मंगलवार, 19 जनवरी 2016

सम्पादकीय
नये साल में नये वायरस की चुनौती
     विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक युगांडा के जाइका जंगलोंमें खोजे गए जाइका वायरस पर नियंत्रण वर्ष २०१६ की प्रमुख चुनौती होगी । यह वायरस मच्छरों के माध्यम से फैलता है । दरअसल यह वायरस १९४७ में खोजा गया था और अफ्रीका तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में इसकी वजह से छिटपुट प्रकोप होते रहे हैं ।
    अलबत्ता, पिछले १० वर्षो में प्रशांत सागर के कईद्वीपों पर इय वायरस ने रोग फैलाया है । जैसे २००७ में याप द्वीप के ८० प्रतिशत लोग जाइका के संक्रमण की चपेट में आए थे । पिछले साल ब्राजील में हमला करने के बाद यह नौ और देशों में पहुंच गया है । विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिलवियन एल्डीगिएरी का मत है कि यह वायरस जिस तेजी से फैल रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि स्वास्थ्य सेवाआें को इसके लिए तैयार हो जाना चाहिए और इसके मामलों की सख्त निगरानी की जानी चाहिए ।
    वयस्क लोगों में यह वायरस शरीर पर चकते पैदा करता है जो दर्दनाक तो होते हैं मगर अस्थायी ही होते हैं । इस लिहाज से इसके लक्षण बहुत गंभीर नहीं है । मगर यह माना जा रहा है कि यह वायरस अजन्मे बच्चें में मस्तिष्क को क्षति पहुंचा सकता है । एम्सटरडम विश्वविघालय के कटिबंधीय व सफरी चिकित्सा केन्द्र के अब्राहम गुरहुइस का कहना है कि वैसे अभी तक जाइका के संक्रमण और अजन्मे बच्चेंमें मस्तिष्क क्षति का परस्पर संबंध प्रमाणित नहीं हुआ है मगर ब्राजील और पोलीनेशिया में जहां भी वायरस का प्रकोप हुआ है, वहां मस्तिष्क के विकारों में नाटकीय वृद्धि देखी गई है । इसका मतलब है कि गर्भवती महिलाआें को खास सावधानी बरतनी चाहिए और मच्छरों से बचने का हर संभव प्रयास करना चाहिए ।
    अन्य ऐसे वायरस प्रकोपों के समान ही इसका भी कोई इलाज नहीं है और न ही टीका उपलब्ध है । इसके प्रसार को रोकने का प्रमुख उपाय भी कई अन्य बीमारियों जैसा ही है । मच्छरों के प्रजनन स्थलों पर नियंत्रण किया जाए, मच्छरों की आबादी को न बढ़ने दिया जाए और मच्छर काटने से बचा जाए, इसी में समझदारी है ।

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