मंगलवार, 19 जनवरी 2016

जनजीवन
भूकम्प क्षेत्रों का पुननिर्धारण
डॉ. ओ.पी. जोशी
    विकास की आधुनिक अवधारणा के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन का दानव अब पृथ्वी और आकाश के बाद पाताल लोक में भी पहुंच गया है । भारत के तमाम हिस्से जो पहले सामान्यतया भूकम्परोधी माने जाते थे अब भूकम्प के प्रति संवेदनशील होते जा रहे हैं । यह हमारे भविष्य की पीढ़ियों व वर्तमान आधारभूत संरचना के लिए अत्यंत खतरनाक है ।
    भारत विश्व के उन पांच देशों में शामिल है जहां भूगर्भीय आपदाओं का सबसे ज्यादा खतरा है । ब्यूरो आफ इंडियन स्टंेडर्ड के अनुसार देश को पांच भूकम्पीय क्षेत्रों (जोन) में बांटा गया था । परंतु बाद में किये गये अध्ययनों के आधार पर चार जोन ही रह गये । वर्ष २००५ में भूगर्भ वैज्ञानिकों ने बताया कि देश का कोई भी हिस्सा जोन एक में नहीं है । 
     पहले देश का निचला हिस्सा यानी दक्षिण भारत के कुछ भागों को जोन एक में रखा गया था । वर्तमान में केवल २ से ५ तक जोन हैं। जोन दो, जिसे सबसे कम खतरे वाला माना जाता है, अब दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्र शामिल हैं। जोन तीन, जहां झटके आने की सम्भावना बनी रहती है, उसमें देश के मध्य भाग को रखा गया है। जोन चार, जहां खतरा लगातार बना रहता है, उसमें उत्तर भारत सहित दिल्ली व तराई के क्षेत्र शामिल हैं । जोन पांच के अंतर्गत भूकम्प के हिसाब से माने जाने वाले सबसे खतरनाक हिमालयीन क्षेत्र, पूर्वीतट क्षेत्र एवं कच्छ आते हैं ।
    दक्षिण भारत को भूकम्प के संदर्भ में सुरक्षित समझे जाने वाली अवधारणा कोउस क्षेत्र में आए भूकम्पों ने गलत साबित कर दिया है। ११ दिसम्बर १९६७ को जब भूकम्प आया तो वैज्ञानिक आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि तब तक यह माना जाता था कि यह इलाका भूगर्भीय गतिविधियों से सुरक्षित है । पश्चिमी तटीय क्षेत्र भी भूकम्प के संदर्भ मंे अब उतना सुरक्षित नहीं है जितना कि माना जाता था । यहां वर्ष १५९८ से लेकर १८३२ तक १० भूकम्पांे का वर्णन मिलता है। वर्ष १७५७ व वर्ष १७६४ के भूकम्प महाबलेश्वर के क्षेत्र में आये थे ।
    सितम्बर १९९३ में महाराष्ट्र के लातूर तथा उस्मानाबाद में आये भयानक भूकम्प पर बैंगलूर के सेंटर फार मेथेमेटिक्स के वैज्ञानिक प्रो. विनोद गौड़ ने बताया था कि ``लातूर के भूकम्प ने प्रचलित मान्यताओं को हिलाकर रख दिया है जिससे साबित होता है कि भारतीय महाद्वीप में कहीं भी ६.५ तीव्रता का भूकम्प आ सकता है अर्थात कन्याकुमारी से हिमालय तक फैला देश भूकम्प का शिकार बन सकता  है ।``
    इस भूकम्प ने स्पष्ट कर दिया कि दक्षिण भारत का क्षेत्र भी अब स्थायी एवं सुरक्षित नहीं है। दिसम्बर २००४ में आयी सुनामी ने भी कई पुरानी प्रचालित मान्यताओं को बदल दिया । इस समय देश विदेश के प्रसिद्ध भू-वैज्ञानिकांे तथा भूकम्प विशेषज्ञों ने बताया था कि भारतीय प्लेट भूकम्प के हिसाब से ज्यादा सक्रिय हो गई है जिसका लगातार अध्ययन कर निगरानी रखना  जरुरी हो गया है। भूकम्प कोई भौगोलिक सीमा नहीं मानता अत: इस समस्या से जुड़े देशों को संयुक्त रूप से अध्ययन व निगरानी का कार्य करना चाहिए । ९.३ तीव्रता की सुनामी के तीन माह बाद उसी स्थान पर ८.६ तीव्रता का भूकम्प आया एवं वर्ष २००५ में ७.६ तीव्रता का भूकम्प फिर भारत व पाकिस्तान में आया ।
    वर्ष २००९ में पूर्वोतर क्षेत्र में प्रत्येक दस दिन में भूकम्पीय झटकें आये एवं भूगर्भीय हलचल तेज हुई । शिलांग स्थित संेट्रल सिस्मोलाजिकल आब्जर्वेटरी के अनुसार इस क्षेत्र में पिछले २५ वर्षोंं में हल्के व मामूली तीव्रता के ३४ झटके आये । इसी संस्थान के आकलन के अनुसार वर्ष २००५, २००६ एवं २००७ में क्रमश: ३८, २३ एवं २६ कंपन महसूस किये गये । अप्रैल २०१५ में नेपाल में आया भूकम्प तथा २४ अक्टूबर २०१५ को पाकिस्तान व अफगानिस्तान में आया ७.८ तीव्रता का भूकम्प प्लेट की सक्रियता बढ़ने को दर्शाते हैं । तिरुवनंतपुरम स्थित सेंटर फार अर्थ साइंस के प्रो. सी.पी. राजेन्द्रन ने भी प्लेट की सक्रियता बढ़ने को सही बताते हुए देश भर में सतर्कता रखने हेतु कहा था ।
    अप्रैल २०१५ में नेपाल में आये विनाशकारी भूकम्प के संदर्भ में आय.आय.टी. खडगपुर के भूकम्प वैज्ञानिकक  प्रो. एस. के. नाथ ने कहा था कि ``भूगर्भीय संरचनाओं में आ रहे बदलाव के कारण भूकम्प के क्षेत्रों का फिर से निर्धारण करना जरुरी हो गया है । कल तक देश के जो शहर भूकम्प के जोन तीन में थे वे आज जोन चार में हो सकते हैं ।
    वैसे भी भूकम्प मानव द्वारा बनाये नियम, कानून या जोन आदि को नहीं मानता । कुछ वर्षों पूर्व तक दक्षिण भारत सुरक्षित था परंतु अब नहीं रहा । भविष्य मंे यह भी हो सकता है कि पूरा देश ही भूकम्प के प्रति संवदेनशील हो जाए । अभी देश में विकास की आंधी चल रही है, स्मार्ट शहर बनाये जा रहे हैं, मेट्रो रेल परियोजनाओं की डी.पी.आर. बन रही है, विदेशी पूंजी निवेश कई क्षेत्रों मेंे बढ़ रहा है, कस्बे नगर व नगर महानगर बन रहे हैं एवं इंडिया डिजीटल हो रहा है। इन सभी में भूकम्प की सम्भावनाओं को प्राथमिकता देना जरुरी है ।``

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