शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

सामयिक
जलवायु न्याय और पेरिस सम्मेलन
सुश्री जीनत मसूदी

    पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन की विभीषिका से निपटनेेके लिए जलवायु न्याय को एक नए उपकरण के रूप में देखा जा रहा    है । आज विकासशील देश ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में पीछे हैंलेकिन सर्वाधिक विपरीत व विनाशकारी प्रभाव उन्हीं पर पड़ रहे हैं। जलवायु न्याय का सिद्धांत उनके लिए मददगार सिद्ध हो सकता है बशर्ते अमेरिका सहित विकसित देश अपनी अन्यायपूर्ण व एकतरफा विकास नीतियों पर रोक लगाएं ।
    संंयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (यूनाइेटड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन आन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के अन्तर्गत हुआ पेरिस समझौता ऐसा पहला अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज है जिसमें जलवायु न्याय शब्द को शामिल किया गया है । 
     इसकी धारणा में उन तमाम संदर्भों को खोजा गया है, जिन्हें शुद्धत: कानूनी, आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में बांटा जा सकता  है । साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन के दृष्टिगोचर प्रभावों जिसमें सबसे महत्वपूर्ण अतीव मौसमी घटनाएं हैं, जिन्हंे जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों से जोड़ा गया है । उत्सर्जन के लिए समृद्ध एवं विकसित देशों में रहने वाले ज्यादा जिम्मेदार हैंबजाए विकासशील देशों के निवासियों के परंतु जलवायु संकट के सबसे गैर आनुपातिक प्रभाव वे ही महसूस कर रहे हैं । अतएव ``जलवायु न्याय`` शब्द को महत्व मिला और इसे वर्तमान पीढ़ी और भविष्य की पीढ़ी के लिए न्याय की गुहार मान लिया गया ।
    सन् १९९२ में ही यूएनएफसीसीसी ने यह समझ लिया था कि उन लोगों के साथ समानता का व्यवहार होना चाहिए जो कि जलवायु परिवर्तन में योगदान नहीं करते परंतु सबसे ज्यादा जोखिम में पड़े रहते हैं। हालांकि उस समय ``जलवायु न्याय`` शब्द का प्रयोग नहीं हुआ था परंतु यू एन एफ सी सी सी का दस्तावेज जलवायु न्याय के  सिद्धांत पर ही आधारित था । इसके दिशानिर्देश सिद्धान्तों में सभी पक्षों का वर्गीकरण किया गया था जिनकी भिन्न-भिन्न प्रकार की जवाबदेही बैठती है । इसमें साफ  कहा गया था कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का मुख्य स्त्रोत विकसित देश हंै और विकसित देशों में बढ़ता उत्सर्जन भी कमोवेश उनकी (विकसित देशों) आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही  है ।
    गौरतलब है यूएनएफसीसीसी ने चिंता जताते हुए कहा था कि विकासशील देशों की विशेष आवश्यकताओं पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि जलवायु परिवर्तन के  प्रतिगामी प्रभावों से वे ही सबसे ज्यादा जोखिम में रहते हैं। वैश्विक स्तर पर ग्रीन हाउस गैसों के स्तर में हो रही सतत् वृद्धि के दौर में उपरोक्त शब्द ``मसीहाई`` प्रतीत होता है । उदाहरणार्थ भारत के ६५ करोड़ लोग अपनी जीविका हेतु वर्षा आधारित खेती पर निर्भर हैं । यदि समुद्र के स्तर में १ मीटर की भी वृद्धि होती है तो बांग्लादेश के करोड़ों लोग विस्थापित हो जाएंगे । गरम हवाओं के बढ़ते थपेड़ों के चलते अरब क्षेत्र का बढ़ा क्षेत्र रहने लायक ही नहीं बचेगा । सबसे बुरा प्रभाव अफ्रीका महाद्वीप पर पडेग़ा जहां पर पानी का जबरदस्त संकट खड़ा हो रहा है और सन् २०२० तक फसलों की पैदावार में असाधारण कमी आ सकती है। जलवायु परिवर्तन के प्रतिगामी प्रभावों के चलते विकासशील देशों में विकास एवं गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम भी खटाई में पड़ सकते हंै ।
    इस पृष्ठभूमि के  मद्देनजर पेरिस समझौता महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि जलवायु संकट से निपटने में यह ``जलवायु न्याय`` की कुछ संकल्पनाओं को महत्वपूर्ण मानता   है । यह यूएनएफसीसीसी में निहित समानता एवं साझा परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियों एवं यथायोग्य क्षमताओं पर जोर दे रहा है। वास्तविकता यही है कि पेरिस समझौता लागू होने की स्थिति में पहुंच गया है ।  ५५ देश, जो कि वैश्विक स्तर पर कम से कम ५५ प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करत हैं, इस पर हस्ताक्षर कर चुके हैं । अभी भी इसे अपनाने हेतु १२ महीने का समय बाकी है। वैसे ४ नवंबर को लागू होने के बाद पेरिस समझौता कार्यशील हो   जाएगा ।
    इसी के साथ दि कान्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सी ओ पी) जो कि पेरिस समझौते के अन्तर्गत निर्णय लेने वाली इकाई है, वह भी गतिशील हो जाएगी । इस तारतम्य में सभी पक्षों को तापमान औद्योगिक काल से पूर्व से २ डिग्री सेल्सियस अधिक के  स्तर पर लाने एवं इस बात के लिए प्रयत्नशील होना होगा कि तापमान औद्योगिककरण पूर्व के काल से १.५ डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़े । सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस समझौते के नियम, स्वरूप एवं प्रक्रियाएं तैयार करने का काम संबंधित पक्ष ही करंेगे ।
    मारकेश में चुनौतियां- काप-२२ (मारकेश सम्मेलन) के सामने मुख्य चुनौती यह है कि ऐतिहासिक रूप से अलाभकारी परिस्थिति में रह रहे वैश्विक दक्षिण के लिए समानता आधारित प्रणाली विकसित की जाए । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि राष्ट्रीय तयशुदा योगदान (नेशनली डिटरमाइंड कांट्रीब्यूशन या एन डी सी) यानी सभी पक्षों द्वारा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी तय करने की प्रक्रिया, पारदर्शी बनाने में सहयोग करना । पेरिस समझौते ने कमोवेश सभी पक्षों को ``यथाशीघ्र ग्रीन हाउस उत्सर्जन के  शिखर पर पहुंचने`` एवं ``घरेलू तौर पर इसे कम करने के  तरीकों`` पर विचार करने पर राजी कर लिया है। परंतु एन डी सी को क्रियान्वित करना संबंधित पक्षों राष्ट्रों पर बाध्यकारी नहीं है ।
    सभी पक्षों ने पेरिस समझौता क्रियान्वयन संबंधित अस्थायी कार्य दल को सूचित किया है कि वे ``एम डी सी को राष्ट्रों द्वारा तय किए जाने`` के पक्षघर हैं। अतएव उत्सर्जन में कमी एवं खत्म करने की रणनीति, जिसका मूल सिद्धांत है तापमान वृद्धि को १.५ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाए, जलवायु न्याय के लिए बहुत महत्वपूर्ण है ।
    दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है पेरिस समझौते के विकास हेतु नियमावली तैयार करना । इसके अन्तर्गत उत्सर्जन की समाप्ति एवं टिकाऊ  विकास (अनुच्छेद-६) जलवायु परिवतन से अनुकूलन (अनुच्छेद-७) कार्य करने एवं सहयोग हेतु एक पारदर्शी ढांचे को निर्माण (अनुच्छेद-१३), जिनकी वजह से एन डी जी को अपनाने जलवायु वित्त, तकनीक का हस्तांतरण एवं क्षमता निर्माण, समझौते के क्रियान्वयन को लेकर समय-समय पर आकलन करना (अनुच्छेद-१४) एवं समझौते को लागू करने हेतु प्रोत्साहन देने  हेतु क्रियान्वयन समिति के गठन (अनुच्छेद-१५) को दिशा देने में नियमावली से सहायता मिलेगी । नियमावली जलवायु कार्यवाही की रिपोर्टिंग एवं जवाबदेही तय करने में भी सहायक सिद्ध होगी ।
    ध्यान देने वाला एक और क्षेत्र है ग्रीन क्लाइमेंट फंड (हरित जलवायु कोष) में विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को उत्सर्जन में कमी एवं पेरिस समझौते को अपनाने के लिए प्रतिवर्ष १०० अरब डॉलर की आर्थिक मदद उपलब्ध करवाना । कछ अमीर देश वित्तीय संस्थानों जैसे विश्व बैंक आदि के माध्यम से धन इक्ट्ठा करने को लेकर बेहद सतर्क हैं, जबकि अन्य लोग निजी बैंकों की ओर पहल करना चाहते हैं। इसके अलावा देश एवं परियोजना आधारित वित्तीय आबंटन हेतु यह तय किया जाना आवश्यक है कि कौन सा देश कितना योगदान करेगा ।
    जलवायु परिवर्तन के  खिलाफ संघर्ष का आधार ही जलवायु न्याय के क्षेत्र में प्रगति है । पिछले कुछ वर्षों में जलवायु न्याय आंदोलन को जबरदस्त गति मिली   है । परंतु विकासशील देशों को मुख्य चुनौती मारकेश में होने वाले काप सम्मेलन में इस गति को बनाए रखने में सामने आएगी ।

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