पर्यावरण परिक्रमा
बदलते पर्यावरण का बढ़ता प्रकोप
पिछले दिनों सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की जारी रिपोर्ट बॉडी बर्डन २०१५ : स्टेट ऑफ इडियाज हेल्थ में देश की बिगड़ती आबोहवा का इंसानी स्वियास् पर पड़ने वाले नकारात्मक असर को लेकर गंभीर चिंता व्यकत् की गई है । रिपोर्ट बताती है कि पर्यावरण में परिवर्तन से जन स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली आपदाआें में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है । इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन में मौसमी दशाआें की तीव्रता और डेगू मलेरिया जैसी बीमारियों में बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है ।
जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न हो रही अति मौसमी दशाआें के कारण जीवाणु और विषाणु जनित बीमारियां बारंबार महामारी का रूप ले रही है ।
देश में ३.५ करोड़ भारतीय हर साल जलजनित बीमारियों का शिकार होते है । कुपोषण : २६ प्रतिशत रिपोर्ट के मुताबिक जल, साफ-सफाई और कुपोषण के बीच संबंध है । २०१५ में सहस्त्रादी विकास लक्ष्यों (एमडीजी) में देश में कुपोषितों की संख्या घटकर २६ प्रतिशत करने का लक्ष्य था लेकिन अभी भी देश इस लक्ष्य से सात प्रतिशत पीछे है ।
देश की आबादी में विटामिन और खनिज तत्वों की कमी से जीडीपी के १२ अरब डॉलर का नुकसान होता है । देश में १५ लाख बच्च्े केवल डायरिया से ही हर साल मर जाते हैं । जलजनित बीमारियों से उत्पन्न होने वाले रोगों से कार्य दिवसों का नुकसान होता है । पशु जनित बीमारियां पिछले ७० वर्षो मे पशुआें में होने वाली तकरीबन ३०० बीमारियां इंसानों को संक्रमित कर रही है । २७ लाख इन बीमारियों की वजह से सालाना मरने वाले लोगों की संख्या है ।
चीन में ताजी हवा बेची जा रही है चीन में बढ़ता प्रदूषण सबकी चिंता का कारण बना हुआ है लेकिन कनाड़ा की एक कंपनी इसको कैश करने में लग गई है । ये कंपनी लोगों को ताजा पर्वतीय हवा से भरी बोतलें बेच रही हैं, जिसकी कीमत करीब १,८७० रूपये (२८ डॉलर) है। कनाडा के बैंफ और लेक लुईस से ताजी हवा लाने का दावा करती ये बोतलें चीन में लोगों का ध्यान खींच रही है और इन्हें खरीदने के लिए अभी से होड़ शुरू हो चुकी है । वाइटैलिटी एयर नाम की कंपनी प्रीमियम ऑक्सिजन की बोतल के लिए करीब १८७० रूपये वसूल रही है, जबकि बैंकएयर की बोतल के लिए लोगों को करीब १६०० रूपये देने पड़ रहे हैं ।
चीन में वाइटैलिटी एयर के रीप्रेजेटेटिव हैरिसन वैंग ने बताया कि जैसे ही चीन की बेवसाइट टाओबा पर बोतलों को बेचने के लिए रखा गया, उन्हें तुरन्त खरीद लिया गया । कंपनी ने करीब दो महीने पहले चीने में इन बोतलों की मार्केटिंग शुरू की थी । ५०० बोतलों की बिक्री हो चुकी है, जबकि ७०० बोतलों की शिपिंग की जा रही है । वैंग ने बताया कि चीन में प्रदूषण उनकी कंपनी के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है और वो चाहते है कि लोगों को ताजी हवा में सांस लेने का मौका मिले । वाइटैलिटी एयर अकेली ऐसी कंपनी नहीं है जो चीन के प्रदूषण को कैश कर रही है बल्कि यहां के एक रेस्त्रां ने हाल ही मेंएयर फिल्टरेशन मशीनें लगाई है ।
बीजिंग में प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने के बाद दिसम्बर में यहां रेड अलर्ट जारी कर दिया गया है । कुछ वक्त के लिए स्कूल को बंद और निर्माण कार्यो को रोक दिया गया है । कुछ ही गाड़ियां सड़कों पर उतर रही है और लोगों को घरों के अंदर ही रहने की हिदायत दी गई है । शंघाई में जनवर की शुरूआत से ही स्मॉग की समस्या बड़े स्तर पर है ।
अब खेत में बिजली बन सकेगी
अगर सबकुछ सही रहा तो मध्यप्रदेश के किसान आने वाले समय में खेत में फसल के साथ बिजली उत्पादन भी करेंगे । इसके लिए सरकार तीन साल में ५ हजार करोड़ खर्च करने वाली है । किसानों को सौर ऊर्जा की ५ हॉर्सपॉवर की यूनिट पर ८० प्रतिशत सबसिडी देंगे । इससे वे खेतों में ही बिजली तैयार कर सकेंगे ।
खेतों में सौर ऊर्जा से बिजली तैयार होने पर बिजली कटौती से होने वाली समस्याआें से छुटकारा मिल जाएगा । इस यूनिट से उन्हें ७५ साल तक मुफ्त बिजली मिलेगी । यूनिट की प्लेटों की २५ साल की गांरटी होने से रखरखाव खर्च नहीं उठाना पड़ेगा । ५ से ६ लाख रूपये में युनिट पंप, पाइप, र्स्टाटर उपलब्ध है । किसान को बोरिंग करवाना पड़ेगा ।
५ हॉसपॉवर का पंप सीधे सोलर प्लेट से कनेक्ट रहेगा, जिसके बीच में चार्ज कंट्रोलर लगेगा । चार्ज कंट्रोलर सूर्य की घटती-बढ़ती तपन के हिसाब से करंट की सप्लाई देगा । पंप के साथ स्टार्टर लगा होगा, जिससे आवश्यकता होने पर पंप को बिजली दी या बंद की जा सकेगी ।
अगल तीन वर्षो के लिए सरकार दो तरह की योजना बना रही है । एक तो जो किसान अस्थायी लेते हैं उन्हें स्थायी कनेक्शन दिया जाएगा । दूसरी योजना खेतों में सोलर एनजी यूनिट लगाने की है । इच्छुक सभी किसानों को प्रदेश सरकार सहकारी बैंक से जोड़ेगी, वहा उनका पंजीयन होगा ।
पूरे मामले में उन्हें ८० प्रतिशत तक सबसिडी मिलेगी, यानी यदि ६ लाख का प्रोजक्ट हुआ तो ४.८० लाख रूपये का अनुदान मिलेगा । इस प्रकार किसान की जेब से १.२० लाख रूपये ही खर्च होंगे । वह भी सहकारी बैंक से कर्ज पर उपलब्ध होंगे ।
अमीर लोग सबसे ज्यादा उज२ पैदा करते हैं
ब्रिटिश संस्था ऑक्सफैम की रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया के सबसे अमीर १० प्रतिशत लोग ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में से ५० प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं । यानी जीवाश्म ईधन को जलाकर धरती को गर्म करने वाली गैसों के कुल उत्सर्जन में से आधा तो ये १० प्रतिशत लोग पैदा करते हैं । और सबसे गरीब लोग (आबादी का ५० प्रतिशत) मात्र १० प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है ।
यह तो लंबे समय से विवाद का विषय रहा है कि धरती को गर्म करने वाली जो गैंस बहुत अधिक मात्रा में वातावरण में पहुंच रही है, उसके लिए किसे दोषी ठहराया जाए । ऑक्सफैम के जलवायु नीति के अध्यक्ष टिम गोरे का मत है कि जो लोग सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैस पैदा करते हैं, उन्हीं को इसके लिए जवाबदेह माना जाना चाहिए और ये दुनिया के सबसे अमीर १० प्रतिशत लोग हैं । रिपोर्ट के मुताबिक सबसे अमीर १ प्रतिशत लोगों में औसतन प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन सबसे निचले पायदान पर रहने वाले १० प्रतिशत लोगों के औसत कार्बन उत्सर्जन से पूरे १७५ गुना ज्यादा है।
जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याआें में जवाबदेही के मामले में अमीर और गरीब देशों के बीच काफी विवाद रहा है । मूलत: कोयला, तेल और गैस जलाने की वजह से पैदा होने वाली कार्बन डाईऑक्साइड की जिम्मेदारी के मामले में विकासशील देशों का कहना है कि औघोगिक देशों ने अधिकांश प्रदूषण फैलाया है और उन्हें इसकी क्षतिपूर्ति करनी चाहिए । विकासशील देशों की एक मांग यह भी है कि औघोगिक देशों को धरती गर्माने के प्रभावों से निपटने में गरीब राष्ट्रों की मदद करनी चाहिए क्योंकि ये प्रभाव औघोगिक देशों की करतूतों के परिणाम है ।
मगर ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट होता है कि जहां राष्ट्रों के बीच जिम्मेदारी का बंटवारा होना चाहिए, वहीं राष्ट्रों के अंदर भी जिम्मेदारी को एकसार ढंग से बांटा नहीं जा सकता । यहां भी आबादी के अलग-अलग तबके अलग-अलग हद तक जिम्मेदार है ।
वैश्विक तापमान कम रखने का लक्ष्य
जलवायु परितर्वन सम्मेलन में समझौते का महत्वाकांक्षी मसौदा तैयार कर लिया गया है । इसके तहत विश्व के १९५ देशों को वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से काफी कम रखने में अपना अहम योगदान देना होगा । भारतीय प्रस्ताव के तहत इस समझौते का सबसे अहम पहलू यह है कि वर्ष २०२० से विकासशील देशों को इस पर्यावरण संकट से निपटने के लिए आर्थिक सहायता मिलेगी । फिलहाल पांच साल बाद प्रतिवष्र यह रकम १०० अरब डॉलर (लगभग ६७०० अरब रूपये) होगी । भारत ने मसौदे को संतुलित और दुनिया के लिए बेहतर बताया है ।
पेरिस में हुए ऐतिहासिक समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिग को २ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की चुनौती और भी कड़ी हो सकती है क्योंकि यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य आवश्यकतानुसार १.५ डिग्री सेल्सियस भी हो सकता है । हालांकि इतना कठिन लक्ष्य विकासशील देशों जैसे भारत और चीन को मंजूर नहीं होगा । यह दोनों देश चाहते है कि लक्ष्य को २ डिग्री सेल्सियस से कम का ही रखा जाए ताकि वह अपने प्राकृतिक संसाधनों जैसे कोयले का लंबे समय तक उपयोग कर सकें ।
बदलते पर्यावरण का बढ़ता प्रकोप
पिछले दिनों सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की जारी रिपोर्ट बॉडी बर्डन २०१५ : स्टेट ऑफ इडियाज हेल्थ में देश की बिगड़ती आबोहवा का इंसानी स्वियास् पर पड़ने वाले नकारात्मक असर को लेकर गंभीर चिंता व्यकत् की गई है । रिपोर्ट बताती है कि पर्यावरण में परिवर्तन से जन स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली आपदाआें में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है । इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन में मौसमी दशाआें की तीव्रता और डेगू मलेरिया जैसी बीमारियों में बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है ।
जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न हो रही अति मौसमी दशाआें के कारण जीवाणु और विषाणु जनित बीमारियां बारंबार महामारी का रूप ले रही है ।
देश में ३.५ करोड़ भारतीय हर साल जलजनित बीमारियों का शिकार होते है । कुपोषण : २६ प्रतिशत रिपोर्ट के मुताबिक जल, साफ-सफाई और कुपोषण के बीच संबंध है । २०१५ में सहस्त्रादी विकास लक्ष्यों (एमडीजी) में देश में कुपोषितों की संख्या घटकर २६ प्रतिशत करने का लक्ष्य था लेकिन अभी भी देश इस लक्ष्य से सात प्रतिशत पीछे है ।
देश की आबादी में विटामिन और खनिज तत्वों की कमी से जीडीपी के १२ अरब डॉलर का नुकसान होता है । देश में १५ लाख बच्च्े केवल डायरिया से ही हर साल मर जाते हैं । जलजनित बीमारियों से उत्पन्न होने वाले रोगों से कार्य दिवसों का नुकसान होता है । पशु जनित बीमारियां पिछले ७० वर्षो मे पशुआें में होने वाली तकरीबन ३०० बीमारियां इंसानों को संक्रमित कर रही है । २७ लाख इन बीमारियों की वजह से सालाना मरने वाले लोगों की संख्या है ।
चीन में ताजी हवा बेची जा रही है चीन में बढ़ता प्रदूषण सबकी चिंता का कारण बना हुआ है लेकिन कनाड़ा की एक कंपनी इसको कैश करने में लग गई है । ये कंपनी लोगों को ताजा पर्वतीय हवा से भरी बोतलें बेच रही हैं, जिसकी कीमत करीब १,८७० रूपये (२८ डॉलर) है। कनाडा के बैंफ और लेक लुईस से ताजी हवा लाने का दावा करती ये बोतलें चीन में लोगों का ध्यान खींच रही है और इन्हें खरीदने के लिए अभी से होड़ शुरू हो चुकी है । वाइटैलिटी एयर नाम की कंपनी प्रीमियम ऑक्सिजन की बोतल के लिए करीब १८७० रूपये वसूल रही है, जबकि बैंकएयर की बोतल के लिए लोगों को करीब १६०० रूपये देने पड़ रहे हैं ।
चीन में वाइटैलिटी एयर के रीप्रेजेटेटिव हैरिसन वैंग ने बताया कि जैसे ही चीन की बेवसाइट टाओबा पर बोतलों को बेचने के लिए रखा गया, उन्हें तुरन्त खरीद लिया गया । कंपनी ने करीब दो महीने पहले चीने में इन बोतलों की मार्केटिंग शुरू की थी । ५०० बोतलों की बिक्री हो चुकी है, जबकि ७०० बोतलों की शिपिंग की जा रही है । वैंग ने बताया कि चीन में प्रदूषण उनकी कंपनी के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है और वो चाहते है कि लोगों को ताजी हवा में सांस लेने का मौका मिले । वाइटैलिटी एयर अकेली ऐसी कंपनी नहीं है जो चीन के प्रदूषण को कैश कर रही है बल्कि यहां के एक रेस्त्रां ने हाल ही मेंएयर फिल्टरेशन मशीनें लगाई है ।
बीजिंग में प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने के बाद दिसम्बर में यहां रेड अलर्ट जारी कर दिया गया है । कुछ वक्त के लिए स्कूल को बंद और निर्माण कार्यो को रोक दिया गया है । कुछ ही गाड़ियां सड़कों पर उतर रही है और लोगों को घरों के अंदर ही रहने की हिदायत दी गई है । शंघाई में जनवर की शुरूआत से ही स्मॉग की समस्या बड़े स्तर पर है ।
अब खेत में बिजली बन सकेगी
अगर सबकुछ सही रहा तो मध्यप्रदेश के किसान आने वाले समय में खेत में फसल के साथ बिजली उत्पादन भी करेंगे । इसके लिए सरकार तीन साल में ५ हजार करोड़ खर्च करने वाली है । किसानों को सौर ऊर्जा की ५ हॉर्सपॉवर की यूनिट पर ८० प्रतिशत सबसिडी देंगे । इससे वे खेतों में ही बिजली तैयार कर सकेंगे ।
खेतों में सौर ऊर्जा से बिजली तैयार होने पर बिजली कटौती से होने वाली समस्याआें से छुटकारा मिल जाएगा । इस यूनिट से उन्हें ७५ साल तक मुफ्त बिजली मिलेगी । यूनिट की प्लेटों की २५ साल की गांरटी होने से रखरखाव खर्च नहीं उठाना पड़ेगा । ५ से ६ लाख रूपये में युनिट पंप, पाइप, र्स्टाटर उपलब्ध है । किसान को बोरिंग करवाना पड़ेगा ।
५ हॉसपॉवर का पंप सीधे सोलर प्लेट से कनेक्ट रहेगा, जिसके बीच में चार्ज कंट्रोलर लगेगा । चार्ज कंट्रोलर सूर्य की घटती-बढ़ती तपन के हिसाब से करंट की सप्लाई देगा । पंप के साथ स्टार्टर लगा होगा, जिससे आवश्यकता होने पर पंप को बिजली दी या बंद की जा सकेगी ।
अगल तीन वर्षो के लिए सरकार दो तरह की योजना बना रही है । एक तो जो किसान अस्थायी लेते हैं उन्हें स्थायी कनेक्शन दिया जाएगा । दूसरी योजना खेतों में सोलर एनजी यूनिट लगाने की है । इच्छुक सभी किसानों को प्रदेश सरकार सहकारी बैंक से जोड़ेगी, वहा उनका पंजीयन होगा ।
पूरे मामले में उन्हें ८० प्रतिशत तक सबसिडी मिलेगी, यानी यदि ६ लाख का प्रोजक्ट हुआ तो ४.८० लाख रूपये का अनुदान मिलेगा । इस प्रकार किसान की जेब से १.२० लाख रूपये ही खर्च होंगे । वह भी सहकारी बैंक से कर्ज पर उपलब्ध होंगे ।
अमीर लोग सबसे ज्यादा उज२ पैदा करते हैं
ब्रिटिश संस्था ऑक्सफैम की रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया के सबसे अमीर १० प्रतिशत लोग ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में से ५० प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं । यानी जीवाश्म ईधन को जलाकर धरती को गर्म करने वाली गैसों के कुल उत्सर्जन में से आधा तो ये १० प्रतिशत लोग पैदा करते हैं । और सबसे गरीब लोग (आबादी का ५० प्रतिशत) मात्र १० प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है ।
यह तो लंबे समय से विवाद का विषय रहा है कि धरती को गर्म करने वाली जो गैंस बहुत अधिक मात्रा में वातावरण में पहुंच रही है, उसके लिए किसे दोषी ठहराया जाए । ऑक्सफैम के जलवायु नीति के अध्यक्ष टिम गोरे का मत है कि जो लोग सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैस पैदा करते हैं, उन्हीं को इसके लिए जवाबदेह माना जाना चाहिए और ये दुनिया के सबसे अमीर १० प्रतिशत लोग हैं । रिपोर्ट के मुताबिक सबसे अमीर १ प्रतिशत लोगों में औसतन प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन सबसे निचले पायदान पर रहने वाले १० प्रतिशत लोगों के औसत कार्बन उत्सर्जन से पूरे १७५ गुना ज्यादा है।
जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याआें में जवाबदेही के मामले में अमीर और गरीब देशों के बीच काफी विवाद रहा है । मूलत: कोयला, तेल और गैस जलाने की वजह से पैदा होने वाली कार्बन डाईऑक्साइड की जिम्मेदारी के मामले में विकासशील देशों का कहना है कि औघोगिक देशों ने अधिकांश प्रदूषण फैलाया है और उन्हें इसकी क्षतिपूर्ति करनी चाहिए । विकासशील देशों की एक मांग यह भी है कि औघोगिक देशों को धरती गर्माने के प्रभावों से निपटने में गरीब राष्ट्रों की मदद करनी चाहिए क्योंकि ये प्रभाव औघोगिक देशों की करतूतों के परिणाम है ।
मगर ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट होता है कि जहां राष्ट्रों के बीच जिम्मेदारी का बंटवारा होना चाहिए, वहीं राष्ट्रों के अंदर भी जिम्मेदारी को एकसार ढंग से बांटा नहीं जा सकता । यहां भी आबादी के अलग-अलग तबके अलग-अलग हद तक जिम्मेदार है ।
वैश्विक तापमान कम रखने का लक्ष्य
जलवायु परितर्वन सम्मेलन में समझौते का महत्वाकांक्षी मसौदा तैयार कर लिया गया है । इसके तहत विश्व के १९५ देशों को वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से काफी कम रखने में अपना अहम योगदान देना होगा । भारतीय प्रस्ताव के तहत इस समझौते का सबसे अहम पहलू यह है कि वर्ष २०२० से विकासशील देशों को इस पर्यावरण संकट से निपटने के लिए आर्थिक सहायता मिलेगी । फिलहाल पांच साल बाद प्रतिवष्र यह रकम १०० अरब डॉलर (लगभग ६७०० अरब रूपये) होगी । भारत ने मसौदे को संतुलित और दुनिया के लिए बेहतर बताया है ।
पेरिस में हुए ऐतिहासिक समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिग को २ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की चुनौती और भी कड़ी हो सकती है क्योंकि यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य आवश्यकतानुसार १.५ डिग्री सेल्सियस भी हो सकता है । हालांकि इतना कठिन लक्ष्य विकासशील देशों जैसे भारत और चीन को मंजूर नहीं होगा । यह दोनों देश चाहते है कि लक्ष्य को २ डिग्री सेल्सियस से कम का ही रखा जाए ताकि वह अपने प्राकृतिक संसाधनों जैसे कोयले का लंबे समय तक उपयोग कर सकें ।
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