सोमवार, 17 अगस्त 2015

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष
अविवादित मुद्दों से दूर हों विवाद
भारत डोगरा

कुछ बुनियादी समस्याओं से निपटना सभी राजनीतिकदलों एवं सामाजिक संगठनों की जिम्मेदारी   है । इस संदर्भ में सभी पक्षों से यह उम्मीद की जा सकती है कि जीवनमरण के इन प्रश्नों को विवादित न होने दिया जाए । इसके बाद ही इनका ठीक समाधान सामने आ सकता है ।
लोकतंत्र में पक्ष-विपक्ष में मतभेद होना और कई बार इनका बहुत तीखा हो जाना स्वाभाविकहै । इसके बावजूद राष्ट्रीय हित में यह जरूरी है कि कुछ बुनियादी मुद्दों पर व्यापक सहमति बना कर दीर्घकालीन नीति बनाई जाए । फिर चाहे सत्ता बदले या मंत्री, व्यापक सहमति के  इन मुद्दों पर कार्य तेजी से आगे बढ़ता रहना चाहिए ।
मातृ, शिशु व बाल मृत्युदर में महत्वपूर्ण कमी लाना एक ऐसा ही उद्देश्य है जिस पर व्यापक सहमति बनाना जरूरी है। इस उद्देश्य को सरकारी कार्यक्रमों में प्राथमिकता तो मिल चुकी है और इस वजह से कई जगह अच्छे परिणाम भी आने लगे  हैं । परन्तु कुल मिलाकर देखें तो इस उद्देश्य को प्राप्त करने में अभी कई बाधाएं हैं । इसके लिए स्वास्थ्य, पोषण, पेयजल व स्वच्छता कार्यक्रमों में जो बुनियादी आधार मजबूत करना है, उसे न कर शार्टकट अपनाए जा रहे हैं । स्वास्थ्य व पोषण के लिए बजट की कमी बनी रहती है । 
अधिकांश प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र बुरे हाल में हैं। पोषण कार्यक्रमों में भी कई बड़ी कमियां हैं। इन सब को ठीक किए बिना स्वास्थ्यकर्मियों पर दबाव बनाया जाता है कि आंकड़े ठीक रहने  चाहिए । इस कारण मातृ व बाल मृत्यु दर तेजी से कम करने का जो बुनियादी आधार चाहिए, वह देश के बड़े भाग में हम प्राप्त नहीं कर सके हैं । 
एक अन्य बड़ा मुद्दा है कि जो भी राष्ट्रीय धरोहरंे तेजी से लुप्त हो रही हैं, उसके लिए सब आपस में मिलकर प्रयास करें । यह ऐसा कार्य है जिसमें और अधिक देरी बहुत महंगी सिद्ध होगी । इसमें सबसे महत्वपूर्ण कार्य है परंपरागत विविधता भरे बीजों की रक्षा करना । जब भविष्य में किसी भी बुनियादी कृषि सुधार के लिए कार्य होगा तो परंपरागत बीजों पर आधारित जैव-विविधता की बहुत जरूरत पडेग़ी । केवल धान की ही ऐसी हजारों किस्में व उप-किस्में हमारे यहां थीं जो अब नहीं मिल रही हैं । इन्हें केवल जीन-बैंकों में बचाना पर्याप्त नहीं है किसानों के खेतों में भी इन्हें बचाना चाहिए । इनके साथ जो बहुत सा परंपरागत कृषि ज्ञान जुड़ा है उसे बचाना भी जरूरी है । इसके अतिरिक्त लुप्त हो रहीं अनेक प्रकार की दस्तकारियों व लोक कलाओं की रक्षा जरूरी है । अन्यथा न दस्तकारी बचेगी न कला ।
हाल के वर्षों में कुछ ऐसी तकनीकें व परियोजनाएं चर्चित हुई हैं  जिनसे भविष्य में गंभीर दुष्परिणामों की संभावना है । जीएम या जेनेटिकली मोडीफाइड (जीनसंवर्धित) फसलों की तकनीक का कड़ा विरोध विश्व के अधिकांश देशों में इस आधार पर हो रहा है कि इसके स्वास्थ्य व   पर्यावरण पर बहुत प्रतिकूल असर होंगे । देश की बहुत सी नदियों को आपस में जोड़ने की योजना के बारे में अनेक पर्यावरणविदों व नदियों के विशेषज्ञों ने कहा है कि इससे असहनीय क्षति होगी । 
इस तरह के  जो असहनीय व स्थाई दुष्परिणामों की संभावना वाले बड़े मुद्दे हैं, उनके बारे में जरूरी है कि जल्दबाजी में कोई निर्णय न  हो । सभी पक्षों की बात को बहुत सावधानी से सुना जाए व उपलब्ध जानकारियों को निष्पक्षता से देखा जाए ।
भूमंडलीकरण के दौर में अंतर्राष्ट्रीय समझौतों की भूमिका बढ़ती जा रही है, फिर चाहे यह व्यापार के समझौते हों या जलवायु बदलाव संबंधी मामले हों। इन समझौतों का हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता पर या जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय लेने की क्षमता पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ना चाहिए । साथ में जो सही अन्तर्राष्ट्रीय जिम्मेदारियां हैं(जैसे ग्रीनहाऊस गैस उत्सर्जन कम करना) वह हमें निभानी चाहिए । इस आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों पर व्यापक सहमति बननी चाहिए ताकि अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर राष्ट्रीय हित की बात मजबूती से रखी जा सके ।
सड़क दुर्घटनाओं सहित सभी तरह की दुर्घटनाओं को कम करने का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा है जिस पर असरदार कार्य कर लाखों लोगों का जीवन प्रतिवर्ष बचाया जा सकता    है । यातायात की दुर्घटनाएं हों या कार्यस्थल की दुर्घटनाएं या अन्य दुर्घटनाएं, इनकी संख्या में ५० प्रतिशत कमी मात्र पांच वर्षों के  प्रयास से हो सकती हैं । 
विवाद तो चलते ही रहेंगे पर बाल व मातृ मृत्यु दर कम करने, सभी तरह की दुर्घटनाएं कम करने जैसे कई मुद्दे हैंजिन पर व्यापक सहमति बनाकर, आपस में सहयोग कर तेजी से आगे बढ़ना चाहिए । इस तरह के सहयोग से देश का राजनीतिक माहौल  ठीक करने में व जमीनी स्तर पर लोगों का आपसी सहयोग बढ़ाने में भी बहुत मदद मिलेगी ।

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