो बंद करना पड़ता था । उनके ज्ञान के खजाने से शब्द दर शब्द भाषण का झरना बहता रहता और श्रोता अभिभूत होकर, समय को भूलकर सुनने में तल्लीन रहते थे । सुमनजी के एक भाषण में न जाने कितने संस्मरण पसाद-पंत, निराला, तुलसी सूर, टैगोर, गांधी, नेहरू और सरदार पटेल जैसे कितने ही महापुरूषों के जीवन की घटनायें, उनके विचार या मुलाकात के शब्द-चित्र होते थे । आपका पूरा भाषण एक डाक्यूमेंट्री फिल्म की तरह चलता था, जिसमें सब कुछ सजीव और जीवंत लगता  था । संक्षेप में कहें तो समूचा युग और उसके संदर्भ सुमनजी के भाषण मेंजीवंत हो उठते थे । 
अपने उम्र के नवें दशक में भी सुमनजी की दिनचर्या बड़ी ही अनुशासित और गीतशीलता लिये हुई रहती थी । बड़े सबेरे जग कर घूमने जाना उनका दैनिक क्रम था । देश के कोने-कोने से लोग उनसे मिलने आते थे, सभी से सुमनजी आत्मीयता से प्रसन्नतापूर्वक मिलते थे और यथासंंभव हरेक की सहायता करते थे, शायद ही कोई उनसे मिलकर निराश लौटा हो । लोगों से बाचतीत कर उनकी समस्या हल करने में सुमनजी को ऊर्जा मिलती थी, इससे वे अपने आपको तरोताजा महसूस करते थे । 
सामान्य पूजापाठ से भिन्न एक विशिष्ठ पूजा वे नियमित करते  थे । नियमित रूप से गीता-रामायण और अन्य कोई पुस्तक पत्रिका रोज निश्चित समय पर पढ़ना ही उनकी पूजा थी । सुमनजी चाहे घर में होते, देश में कहीं हो या विदेश में प्रवास पर हो, यह क्रम निरन्तर रहता था । इससे साहित्य, समाज और समकालीन राजनीति पर सुमनजी की सजग दृष्टि बनी रहती थी । युवा लेखकों की रचनाशीलता से सतत संपर्क के साथ ही सामाजिक सरोकारों में सार्थक हस्तक्षेप सुमनजी के व्यक्तित्व की विशेषता थी । यह पूजा इसकी आधार भूमि थी । 
सुमनजी का डायरी लेखन प्रसंग भी उल्लेखनीय है । कई बार जब कोई उनसे मिलता था तो आश्चर्यचकित रह जाता कि वे दस मिनिट पूर्व तक की डायरी लिख चुके होते थे । डायरी लेखन में इतनी नियमितता और गतिशीलता बहुत कम लोगों में देखने को मिलती हैं । सुमनजी व्यक्तिगत डायरी के साथ ही एक दूसरी डायरी भी रखते थे जिसमें किसी द्वारा कहीं गयी कोई बात कविता, संस्मरण या सुभाषित पसंद आने पर वे उसे संदर्भ सहित नोट कर लेते थे । इसी गुणग्राहकता और जिज्ञासा ने उन्हें हमेशा युवा बनाये रखा । 
युवा जगत में सुमनजी सर्वाधिक लोकप्रिय रहे । सुमनजी का आभामंडल इतना विस्तृत रहा कि उसने देश और काल की सीमा के बंधनों को तोड़कर युवाआें की कई पीढ़ियों को प्रभावित किया था । युवाआें के लिये सुमनजी की सीख स्वयं उनके शब्दों में  जीवन में कोई बड़ा स्वप्न संजोकर अवश्य रखना चाहिये, इसी स्वप्न के सहारे व्यक्ति, समाज या राष्ट्र फिर उठ खड़ा हो सकता है, चल दौड़ सकता है और लक्ष्य तक पहँुच सकता है,  हर युग में प्रासंगिक बनी रहेगी । 
उ.प्र. से अपनी जीवन यात्रा शुरू करने वाले सुमनजी के जीवन में मालवा का केन्द्र उज्जैन एक महत्वपूर्ण पड़ाव सिद्ध हुआ । यह भी सुखद संयोग है कि सुमनजी को मिलने वाले सम्मान और पुरस्कारों की शुरूआत उनके मालवा निवास के बाद से ही हुई थी । सुमनजी की लोकप्रियता देश ओर ओर विदेश में रही लेकिन मालवा को लेकर उनके मन में असीम प्रेम था । 
आज से पैतालीस बरस पहले मुझे नवीं कक्षा में पढ़ते हुए सुमनजी के प्रथम दर्शन का अवसर मिला  था । उनके स्नेह स्पर्श, आत्मीयता और आशीर्वाद की मुझे जैसे अनेकों तरूणों के जीवन में नया उत्साह और जोश भरने में महत्वपूर्ण भूमिका   थी । सुमनजी के साथ बिताये अनेक एतिहासिक क्षण मेरे जीवन की अनमोल थाती है । सुमनजी के निर्देशन में शोध कार्य करने में जो विशिष्ट अनुभव और गौरव मिला उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना मुश्किल है । आज सुमनजी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके प्रेरणादायी विचार नयी पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे । महाकाल के उद्यान के प्रमुख सुमन की सुरभि अनेक शताब्दियोंतक हमारे वातावरण में व्याप्त् रहेगी । 

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