सम्पादकीय
नीति आयोग बनाएगा गरीबी का नया पैमाना
मोदी सरकार उस तरीके को खत्म करने जा रही है, जिसके तहत प्रति व्यक्ति मासिक उपयेाग व्यय के आधार पर गरीबी रेखा तय होती है । गरीबी रेखा तय करने का यह आधार थोड़े बहुत बदलाव के साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू के जमाने से चल रहा है ।
गरीबी उन्मूलन पर नीति आयोग के टास्क फोर्स की रिपोर्ट शीघ्र आने की संभावना है, कहा जा रहा है कि इसमें गरीबी की एक व्यावहारिक परिभाषा भी होगी । फिलहाल गरीबी रेखा नेशल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण के आधार पर तय होती है । टॉस्क फोर्स विचार कर रही है कि क्यों न इस सर्वे की जगह सामाजिक, आर्थिक एवं जातिगत जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाया जाए । क्या बहु-सूचको के आधार पर गरीबी का पैमाना तय किया जा सकता है ?
अब तक योजना आयोग गरीबी रेखा और गरीबों की संख्या तय करता था । लेकिन उसका उत्तराधिकारी नीति आयोग यह काम नहीं करेगा । कुछ लोगों का मानना है कि नीति आयोग के अलावा कोई अन्य संस्था इस काम को कर सकती है, जैसे भारतीय सांख्यिकीय आयोग । सरकार के अलग-अलग कार्यक्रमों के लिए गरीबी का पैमाना भी भिन्न होगा और यह कई मानकों के आधार पर तय होगा ।
गरीबी रेखा तय करने की शुरूआत योजना आयोग ने १९६२ में एक कार्यकारी समूह बनाकर की थी । इसने प्रचलित मूल्यों के आधार पर प्रति व्यक्ति २० रूपये मासिक उपभोग व्यय का गरीबी रेखा माना था । वर्ष १९७९ में अलघ समिति ने गांवों में ४९ रूपये तथा शहरों में ५६.६४ रूपये प्रति व्यक्ति मासिक व्यय को गरीबी रेखा माना । वर्ष २००९ में तेंदुलकर समिति ने गांवों में ४४७ रूपये तथा शहरों में ५७९ रूपये की गरीबी रेखा तय की । वर्ष १९९३ में लकड़ावाला समिति ने गांवों में २०५ रूपये तथा शहरों में २८१ रूपये प्रति व्यक्ति खर्च को गरीबी रेखा माना था ।
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