मंगलवार, 19 जनवरी 2016

स्वास्थ्य
बच्चो में मिट्टी खाने की आदत
डॉ. अरविन्द गुप्त्

    बच्च्े मिट्टी खाते ही क्यों है ? इसका सीधा सा जवाब यह है कि दो वर्ष तक की उम्र के बच्च्े अपने आसपास के वातावरण की छानबीन करते हैं, उसके बारे में सीखते रहते हैं ।
    इसी छानबीन का एक तरीका है हर चीज का स्वाद चखना । यह एक  बहुत सामान्य सी बात है कि एक छोटे बच्च्े के हाथ में जो भी चीज पड़ जाती है उसे वह सबसे पहले मुंह में डालता है । यही क्रिया वह मिट्टी के साथ भी करता है । आम तौर पर दो वर्ष की आयु के बाद बच्च्े की यह आदत अपने आप छूट जाती है । वैसे कई बच्चें की मिट्टी खाने की आदत वयस्क होने के बाद भी नहींछूटती । ऐसे लोग मिट्टी के अलावा दीवार पर पेन्ट या प्लास्टर, चॉक, सिगरेट की राख, प्लास्टर सिगरेट के ठंूठ, म, गोंद, बाल, बटन आदि कई प्रकार की चीजें खाते हैं । गर्भवती महिलाआें को भी कभी-कभी मिट्टी खाने की इच्छा होती है, किन्तु प्रसव के बाद यह आदत प्राय: छूट जाती है । 


     अभी केवल छोटे बच्चें की ही बात की जाए ।
    यह माना जाता है कि मिट्टी खाना पूरी तरह हानिकरक नहीं है और इसके निम्नलिखित फायदे होते है :-
१. प्रतिरक्षा तंत्र का विकास - मिट्टी में कई प्रकार के बैक्टीरिया पाए जाते है । जब ये बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश करते हैं तब शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करने के लिए प्रतिरक्षी (एंटीबॉडीज) बनाता है जो शरीर में लंबे समय तक बने रहते हैं और उसी प्रकार के बैक्टीरिया के फिर से शरीर में आने पर उन्हें नष्ट कर देते हैं । विकसित देशों में स्वच्छता पर बहुत अधिक जोर दिया जाता है और पूरे पर्यावरण को इतना साफ रखा जाता है कि वहां के बच्चें का प्रतिरक्षा तंत्र बैक्टीरिया से परिचित नहीं हो पाता । यही कारण है कि इन देशों से भारत और अन्य विकासशील देशों में आने वाले व्यक्तियों को खानपान में काफी सावधानी बरतनी पड़ती है अन्यथा वे बैक्टीरिया से होने वाली पेट की बीमारियों का शिकार हो जाते है ।
२. लाभदायक बैक्टीरिया का शरीर में प्रवेश - मनुष्य की आहार नाल में सैकड़ों प्रकार के बैक्टीरिया रहते हैंऔर मिट्टी में भी लाभदायक और हानिकारक बैक्टीरिया होते हैं । आहार नाल में रहने वाले कुछ बैक्टीरिया शरीर के लिए आवश्यक विटामिन्स का निर्माण करते हैं । मिट्टी से इस प्रकार के कुछ लाभदायक बैक्टीरिया भी बच्च्े की आंत में पहुंच जाते हैं ।
३. खनिज पदार्थ - शरीर के लिए कई प्रकार के खनिज पदार्थ आवश्यक होते हैं । वयस्क व्यक्तियों को ये खनिज पदार्थ भोजन से मिल जाते हैं, किन्तु छोटे बच्चें के लिए मिट्टी खनिज पदार्थो का महत्वपूर्ण स्त्रोत होता है ।
    मिट्टी खाने के जिन फायदों का विवरण ऊपर दिया गया है वे मुख्य रूप से विकसित देशों के लिए लागू होते हैं । विकासशील देशों में स्थिति कुछ अलग होती है । यहां स्वच्छता की काफी कमी होती है । मिट्टी में पालतू जानवरों और प्राय: जंगली पशुआें का मल बड़ी मात्रा में मिला होता है । भारत को ही देखे तो यहां गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी आदि जन्तुआें को घरों में पाला जाता है और इनका मल प्राय: मिट्टी में मिल होता है जिसमें कई प्रकार के हानिकारक जीव और उनके अंडे रहते हैं । इनका आहार नाल में पहुंचना बहुत हानिकारक होता है ।
    अमेरिका के जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविघालय के शोधकर्ताआेंने जिम्बाम्बे में किए गए अपने अध्ययन में पाया कि वहां ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश घरों में मुर्गियां पाली जाती हैं । इन मुर्गियों का मल घरों के आसपास की मिट्टी में मिल जाता    है । इस मल में पाए जाने हानिकारक सूक्ष्मजीव मिट्टी खाने वाले बच्चें की आंत की आंतरिक सतह पर पाए जाने वाले उभारों को नष्ट कर देते हैं और वहां की कोशिकाआें के बीच के जोडों को कमजोर कर देते हैं ।
    इसके दो प्रकार के परिणाम होते हैं । इन उभारों के कारण आंत की आंतरिक सतह का क्षेत्रफल बढ़ता है और पचे हुए भोजन से पोषक पदार्थो का अधिक से अधिक अवशोषण शरीर में होता है । उभारों के नष्ट होने के कारण शरीर को पोषक पदार्थ पर्याप्त् मात्रा में नहीं मिल पाते । इसी प्रकार, आंत की कोशिकाआें के जोड़ कमजोर होने से मिट्टी के साथ आए हुए कई प्रकार के हानिकारक सूक्ष्मजीव इन कमजोर जोड़ों से होते हुए आंत से रक्त के प्रवाह में पहुंच जाते हैं और प्रतिरक्षा तंत्र को उत्तेजित कर देते हैं । फलस्वरूप पोषक पदार्थ वहां नहीं पहुंच पाते जहां उनकी आवश्यकता होती है ।
    इस संक्रमण से शरीर में साइटोकाइनिन नाम पदार्थ बनते हैं जो शरीर की वृद्धि के लिए आवश्यक  हारमोन्स का उत्पादन रोक देते हैं । इन सबका परिणाम यह होता है कि बच्चें के शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के विकास धीमे हो जाते हैं । इन बच्चें की न केवल कदकाठी छोटी रह जाती है, बल्कि ये पढ़ाई में भी पिछड़ जाते हैं । इसी प्रकार के अवलोकन इथिओपिया से भी प्राप्त् हुए है ।
    भारत में गायों, सूअरों और कुत्तों का मल प्राय: बिखरा रहता    है । इनके मल में कई हानिकारक जीव पाए जाते हैं जो मिट्टी के साथ आहार नाल में पहुंचने पर कई प्रकार के रोगों का कारण बनते हैं । हमारे देश में एक अतिरिक्त समस्या खुले में शौच की है । मनुष्य की आंत में पाए जाने वाले कृमियों के अंडे मल के साथ बाहर आते हैं और मिट्टी, पानी और खाद्य पदार्थो में मिल जाते हैं ।
    इसका परिणाम यह होता है कि भारत में बड़ी संख्या में बच्च्े कृमियों से संक्रमित है । चूंकि आंत में रहने वाले कृमिपचे हुए भोजन का बड़ा हिस्सा चट कर जाते हैं, बच्च्े द्वारा भरपेट भोजन करने के बाद भी उसे पर्याप्त् पोषक पदार्थ नहीं मिल पाते । वह कुपोषित हो जाता है और उसकी शारीरिक और मानसिक वृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । आंत के कृमि भारत में बच्चें में कुपोरण का एक बड़ा कारण है । चूंकि हमारे देश में पीने के पानी और खाद्य पदार्थो के साथ पर्याप्त् सूक्ष्मजीव आहार नाल में आ जाते हैं, मिट्टी से मिलने वाले अतिरिक्त सूक्ष्मजीवों से बच्चें को हानि हो होती है ।
    हमारे देश के कईभागों में मिट्टी में आर्सेनिक और सीसे के समान विषैले रसायन बहुतायत से पाए जाते हैं । पीने के पानी और खाद्य पदार्थो के साथ ये शरीर में पहुंचते ही हैं, मिट्टी खाने से इनकी अतिरिक्त मात्रा शरीर में पहुंचती है । इसी प्रकार रासायनिक कारखानों, पेट्रोल पंपो, कपड़ों की रंगाई और चमड़े की कमाई करने वाले, कीटनाशक बनाने वाले कारखानों आदि से भी विषैले पदार्थ निकल कर आसपास की मिट्टी में मिलते रहते हैं ।
    विकसित देशों में कई डॉक्टर यह मानते हैं कि बच्चें का मिट्टी खाना उनके प्रतिरक्षा तंत्र का मजबूत बनाता है, किन्तु भारत और उसके समान विकासशील देशों में, जहां सफाई के मानक काफी शिथिल हैं, बच्चें का मिट्टी खाना कुल मिलाकर हानिकारक ही होता है ।

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